रांची, शकील अख्तर. व्यक्तिगत तौर पर किये गये आपराधिक मामले में सरकारी कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं है. विधि विभाग ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राकेश कुमार के मामले में यह राय दी है. फिलहाल वह सर्ड में व्याख्याता हैं. बड़कागांव के तत्कालीन बीडीओ राकेश कुमार व उनकी पत्नी पर चोरी के आरोप में घर में काम करनेवाली बच्ची को आयरन से जलाने का आरोप है. यह घटना दो अक्तूबर 2019 की है. मामला उजागर होने पर इसकी जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित की गयी. साथ ही पीड़िता के बयान पर प्राथमिकी भी दर्ज की गयी.
इस मामले में जांच कमेटी में शामिल तत्कालीन अपर समाहर्ता, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी और सिविल सर्जन द्वारा संयुक्त रूप से जांच रिपोर्ट तैयार कर उपायुक्त को सौंपी गयी थी. उपायुक्त ने अक्तूबर 2019 में सरकार को रिपोर्ट सौंप राकेश कुमार के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने की अनुशंसा की थी. सरकार की जांच रिपोर्ट और उपायुक्त की अनुशंसा के आलोक में राकेश कुमार के खिलाफ आरोप गठित कर संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण पूछा गया.
इसके बाद स्पष्टीकरण के आधार पर आगे की कार्रवाई के लिए फरवरी 2020 में उपायुक्त से राय मांगी गयी. उपायुक्त ने वर्ष 2021 में सरकार को अपने विचार से अवगत कराते हुए कहा कि विभागीय कार्यवाही और आयरन से जलाने के मामले में दायर मुकदमे में आरोप एक जैसे हैं.
इसलिए इस मामले में कोर्ट का फैसला आने के बाद उसी के आलोक में फैसला करना बेहतर होगा. इसके बाद सरकार की ओर से राकेश कुमार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और मुकदमे की स्थिति की जानकारी मांगी गयी. इसके बाद उपायुक्त ने बताया कि राकेश कुमार का मामला मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में लंबित है.
उपायुक्त ने इस मामले में बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय ( बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 की सुसंगत धाराओं में अभियोजन स्वीकृति देने का अनुरोध किया. उपायुक्त द्वारा किये गये अनुरोध के तहत सरकार के स्तर से अभियोजन स्वीकृति का प्रस्ताव विधि विभाग को भजा गया.
विधि विभाग ने अभियोजन स्वीकृति के इस प्रस्ताव पर विचार करने के बाद लिखा कि बड़कागांव के तत्कालीन बीडीओ द्वारा किया गया अपराध निजी प्रकृति का है. यह अपराध पद पर काम करते हुए सरकारी दायित्वों के निर्वाह के दौरान नहीं किया गया है. इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं है.