Jharkhand News: छह महीने में ही देसी शराब नीति बदलने का प्रस्ताव, राजस्व पर्षद को आपत्ति
पर्षद ने समीक्षा के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नयी उत्पाद नीति बनाने के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड को सलाहकार नियुक्त किया था.
‘देसी शराब निर्माण बोतलबंद व भंडारण नियमावली-2022’ में बदलाव करते हुए झारखंड सरकार ने तीन रंगों के बदले सफेद रंग की बोतल में ही देसी शराब की बिक्री का प्रस्ताव तैयार कर सहमति के लिए राजस्व पर्षद को भेजा. इस प्रस्ताव पर विचार करने के बाद पर्षद ने छह महीने के अंदर ही नियमावली में बदलाव का कारण जानना चाहा है. पर्षद ने अपने सुझाव और मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद उत्पाद विभाग द्वारा स्टेक होल्डर की राय लिये बिना ही नियमावली लागू करने को गंभीरता से लिया है. साथ ही इस मामले में राज्य सरकार के सलाहकार की योग्यता पर सवाल उठाये हैं.
पर्षद ने समीक्षा के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नयी उत्पाद नीति बनाने के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीएसएमसीएल) को सलाहकार नियुक्त किया था. सलाहकार और उत्पाद विभाग के आंतरिक विचार-विमर्श के बाद एक मई 2022 से राज्य में नयी नीति लागू की गयी. विभाग ने नियमावली-2022 बनाने के क्रम में यह दावा किया था कि नयी नियमावली लागू होने से देसी शराब की बिक्री में व्यापक वृद्धि होगी.
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राज्य में फिलहाल 25.65 लाख पेटी देसी शराब की बिक्री होती है. यह बढ़ कर 500 लाख पेटी हो जायेगी. यानी शराब की बिक्री में 19 गुना से अधिक की बिक्री होगी. छत्तीसगढ़ में शराब से मिलनेवाले कुल राजस्व का 40 प्रतिशत देसी शराब से मिलता है. झारखंड में यह सिर्फ 10 प्रतिशत ही है. नयी नियमावली से यह बढ़ कर 15 प्रतिशत हो जायेगा. नियमावली-2022 बनाते वक्त यह भी कहा गया था कि वातावरण में सुधार की ओर कदम बढ़ाने के आधार पर शीशे की बोतल में शराब बेचने का प्रावधान किया गया.
साथ ही अलग-अलग कंसंट्रेशन के लिए अलग-अलग रंग की बोतलों में शराब की बिक्री का प्रावधान किया गया. इस नियमावली को लागू किये सिर्फ छह महीने ही हुए हैं. ऐसे में नियमावली में बदलाव कर तीन रंगों के बदले सिर्फ सफेद रंग के बोतल में ही बोतलबंद करने की क्या जरूरत आ पड़ी?
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पाद एक्ट में नियमावली लागू करने से पहले ड्राफ्ट पॉलिसी को सार्वजनिक कर उस पर ‘स्टेक होल्डर’ का मंतव्य मांगने का प्रावधान है. राज्य के मुख्यमंत्री ने भी ऐसा करने का निर्देश दिया था, लेकिन विभाग ने ड्राफ्ट पॉलिसी को बिना स्टेक होल्डर्स की राय लिये ही लागू कर दिया. पर्षद ने इसे वर्तमान नीति की असफलता का एक बड़ा कारण माना है.
ये सवाल भी पूछे हैं पर्षद ने
1. तीन रंगों की बोतल में बोतलबंदी की नियमावली के असफल होने के विश्वास के क्या कारण हैं? विभाग असफलता के कारणों की समीक्षा करे. क्या इस संशोधन से राजस्व लक्ष्य की प्राप्ति होगी?
2. एक ही रंग की बोतल में अलग-अलग कंसंट्रेशन की शराब होने के उपभोक्ताओं के बीच संशय होगा या नहीं?
3. राज्य में देसी शराब के कितने निर्माता हैं? वे अपनी उत्पादन क्षमता का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं? संबंधित कंपनियां सरकारी मांग के अनुरूप उत्पादन करने में सक्षम हैं या नहीं?
4. अगर कोई कंपनी सरकारी मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं कर रही हो, तो सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करने चाहती है या नहीं?