विपिन सिंह
Ranchi News Updates : डीजीसीआइ ने दो दिन पहले रांची सदर अस्पताल के ब्लड बैंक में लगी ब्लड कॉम्पोनेंट्स सेपरेशन मशीन को चलाने की अनुमति दे दी. छह महीने पहले ही सदर अस्पताल के ब्लड बैंक को मशीन मिली थी. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने मंगलवार को इसका ऑनलाइन उद्घाटन भी कर दिया. लेकिन एक करोड़ की मशीन का फुल लोड बिजली नहीं मिलने के कारण उपयोग नहीं हो पा रहा है. इससे पहले सदर अस्पताल के सिविल सर्जन ने ब्लड बैंक से जुड़े ट्रांसफॉर्मर का लोड बढ़ाने के लिए ढाई महीने पहले (दो अप्रैल को) जेबीवीएनएल को आवेदन भेजा था, पर अब तक लोड नहीं बढ़ाया गया है. अस्पताल पर जेबीवीएनएल का पहले से ही एक करोड़ रुपये से अधिक का बिजली बिल बकाया है. अगर तय समय में इसे शुरू नहीं किया गया, तो लाइसेंस हासिल करने के लिए डीजीसीआइ के माध्यम से उन्हीं प्रक्रियाओं के तहत फिर से गुजरना पड़ेगा.
रक्तदाता दिवस पर सदर अस्पताल में ऑनलाइन उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान विधायक सीपी सिंह ने भी ट्रांसफार्मर का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि ब्लड और ब्लड कॉम्पोनेंट्स को सुरक्षित रखने के लिए शीतगृह की जरूरत है, लेकिन सदर अस्पताल में ट्रांसफार्मर के अभाव में ब्लड खराब हो जाएगा. ब्लड कॉम्पोनेंट्स सेपरेशन यूनिट के शुभारंभ कार्यक्रम में ऑनलाइन जुड़े स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि वह आज ही ट्रांसफॉर्मर के लिए विभाग से पैसे का भुगतान करायेंगे.
सदर अस्पताल में एक करोड़ रुपये की लागत से ब्लड कॉम्पोनेंट्स सेपरेशन मशीन और इसके अन्य उपकरण खरीदे गये थे. मार्च में मशीन आने के बाद जब इसे चलाने का प्रयास किया गया, तो पता चला कि इस उपकरण को चलाने के लिए ही 165 केवीए बिजली चाहिए. जबकि यहां 63 केवीए का ट्रांसफार्मर लगा हुआ था. जैसे ही मशीन शुरू की जाती है, ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ जाता है और वोल्टेज ऊपर-नीचे होने लगता है.
रांची सदर अस्पताल में ही हर साल औसतन 9000 से 10,000 यूनिट रक्त का संग्रह कर उसे जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया जाता है. थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और एनीमिया के मरीजों को रक्त के अलग-अलग कॉम्पोनेंट- प्लाज्मा, पेकसेल, क्रायो और प्लेटलेट्स की जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को पैक्ड सेल की जरूरत होती है. चूंकि, सदर अस्पताल में ब्लड कॉम्पोनेंट सेपेटर मशीन एक्टिव नहीं है, ऐसे में मरीजों को होल ब्लड चढ़ाना पड़ता है. ऐसी स्थिति में रिम्स के ब्लड बैंक पर दबाव बढ़ जाता है.
– थैलेसीमिया : ऐसे मरीजों को लाल रक्त कणिकाओं (आरबीसी) की जरूरत होती है. अब ब्लड से आरबीसी अलग करके थैलेसीमिया के मरीजों को चढ़ाना आसान होगा.
– डेंगू – कैंसर : डेंगू व कैंसर के मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाये जाते हैं. इस मशीन से खून में से प्लेटलेट्स अलग किये जा सकेंगे.
– बर्न केस यानी जले हुए : बर्न केस के मरीजों को बचाने के लिए प्लाजमा की जरूरत होती है. इस मशीन से अब प्लाजमा और फ्रेश फ्रोजन प्लाजमा (एफएफपी) को अलग कर चढ़ाये जा सकेंगे.
– एड्स : एड्स के मरीजों को श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्ल्यूबीसी) की जरूरत होती है. यह मशीन खून से डब्ल्यूबीसी को अलग करने में भी कारगर साबित होगी.
बताते चलें कि छह महीने पहले सदर अस्पताल के ब्लड बैंक को ब्लड कॉम्पोनेंट्स सेपरेशन मशीन मिली थी. लेकिन बिजली के अभाव में मशीन शुरू नहीं हो सका. सिविल सर्जन ने ढाई महीने पहले जेबीवीएनएल को अस्पताल के ट्रांसफॉर्मर के लोड को बढ़ाने के लिए आवेदन भेजा गया था, पर लोड नहीं बढ़ाया गया. अगर तय समय में मशीन शुरू नहीं हो सकी, तो लाइसेंस के लिए फिर से प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा. इसके अतिरिक्त ब्लड के महत्वपूर्ण कॉम्पोनेंट को अलग करने की केंद्र से मंजूरी भी मिली है पर इस पर भी काम नहीं हो रहा है.
16 केवीए : सिविल सर्जन कार्यालय का भार
32 केवीए : ठंडा रखने को एयरकंडीशनर का भार
165 केवीए : ब्लड सेपरेशन मशीन का विद्युत भार
10 केवीए : वैक्सीनेशन स्टोर और कार्यालय का भार
ब्लड बैंक को सुविधा युक्त बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं. बिजली आपूर्ति के लिए प्रबंधन स्तर से प्रयास किये जा रहे हैं. इस काम के पूरा होते ही सदर उन चुनिंदा अस्पतालों में शामिल हो जायेगा, जहां रक्तदाताओं को होल ब्लड के साथ ही ब्लड के सभी तरह के कॉम्पोनेंट्स प्राप्त करने की सुविधा होगी.
– डॉ विनोद कुमार, सिविल सर्जन, रांची
सिविल सर्जन की ओर से आवेदन मिलने के बाद हमारी टीम ने सदर अस्पताल का निरीक्षण किया गया था. रिपोर्ट भी तैयार कर ली गयी है. डिपॉजिट हेड से यहां ट्रांसफॉर्मर लगना है. इसके लिए करीब 10 लाख रुपए एडवांस में जमा कराने हैं, जिसकी प्रक्रिया चल रही है.
– हिमांशु वर्मा, सहायक विद्युत अभियंता