Jharkhand High Court Latest News रांची : झारखंड विधानसभा और झारखंड हाइकोर्ट के निर्माण कार्य में बरती गयी वित्तीय अनियमितता की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) करेगा. मुख्यमंत्री ने इससे संबंधित प्रस्ताव पर मंजूरी प्रदान कर दी है. एचइसी इलाके के कुटे में बने झारखंड विधानसभा के नये भवन के निर्माण में भी इंजीनियराें पर रामकृपाल कंस्ट्रक्शन काे लाभ पहुंचाने का आरोप है.
विधानसभा के इंटीरियर वर्क के हिसाब-किताब में गड़बड़ी बता कर भवन निर्माण के इंजीनियरों ने पहले 465 करोड़ के मूल प्राक्कलन को घटा कर 420.19 करोड़ कर देने की शिकायत है. आरोप है कि बिल ऑफ क्वांटिटी (बीआेक्यू) में निर्माण लागत 420.19 कराेड़ से घटा कर 323.03 कराेड़ कर दिया गया. टेंडर निबटारे के बाद 10 प्रतिशत कम यानी 290.72 करोड़ रुपये की लागत पर रामकृपाल कंस्ट्रक्शन काे काम दे दिया गया.
फिर ठेकेदार के कहने पर वास्तु दोष के नाम पर साइट प्लान का ड्राइंग भी बदला गया. हालांकि पीडब्ल्यूडी कोड में वास्तु दोष की मान्यता नहीं होने के बावजूद तत्कालीन सरकार ने ठेकेदार की बात मान ली. साथ ही वास्तु दोष के समाधान के नाम पर साइट प्लान का ड्राइंग बदल दिया. इससे निर्माण क्षेत्र 19,943 वर्ग मीटर बढ़ गया. अब बढ़े हुए निर्माण के क्षेत्र पर समानुपातिक दर से ठेकेदार को भुगतान का फैसला किया गया है.
राज्य के महालेखाकार (एजी) ने इन गड़बड़ियाें से संबंधित रिपाेर्ट सरकार काे भेजी थी. वहीं दूसरी ओर टेंडर के टेक्निकल बिड में शापोरजी पालोन जी, एल एंड टी, नागार्जुन और रामकृपाल कंस्ट्रक्शन सफल घोषित हो गये. पर फाइनांशियल बिड में रामकृपाल को छोड़ बाकी सभी कंपनियां बाहर हो गयी. रामकृपाल कंस्ट्रक्शन ने 290.72 करोड़ में विधानसभा कांप्लेक्स बनाने का दावा पेश किया था. यह सबसे कम था. इसलिए एल-वन घोषित करते हुए 25 जनवरी 2016 को उसके साथ एकरारनामा किया गया.
धुर्वा के तिरिल मौजा में ही निर्माणाधीन झारखंड हाइकोर्ट के भवन निर्माण में भी अनियमितता की शिकायत है. न्यायालय में भी इससे संबंधित मामला दर्ज कराया गया है. अधिकारियों और निर्माण करनेवाले ठेकेदार रामकृपाल कंस्ट्रक्शन लिमिटेड की मिलीभगत से वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत की गयी है.
कहा गया है कि शुरुआत में हाइकोर्ट भवन के निर्माण के लिए 365 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी गयी थी. बाद में 100 करोड़ घटा कर ठेकेदार को 265 करोड़ में टेंडर दे दिया गया. बाद में इस्टीमेट को रिवाइज्ड कर 697 करोड़ कर दिया गया. बढ़ी राशि के लिए सरकार से अनुमति भी नहीं ली गयी. नया टेंडर भी नहीं किया गया. मामले की जांच सीबीआइ से कराने के साथ पूर्व मुख्य सचिव व संवेदक की भूमिका की भी जांच की मांग की गयी थी.
हाइकोर्ट और विधानसभा निर्माण से जुड़ी टेंडर प्रक्रिया में कुछ अनोखी समानताएं हैं. हाइकोर्ट भवन के निर्माण के लिए 366.03 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी, लेकिन टेंडर के समय इसे घटा कर 267.66 करोड़ कर दिया गया. टेंडर के बाद बीआेक्यू बनाते समय हटाये गये काम को ठेकेदार को सौंप दिया गया.
बाद में निर्माण में नये काम को जोड़ कर निर्माण लागत 697.32 करोड़ रुपये कर दिया गया. विधानसभा में भी टेंडर के समय निर्माण लागत 465 करोड़ से घटा कर 323.03 करोड़ कर दिया गया. इसके बाद वास्तुदोष के नाम पर निर्माण का क्षेत्रफल बदल कर बढ़े हुए क्षेत्रफल का काम भी उसी ठेकेदार को दे दिया.