Naxal Crime Rate In Jharkhand रांची : एसटीएफ आइजी ने राज्य में नक्सल अपराध के आंकड़ों में कमी का कारण ठेकेदार व व्यापारियों द्वारा नक्सलियों के डर से प्राथमिकी नहीं दर्ज कराने को बताया है. उन्होंने राज्य में कुल अपराध के मुकाबले नक्सली अपराध की संख्या 1-0.27 प्रतिशत तक ही होने के सवाल पर उच्चस्तरीय समिति को लिख कर दिया है. उच्चस्तरीय समिति ने राज्य में कुल अपराध के साथ नक्सली अपराध की घटनाओं की तुलना की थी.
इसमें पाया गया कि आइपीसी और एसएलएल (स्पेशल एंड लोकल लॉ) के तहत वर्ष 2001 से 2004 तक की अवधि में आठ हजार से नौ हजार मामले दर्ज किये गये थे. वर्ष 2018-2019 में 17 से 19 हजार मामले दर्ज किये गये. दूसरी तरफ सिर्फ आइपीसी के तहत 2001-04 की अवधि में 25-31 हजार मामले दर्ज किये गये. इसी तरह 2018-19 की अवधि में 45-50 हजार आपराधिक मामले दर्ज किये गये. इन आंकड़ों के विश्लेषण के बाद समिति ने यह पाया कि इस अवधि में कुल प्रमुख अपराध में 137.5% की वृद्धि हुई है.
यानी प्रमुख आपराधिक घटनाओं की औसत वार्षिक वृद्धि दर 6.9% है. आइपीसी के तहत दर्ज मामलों में इस अवधि के दौरान 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यानी औसत वार्षिक वृद्धि दर 5% है. समिति ने एसटीएफ से उग्रवाद से जुड़े आपराधिक घटनाओं का ब्योरा मांगा. एसटीएफ ने इससे संबंधित आंकड़े दिये, लेकिन इसे रिपोर्ट का हिस्सा नहीं बनाने का अनुरोध किया.
समिति ने राज्य में हत्या, डकैती, लूट, चोरी सहित अन्य प्रकार के आपराधिक आंकड़ों के साथ नक्सल अपराध से जुड़े मामले का तुलनात्मक अध्ययन किया. इसमें पाया कि वर्ष 2001 से 2011 तक की अवधि में नक्सली अपराध की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गयी. 2012-13 से नक्सली अपराध की घटनाओं में कमी होनी शुरू हुई. 2013 तक नक्सली अपराध की घटनाएं पूरे राज्य में होनेवाली अन्य आपराधिक घटनाओं का सिर्फ एक प्रतिशत थी. फिलहाल यह घट कर 0.27 प्रतिशत हो गयी है.
इन आंकड़ों के मद्देनजर उच्च स्तरीय समिति ने यह सवाल उठाया था कि जब कुल अपराध के मुकाबले नक्सली अपराध सिर्फ 1-0.27 प्रतिशत ही है, तो ऐसी स्थिति में इतना मानव बल, ऊर्जा और पैसा खर्च करने का क्या औचित्य है. इस सवाल के जवाब में एसटीएफ के आइजी ने समिति को यह लिख (पत्रांक 2712 दिनांक 19-4-2021) कर दिया कि ठेकेदार व व्यापारी नक्सलियों के डर से प्राथमिकी दर्ज नहीं कराते हैं. इसी कारण नक्सल अपराध के जुड़े आंकड़ों की संख्या कम है. इधर, एसटीएफ में स्वीकृत पदों के मुकाबले 200 प्रतिशत तक अधिक तैनात एएसआइ स्तर के पुलिस अधिकारियों को वेतन देने के कारनामे को भी अंजाम दिया गया.
एसटीएफ में विभिन्न प्रकार के कुल 4022 पद स्वीकृत हैं. इन पदों में कुछ पद 100 प्रतिशत तक खाली हैं. जबकि कुछ पदों पर 200 प्रतिशत तक अधिक लोग कार्यरत हैं. उच्चस्तरीय समिति ने यह पाया कि वायरलेस से जुड़े महत्वपूर्ण पद 100 प्रतिशत खाली हैं. एसटीएफ के अधिकारियों ने वायरलेस को महत्वपूर्ण तो माना लेकिन इन पदों के खाली रहने का कारण नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा नहीं होना बताया. समिति ने समीक्षा के दौरान पाया कि परिचारी प्रवर के दो स्वीकृत पदों के मुकाबले तीन लोग कार्यरत हैं.
एएसआइ (सामान्य) केे लिए एसटीएफ में 56 पद स्वीकृत हैं. हालांकि इन स्वीकृत पदों के मुकाबले 200 प्रतिशत तक अधिक लोग कार्यरत रहे. वर्ष 2018 में 56 स्वीकृत पदों के मुकाबले 182, वर्ष 2019 में 186, वर्ष 2020 में 158 और फिलहाल 157 एएसआइ कार्यरत हैं. नियमानुसार किसी स्वीकृत पद पर उससे अधिक लोगों के कार्यरत होने की स्थिति में वेतन की निकासी नहीं हो सकती. यानी एएसआइ (सामान्य) के लिए सिर्फ 56 लोगों के लिए ही वेतन की निकासी की जा सकती है.
ट्रेजरी से वेतन निकालने के लिए निकासी एंव व्ययन पदाधिकारी (डीडीओ) के एक प्रमाण पत्र देना होता है. इसमें इस बात का उल्लेख करना होता है कि वेतन की निकासी स्वीकृत पदों के ही अधीन की जा रही है. इस प्रमाण पत्र के बिना वेतन की निकासी नहीं हो सकती है. इसलिए एएसआइ के अस्वीकृत पदों पर कार्यरत लोगों के लिए वेतन की निकासी वित्तीय नियमाें के आलोक में अनियमितता है. एसटीएफ ने उच्च स्तरीय समिति को स्वीकृत पदों के मुकाबले अधिक लोगों के कार्यरत होने को ‘ऑपरेशनल रिक्वायरमेंट’ बताया है.
वर्ष आइपीसी, एसएलएल आइपीसी
2001- 2004 8-9 हजार 25-31 हजार
2005-2012 11-12 हजार 35-40 हजार
2013-16 14-15 हजार 45-50 हजार
2018-2019 17-19 हजार 45-50 हजार
पदनाम स्वीकृत पद वर्ष 2018 वर्ष 2019- वर्ष 2020-वर्ष 2021
डीएसपी 44 42 43 39 39
एएसआइ(सामान्य) 56 182 168 158 157
परिचारी प्रवर 02 02 03 03 03
पुलिस निरीक्षक(वितंतु) 01 00 00 00 00
पुलिस अवर निरीक्षक(वितंतु) 44 00 00 00 00
सिपाही(वितंतु) 46 00 00 00 00
Posted by : Sameer Oraon