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नगर निकाय चुनाव में विलंब होने पर झारखंड को हो सकता है आर्थिक नुकसान, जानें क्या है वजह

संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम 1992 में स्पष्ट बताया गया है कि राज्यों में स्थानीय निकाय कई कारणों से कमजोर और अप्रभावी हो गये हैं. इन कारणों में नियमित चुनाव कराने में विफलता और लंबे समय तक शक्तियों व कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण शामिल हैं.

झारखंड में नगर निकायों का चुनाव नहीं होने से राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान हो सकता है. चुनाव कराने में हो रहे विलंब के कारण 15वें वित्त आयोग की मदद से वंचित होना पड़ सकता है. शहरी निकायों के विकास के लिए आयोग से लगभग 1600 करोड़ रुपये पर झारखंड का दावा है. लेकिन, तय समय पर चुनाव नहीं होने से वित्त आयोग द्वारा मिलने वाली सहायता पर रोक लगायी जा सकती है.

संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम 1992 में स्पष्ट बताया गया है कि राज्यों में स्थानीय निकाय कई कारणों से कमजोर और अप्रभावी हो गये हैं. इन कारणों में नियमित चुनाव कराने में विफलता और लंबे समय तक शक्तियों व कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण शामिल हैं.

ऐसे में चुनाव में विलंब करना निकायों को कमजोर बनाना है. शहरी विकास, शहरों में नागरिक सुविधा विकसित करने तथा अपना संसाधन बढ़ाने के लिए नगर निकायों के लिए केंद्र सरकार द्वारा वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर राज्यों को ग्रांट स्वीकृत किया जाता है. 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर झारखंड में केंद्र सरकार ने शहरी निकायों को राशि पूर्व में जारी की है. मालूम हो कि राज्य के 13 नगर निकायों में ढ़ाई वर्षों से चुनाव लंबित हैं. वहीं, 35 अन्य शहरी निकायों का कार्यकाल वर्ष 2023 के मार्च-अप्रैल महीने में समाप्त हो रहा है.

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