Jharkhand News : सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा, बुलेट प्रूफ जैकेट हैं कम कैसे चलेगा अभियान
पर्याप्त संख्या में बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं होने की वजह से नक्सल अभियान के दौरान पुलिसकर्मियों के हताहत होने का खतरा बढ़ा है. वहीं, पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों की भी कमी है.
रांची : पर्याप्त संख्या में बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं होने की वजह से नक्सल अभियान के दौरान पुलिसकर्मियों के हताहत होने का खतरा बढ़ा है. वहीं, पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों की भी कमी है. इसके अलावा अधिक उम्र के पुलिसकर्मियों को आतंकवाद निरोधक प्रशिक्षण दिया गया, जिनमें से 35 प्रतिशत पुलिसकर्मी प्रशिक्षण पास नहीं कर पाये. 31 मार्च 2018 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र की सीएजी रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया गया है.
मुख्य बातें :-
-
सीएजी ने जारी की है 31 मार्च 2018 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र की रिपोर्ट
-
रिपोर्ट के मुताबिक पुलिसकर्मियों के पास जरूर के मुकाबले अत्याधुनिक हथियार भी 32 % कम हैं
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन सरकार ने वित्तीय वर्ष 2013 से 2018 के दौरान पुलिस आधुनिकीकरण के लिए 52.25 करोड़ रुपये का राज्यांश आवंटित नहीं किया. वहीं, 4.22 करोड़ रुपये का केंद्रीय अनुदान भी खर्च नहीं हुआ. इसके अलावा 2016 से 2018 के बीच इस मद में राज्य के केंद्रीय अनुदान के रूप में 21.31 करोड़ रुपये नहीं मिले.
इस कारण 2013-18 के पांच वर्षों के लिए बना एनुअल एक्शन प्लान लागू नहीं किया जा सका. इससे पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों की कमी हो गयी. अप्रैल 2013 तक जरूरत के मुकाबले 28 फीसदी कम अत्याधुनिक हथियार थे. वर्ष 2018 में यह कमी बढ़ कर 32 प्रतिशत हो गयी.
जैप-6 व एसटीएफ के पास नहीं है बुलेट प्रूफ जैकेट : सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार,वर्ष 2001 में सरकार ने 100 पुलिसकर्मियों को बुलेट प्रूफ हेलमेट और जैकेट से लैस करने का फैसला किया था. राज्य के 12 में से नौ बटालियन की जांच में पाया गया कि उनके पास केवल 686 बुलेट प्रूफ जैकेट और 586 हेलमेट हैं. जबकि, उनकी जरूरत 900 बुलेट प्रूफ जैकेट और इतने ही हेलमेट की है. जैप-1 के पास 334 बुलेट प्रूफ जैकेट हैं. वहीं, आठ अन्य बटालियन के पास सिर्फ तीन से 57 बुलेट प्रूफ जैकेट ही हैं. जैप-6, एसटीएफ व सैप-1 के पास बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं है.
विधि विज्ञान प्रयोगशाला में कर्मियों की कमी : विधि विज्ञान प्रयोगशाला में कर्मचारियों की कमी की बात भी रिपोर्ट में की गयी है. 19 प्रतिशत साक्ष्य पांच वर्षों से अधिक समय से लंबित है. वहीं, पांच वर्षों तक की अवधि में जांच न हो पानेवाले साक्ष्य 56 प्रतिशत हैं. वहीं 11 साल बाद भी 170.21 करोड़ की लागत से बननेवाला पुलिस लाइन ( गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार और लोहरदगा) अधूरा है.
अधिक दर पर खरीदे गये 2.28 करोड़ रुपये के बेंच-डेस्क : सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र की सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल में बच्चों को सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर डीजीएसडी रेट से अधिक दर पर 2.28 करोड़ रुपये के बेंच-डेस्क खरीदे गये.
Post by : Pritish Sahay