झारखंड के इस इलाके में पाले जाते हैं लड़ाकू मुर्गे, जानें क्या है इसकी खासियत

मुर्गों की लड़ाई में हजारों रुपये की बाजी लगती है. मुर्गा लड़ाई ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में मनोरंजन का भी साधन है, जिसमें अच्छी खासी भीड़ उमड़ती है. लड़ाई से पहले इन मुर्गों को नशीली चीजें भी खिलायी जाती हैं

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2024 4:22 AM


रांची : रांची-टाटा मार्ग पर तैमारा घाटी क्षेत्र में पड़ता है कोड़दा गांव. यह गांव रांची से करीब 55 किमी की दूरी पर है. क्षेत्र पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है. एक जमाने में यह घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र था, जहां लोग जाने से भी डरते थे. आज इसकी पहचान उन चंद गांवों में होती है, जहां लड़ाकू मुर्गे पाले जाते हैं. इनकी खासियत इनकी लंबी टांगें हैं. लंबी टांगों और पंखों की बदौलत ये आम मुर्गों की अपेक्षा ज्यादा ऊंची छलांग लगा सकते हैं. रांची और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में साप्ताहिक हाट बाजारों में होनेवाली इन मुर्गों की लड़ाई का खूब प्रचलन है.

मुर्गों की लड़ाई में लगती है हजारों की बाजी :

मुर्गों की लड़ाई में हजारों रुपये की बाजी लगती है. मुर्गा लड़ाई ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में मनोरंजन का भी साधन है, जिसमें अच्छी खासी भीड़ उमड़ती है. लड़ाई से पहले इन मुर्गों को नशीली चीजें भी खिलायी जाती हैं, जिससे वह काफी आक्रामक हो जाते हैं. लड़ाई के वक्त इन मुर्गों के पैर में ब्लेड जैसी धारदार चीजें बांध दी जाती हैं, जिससे वह एक-दूसरे पर वार करते हैं. इन मुर्गों की दूसरी खासियत यह है कि ये मैदान नहीं छोड़ते हैं. ये मरते दम तक एक-दूसरे पर वार करते हैं.

आम मुर्गों की तुलना में होते हैं लंबे और मजबूत :

ये मुर्गे आम मुर्गे की तुलना में ज्यादा लंबे और मजबूत होते हैं. काफी फुर्तीले भी. ये संकर नस्ल के मुर्गे हैं, जो आंध्र प्रदेश और झारखंड के स्थानीय मुर्गों की नस्ल से ब्रीडिंग से तैयार होते हैं. इनकी कीमत भी ज्यादा होती है. इन मुर्गों की कीमत 15000 रुपये जोड़ा है, जबकि चूजे 3000 रुपये जोड़ा की दर से बिकते हैं. रांची और आसपास से मुर्गा लड़ाई में शामिल होनेवाले लोग यहां पर आकर इन मुर्गों को खरीदते हैं.

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