रांची : रांची के अरगोड़ा स्थित वीर बुधू भगत धुमकुड़िया भवन टोंगरी टोली में रविवार को ‘डंडा कट्टा’ और ‘आदि चाला अयंग’ परिचर्चा का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का आयोजन उरांव आदिवासी धार्मिक दर्शन के आलोक में किया गया था. इसमें आदिवासी समुदाय के कई बुद्धिजीवी शामिल हुए.
क्या कहा साहित्यकार महादेव टोप्पो ने ?
आदिवासी साहित्यकार और कवि महादेव टोप्पो ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धार्मिक चिन्हों और प्रतीकों को अक्षुण्ण रखने पर बल दिया. उन्होंने मां सरना की मूर्ति के बाजारीकरण पर रोक लगाने की बात कही. उन्होंने इसे आदिवासियों के मूल दर्शन के विपरीत माना. शरण उरांव ने धार्मिक प्रतीक डंडा कट्टा की मूल मान्यताओं और प्रचलन पर प्रकाश डाला और विकृतियों को दूर कर सही प्रतीक को स्थापित कर अनुकरण करने का सुझाव दिया.
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डॉ अभय सागर मिंज ने मां सरना की मूर्ति पूजा से बचने को कहा
डॉ अभय सागर मिंज ने मां सरना की आकृति और मूर्ति पूजा से बचने को कहा. उन्होंने लोगों को प्रकृति पूजा से जुड़े रहने का सुझाव दिया. मेधा उरांव ने शोध एवं अध्ययन के जरिये समाज में धार्मिक चिन्हों और भ्रमित करने वाली व्याख्या से दूर रहने की बात कही है. उन्होंने आदिवासी परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया.
कार्यक्रम में इन लोगों ने भी रखें विचार
कार्यक्रम में डॉ मनती कुमारी उरांव, अजय कुमार उरांव, चारे भगत, विनोद भगत, शिव प्रकाश भगत, लोधेर उरांव (चित्रकार), लोहेरमन उरांव, राम प्रताप उरांव, संजय कुजूर, संजीव भगत, विनोद भगत, फुलचंद तिर्की, राजेश टाना भगत ने भी अपने विचार प्रकट किये.
कार्यक्रम के सफल आयोजन में इनकी रही भूमिका
कार्यक्रम के सफल आयोजन में धुमकुड़िया टीम के फुलदेव भगत, प्रो. रामचंद्र उरांव, व्रज किशोर बेदिया, रवि कुमार तिर्की, डॉ विनीत कुमार भगत, सरिता उरांव, पंकज भगत, बिशु उरांव, कृष्ण धर्मेश लकड़ा और रोहतास नगर, सपारोम के युवा और महिला समिति के साथ आदिवासी छात्रावास के विद्यार्थियों ने अहम भूमिका निभाई. कार्यक्रम का समापन नागराज उरांव के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ.