उपायुक्त छवि रंजन के इस फैसले ने कारोबारी विष्णु अग्रवाल को बना दिया सेना के अधिग्रहित जमीन का मालिक
छवि रंजन ने आठ जुलाई, 2022 को दिये गये अपने फैसले में कहा कि वह इस मामले को सुन सकते हैं. इस जमीन के मामले में शहर अंचल के अंचलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट भेजी है
रांची के उपायुक्त रहे छवि रंजन को दी गयी कानूनी राय में सिरमटोली स्थित जमीन को सेना के लिए ‘अधिग्रहित’ के बदले ‘अधिग्रहण का अनुरोध’ माना गया. इसके लिए जमीन के मुआवजे का भुगतान नहीं किये जाने को आधार बनाया गया. हालांकि, सेना द्वारा 1946 में मुआवजे के रूप में 78,350 रुपये का भुगतान किया जा चुका था. कानूनी राय के बाद उपायुक्त ने विष्णु अग्रवाल द्वारा दायर मुकदमे में जमीन को अधिग्रहित के बदले सिर्फ अधिग्रहण का अनुरोध मानते हुए अपना फैसला दिया. पर उन्होंने अपने फैसले में कानूनी राय का उल्लेख नहीं किया. उपायुक्त के इस फैसले ने विष्णु अग्रवाल को सेना के लिए अधिग्रहित 5.33 एकड़ जमीन का मालिक बना दिया.
छवि रंजन ने आठ जुलाई, 2022 को दिये गये अपने फैसले में कहा कि वह इस मामले को सुन सकते हैं. इस जमीन के मामले में शहर अंचल के अंचलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट भेजी है. इसमें कहा गया है कि रजिस्टर-2, वॉल्यूम-1, पेज-190 में प्लॉट नंबर-851, 908 और 910 में डॉ सनत कुमार घोष का नाम दर्ज है. जमीन का लगान 41.22 रुपये निर्धारित है. विक्रेता के पक्ष में 2022-23 तक लगान रसीद भी जारी किया गया है.
उपायुक्त ने अपने फैसले में किसी अजय तिर्की को ‘सूचना के अधिकार अधिनियम’ के तहत मिली सूचना का हवाला दिया. इसमें यह कहा गया है कि अजय तिर्की को दी गयी सूचना के अनुसार सेना द्वारा एमएस प्लॉट नंबर-851, 908 और 910 का अधिग्रहण नहीं किया गया है. उपायुक्त ने सेना की ओर से अक्तूबर और दिसंबर 2021 में लिख गये पत्रों के हवाला देते हुए अपने फैसले में यह लिखा कि सेना इस बात की पड़ताल कर रही है कि जमीन का अधिग्रहण हुआ है या नहीं.
जमीन के मुआवजा भुगतान से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं है. इसलिए नियमानुसार इस मामले में अधिग्रहण की कार्रवाई पूरी नहीं हुई है. अधिग्रहण के लिए सिर्फ अनुरोध किया गया था. ऐसी परिस्थिति में जमीन को अधिग्रहण के अनुरोध के आलोक में 10 मार्च, 1987 के बाद कब्जे में नहीं रखा जा सकता है. इसलिए प्रतिवादी द्वारा इस जमीन को मुक्त कर देने की जरूरत है.
मिलिट्री लैंड रजिस्टर में दर्ज है भुगतान का ब्योरा :
मिलिट्री लैंड रजिस्टर दानापुर सर्किल में रखे गये दस्तावेज के वॉल्यूम नंबर-3, पेज नंबर-52 में जमीन के अधिग्रहण का ब्योरा दर्ज है. इसमें कहा गया कि रांची के वार्ड नंबर-6 के प्लॉट नंबर-851, 908 और 910 को ‘डिफेंस ऑफ इंडिया रूल-1939’ के तहत अधिग्रहण की अधिसूचना संख्या-3398, दिनांक 20 जुलाई 1949 को जारी की गयी.
इसे तीन अगस्त, 1949 को बिहार गजट में प्रकाशित किया गया. भारत सरकार, वॉर डिपार्टमेंट, आर्मी ब्रांच नयी दिल्ली द्वारा पत्र संख्या 5206/104/क्यू3(एच) दिनांक 12 जुलाई 1946 के सहारे जमीन की कीमत के रूप में 78 हजार 350 रुपये स्वीकृत किया गया.
