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झारखंड में बनी पुल-पुलिया के निर्माण में हुई गड़बड़ियां, कई पुल हैं अधूरे, इस रिपोर्ट में हुआ खुलासा

झारखंड के पुल-पुलिया योजना में भारी गड़बड़ी पायी गयी है. ये योजनाएं ग्रामीण कार्य विभाग के माध्यम से लागू की गयी थीं. विधानसभा मॉनसून सत्र में पेश (सीएजी) की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है.

राज्य के विधायकों की अनुशंसा पर बनी पुल-पुलिया योजना में भारी गड़बड़ी पायी गयी है. ये योजनाएं ग्रामीण कार्य विभाग के माध्यम से लागू की गयी थीं. महालेखाकार (ऑडिट) द्वारा मांगे जाने के बाद भी सरकार ने पुल-पुलिया के सहारे तैयार की गयी कनेक्टिविटी की जानकारी नहीं दी. नमूना जांच के दौरान 1000-500 मीटर पर पुलों का निर्माण किये जाने की पुष्टि हुई. साथ ही अनेक पुल अधूरे पाये गये. पुलों का इस्तेमाल पार्किंग व पशुशाला के रूप में किये जाने का मामला भी उजागर हुआ. विधानसभा के मॉनसून सत्र में पेश भारत के नियंत्रक सह महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है.

कनेक्टिविटी को लेकर सरकार ने नहीं दी जानकारी :

विधानसभा मे बुधवार को राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों,सामान्य,सामाजिक एवं राजस्व क्षेत्र से संबंधित सीएजी की रिपोर्ट पेश की गयी. रिपोर्ट में ग्रामीण कार्य, पथ निर्माण,कृषि पशुपालन व जल संसाधन विभाग पर अनुपालन प्रतिवेदन को शामिल किया गया है. इसमें संबंधित विभागों द्वारा क्रियान्वित की गयी योजनाओं और उसके परिणाम का उल्लेख किया गया है. ग्रामीण कार्य विभाग के कार्यों की चर्चा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है वर्ष 2001 से 2019 के दौरान 1881 पुलों की योजनाओं को क्रियान्वित किया गया. हालांकि सरकार ने महालेखाकार को इन पुलों से कितने प्रखंडों और गावों को कनेक्टिविटी उपलब्ध करायी गयी, इसकी जानकारी नहीं दी.

छह-छह साल से कई पुल अधूरे, डूब गये सरकार के पैसे :

ऑडिट के दौरान वर्ष 2014 से 2019 के दौरान विधायकों की अनुशंसा और प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृत योजनाओं की जांच की गयी. इसमें पाया गया कि इस अवधि में विधायकों की अनुशंसा पर 496 और प्रशासनिक स्तर पर 39 पुल की योजनाएं स्वीकृत की गयीं.

ऑडिट के दौरान इसमें से आठ जिलों ( रांची, दुमका, पलामू, कोडरमा, गुमला, धनबाद,सरायकेला, पाकुड़) में 214 पुलों को नमूना जांच के लिए चुना गया. 214 में 57 पुलों यानी 27 प्रतिशत पुलों के निर्माण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पायी गयी. 57 में से 26 पुल ग्रामीण नेटवर्क से बाहर पाये गये. 57 में से 14 पुलों के पहुंच पथ के लिए निजी या वन भूमि के अधिग्रहण की जरूरत थी.

हालांकि योजना तैयार करते वक्त जमीन की जरूरत का उल्लेख नहीं किया गया. पुलों के निर्माण के दौरान कार्यपालक अभियंताओं ने जमीन के अधिग्रहण की जरूरत की जानकारी सरकार को दी. इसमें से नौ पुलों को छह साल तक में पूरा नहीं किया जा सका. इससे 25.27 करोड़ रुपये का खर्च बेकार साबित हुआ. नियमानुसार इन पुलों को छह महीने में पूरा करने था.

कोडरमा में 500 मीटर की दूरी पर दूसरा पुल :

कोडरमा जिले के ततरां-बासोडीह गांव के बीच वर्ष 2008 में पुल की योजना स्वीकृत की गयी थी. इसे 4.10 करोड़ की लागत से वर्ष 2014 में पूरा किया गया. फिर उसी कोशी नदी पर तेतरां और कुसना के बीच 4.60 करोड़ की लागत से और दसारोखुर्द-परसाबाद रेलवे स्टेशन के बीच 4.44 करोड़ की लागत से वर्ष 2014 और 2017 में दो पुलों की स्वीकृति दी गयी. जांच के दौरान पाया गया कि बाद में स्वीकृत दोनों पुलों की बीच की दूरी सिर्फ 500 मीटर है. वर्ष 2011 में स्वीकृत पुल का उपयोग ग्रामीण कर रहे हैं. दूसरा पुल अब भी अधूरा है.

गुमला में एक ही गांव के लिए दो पुल :

नमूूना जांच के दौरान पाया गया कि गुमला के रायडीह में वर्ष 2011 और 2014 में एक-एक पुल की योजना स्वीकृत की गयी. दोनों पुल एक ही गांव को कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए स्वीकृत किये गये थे. एक पुल की लागत 4.14 करोड़ और दूसरे की लागत 6.71 करोड़ रुपये है. पहले स्वीकृत पुल का इस्तेमाल ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है. दूसरा पुल अब भी अधूरा पड़ा हुआ है.

पुल का इस्तेमाल पार्किंग और पशुशाला की तरह :

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया कि धनबाद के स्थानीय विधायक की अनुशंसा पर बने पुल का इस्तेमाल पार्किंग और पशुशाला की तरह हो रहा है. विधायक की अनुशंसा पर 1.13 करोड़ रुपये की लागत से बने पुल का रास्ता पहले से बने मकानों की वजह से बाधित है. 5.5 मीटर चौड़े रास्ते में से 1.5 मीटर पहले से बने मकान की वजह से बाधित है. इससे पुल पर भारी वाहन नहीं चल सकते हैं. संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान पुल का इस्तेमाल पार्किंग और पशुशाला के रूप में करते पाया गया.

सरायकेला में पुल के पहुंच पथ के आगे कोई सड़क नहीं :

मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना के तहत सरायकेला में 4.88 करोड़ की लागत पर पुल का निर्माण किया गया. खरकई नदी पर हुंडादाग और धर्मडीहा गांव के बीच पुल का निर्माण किया गया है. विभाग के इंजीनियरों और ऑडिट टीम के सदस्यों के साथ किये गये भौतिक सत्यापन में इस पुल के पहुंच पथ के आगे कोई संपर्क पथ नहीं पाया गया.

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