अविनाश, रांची : पलामू का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है. 2007 में पलामू लोकसभा का उपचुनाव काफी रोचक था. उपचुनाव से पहले दिग्गज नेता इंदर सिंह नामधारी ने केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से नाराज होकर जदयू प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. तब वह विधायक भी थे. श्री नामधारी ने विधायकी भी छोड़ दी थी. श्री नामधारी के इस कदम से झारखंड की राजनीति गरमा गयी थी. इस वजह से 2007 में पलामू लोकसभा उपचुनाव के तीन माह के अंदर ही डालटनगंज विस का चुनाव हो गया था. इसमें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामधारी ने जीत दर्ज की थी.
2004 के लोकसभा चुनाव में राजद के मनोज कुमार भुइयां ने चुनाव जीत कर सबको चौंकाया था.
लेकिन प्रश्न पूछने के एवज में पैसे लेने के मामले में उनकी सदस्यता चली गयी थी. इसी वजह से 2007 में पलामू में लोकसभा का उपचुनाव हुआ. नामधारी चाहते थे कि इस सीट पर भाजपा लड़े, पर उस वक्त नामधारी के करीबी रहे राधाकृष्ण किशोर चाहते थे कि जदयू उपचुनाव लड़े. किशोर केंद्रीय नेतृत्व को मनाने में सफल भी रहे और नामधारी से केंद्रीय नेतृत्व ने जब कोई राय नहीं ली तो वे नाराज हो गये. इस उपचुनाव में श्री नामधारी ने भाजपा प्रत्याशी जवाहर पासवान के पक्ष में प्रचार किया. हालांकि इस उपचुनाव में फिर से पलामू सीट पर राजद का कब्जा बरकार रहा. राजद प्रत्याशी के तौर पर घुरन राम ने बसपा प्रत्याशी कामेश्वर बैठा को शिकस्त दी थी.
इस चुनाव में घुरन राम को 1,64,202 मत मिले थे. बैठा को 1,41,875 मत मिले. भाजपा प्रत्याशी जवाहर पासवान तीसरे स्थान पर रहे थे. 2009 के चुनाव में बाजी पलट गयी. 2007 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे कामेश्वर बैठा ने झामुमो प्रत्याशी के रूप में इस बार घुरन राम को शिकस्त दी थी. कामेश्वर चुनाव के वक्त जेल में थे. लेकिन तब उन्हें झामुमो, कांग्रेस और नौजवान संघर्ष मोरचा का संयुक्त प्रत्याशी घोषित कराने में विधायक भानु प्रताप शाही की बड़ी भूमिका थी. भानुप्रताप ने रणनीति के साथ चुनाव लड़ा और बाजी कामेश्वर के हाथ में आयी थी. भले ही इस चुनाव में कामेश्वर बैठा जीते, लेकिन इस परिणाम के बाद पलामू पर भानुप्रताप शाही ने अपनी राजनीतिक पकड़ का एहसास कराया.
आज की तिथि में पलामू संसदीय क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है. पलामू संसदीय क्षेत्र के दिग्गज नेता इंदर सिंह नामधारी, गिरिनाथ सिंह, भानु प्रताप शाही, सत्येंद्र नाथ तिवारी कभी अलग खेमे रह कर अपने दल के प्रत्याशी को जिताने के लिए मैदान में पसीना बहाते थे. इसमें नामधारी अब सक्रिय राजनीतिक से संन्यास ले चुके हैं, तो भानुप्रताप शाही, गिरिनाथ सिंह, सत्येंद्र नाथ तिवारी एक ही दल (भाजपा) में हैं. यही हाल प्रत्याशियों का भी है. अलग-अलग दल के सिंबल पर चुनाव लड़ चुके सभी बड़े चेहरे ब्रजमोहन राम, प्रभात कुमार, घुरन राम, मनोज कुमार अभी भाजपा में ही हैं. इस सीट पर लगातार दो बार से भाजपा प्रत्याशी बीडी राम अपनी जीत दर्ज कर रहे हैं. ऐसे में आगे क्या होगा यह देखना दिलचस्प होगा.