विष्णु अग्रवाल की ओर से पेश की गयी दलील :
विष्णु अग्रवाल ने सिरमटोली स्थित ‘दिलखुश हाउस’ नाम की जमीन (एमएस प्लॉट नंबर-851, 905) इसके उत्तराधिकारी महुआ मित्रा और संजय घोष से सात फरवरी 2018 को खरीदी. जमीन खरीदने के बाद उसे उपायुक्त की अदालत में केस (8आर28/2018-19) दायर किया. इसमें डायरेक्टर जेनरल डिफेंस स्टेट दिल्ली, प्रिंसिपल डायरेक्टर डिफेंस स्टेट लखनऊ,
डिफेंस स्टेट ऑफिसर दानापुर और स्टेशन कमांडर, स्टेशन हेडक्वार्टर दीपाटोली को प्रतिवादी बनाया. पिटीशन में विष्णु अग्रवाल की ओर से यह कहा गया कि दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के ईस्टर्न कमांड को कोलकाता से रांची लाने का फैसला किया गया. सेना के लिए जमीन की जरूरत को देखते हुए डिफेंस ऑफ इंडिया रूल में निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बिहार के गवर्नर ने जमीन के अधिग्रहण का ‘अनुरोध’ किया.
इससे संबंधित अधिसूचना (824-ओआर/41) चार अक्तूबर 1941 को प्रकाशित हुई. पिटीशन में दावा किया गया कि जमीन खरीदने के बाद विष्णु अग्रवाल की ओर से सेना के संबंधित अधिकारियों को कई बार पत्र भेजा गया. जवाब नहीं मिलने पर लीगल नोटिस भेजा गया, लेकिन इसका भी कोई जवाब नहीं मिला. नियमानुसार, इस जमीन को उसके वास्तविक मालिक को हस्तांतरित कर देना चाहिए था. पर सेना अनधिकृत रूप से जमीन पर काबिज है. इसलिए जमीन के अधिग्रहण के लिए किये गये अनुरोध को खारिज रद्द कर दिया जाये.
केंद्र सरकार की ओर से पेश की गयी दलील :
सेना की ओर से पेश की गयी दलील में कहा गया कि जमीन पर दावा करनेवाला उसका वास्तविक मालिक (महुआ और संजय) नहीं है. जिस जमीन का सिर्फ अधिग्रहण के लिए अनुरोध किया गया बताया जा रहा है, उसे स्थायी तौर पर अधिग्रहित किया जा चुका है. इससे संबंधित गजट नोटिफिकेशन (17(42)-डब्ल्यू-10/46) 28 सितंबर 1946 को जारी किया गया था. नियमानुसार, अधिग्रहण का अनुरोध किये जाने की स्थिति में उपायुक्त इससे जुड़े मामलों को सुन सकते हैं.
जमीन का स्थायी अधिग्रहण किया जा चुका है. इसलिए इस मामले में किसी तरह की कार्रवाई करने का कोई अधिकार उपायुक्त के पास नहीं है. इस जमीन पर रक्षा मंत्रालय का पूर्ण अधिकार और स्वामित्व है. जमीन के वास्तविक मालिकों को मुआवजे का भुगतान किया जा चुका है. इससे संबंधित ब्योरा मिलिट्री रजिस्टर में दर्ज है. इसलिए विष्णु अग्रवाल की ओर से दायर पिटीशन को रद्द कर देना चाहिए.
उपायुक्त को दी गयी थी कानूनी राय
उपायुक्त को 23 पेज में कानूनी राय दी गयी. इसमें रिक्विजिशन एंड एक्विजिशन ऑफ इममुवेबल प्रॉपर्टी एक्ट-1952, दि रिक्विजिशनड लैंड कंटिन्यूएशन ऑफ पावर्स एक्ट-1947 की विभिन्न धाराओं पर विचार किया गया. इसके बाद मामले में दी गयी कानूनी राय में यह कहा गया कि जमीन के सिलसिले में मुआवजा भुगतान से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं है. नियमानुसार भुगतान नहीं होने की स्थिति में अधिग्रहण को पूरा नहीं माना जायेगा. इस तरह यह जमीन के अधिग्रहण के अनुरोध का मामला है. सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह के मामले (राय स्टेट बनाम झारखंड सरकार) ने जमीन मालिक को जमीन वापस करने का आदेश दिया है.