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Jharkhand News : बंद खदानों का जलस्रोत बना आजीविका का आधार, मछली पालन के इस तकनीक के जरिये विस्थापित बन रहे स्वावलंबी

jharkhand fisheries scheme : बालेश्वर गंझू खलारी प्रखंड मत्स्य जीव सहयोग समिति लिमिटेड के अध्यक्ष भी हैं. ये बताते हैं कि समिति में कई विस्थापित परिवार हैं. इन सभी को रांची जिला प्रशासन की ओर से पांच केज कल्चर उपलब्ध कराया गया है. इसमें मछली पालन किया जा रहा है. इसके अलावा पांच लाइफ जैकेट, एक नाव, शेड हाउस, चारा और मछली का बीज भी प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराया गया है.

By Prabhat Khabar News Desk | February 12, 2021 8:58 AM

fish farming in jharkhand latest news, fish hatchery in jharkhand latest news रांची : बालेश्वर गंझू उन विस्थापित परिवारों में से एक परिवार के मुखिया हैं, जिनकी जिंदगी कुछ साल पहले तक आसान नहीं थी. सिलोनगोडा माइंस परियोजना की वजह से विस्थापित ये परिवार खेतीबारी और मजदूरी कर अपनी आजीविका चला रहे थे. अब ये विस्थापित परिवार रांची जिला प्रशासन और मत्स्य विभाग की योजना से जुड़कर मछली पालन कर जीवन को खुशहाल बना रहे हैं. सरकारी सहायता और फिश को-ऑपरेटिव की सहायता से इन परिवारों को केज कल्चर के जरिये मछली पालन का प्रशिक्षण दिया गया.

बालेश्वर गंझू खलारी प्रखंड मत्स्य जीव सहयोग समिति लिमिटेड के अध्यक्ष भी हैं. ये बताते हैं कि समिति में कई विस्थापित परिवार हैं. इन सभी को रांची जिला प्रशासन की ओर से पांच केज कल्चर उपलब्ध कराया गया है. इसमें मछली पालन किया जा रहा है. इसके अलावा पांच लाइफ जैकेट, एक नाव, शेड हाउस, चारा और मछली का बीज भी प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराया गया है.

डीएमएफटी योजना के तहत केज विधि से मत्स्य पालन

रांची जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ अरुप कुमार चौधरी ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में मछली पालन के लिए सिलोनगोडा तालाब कोल फील्ड माइंस के लिए डिस्ट्रिक मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) योजना के तहत केज विधि से मत्स्य पालन की स्वीकृति दी गयी.

इस योजना का संचालन सिलोनगोडा माइंस के विस्थापितों के लिए किया गया. को-ऑपरेटिव सोसाइटी का भी गठन किया गया. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई इस योजना में 25 से 30 टन मछली का उत्पादन किया जा सकता है. कोरोना की वजह से प्रोजेक्ट देर से शुरू हुआ, फिर भी अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं.

केज के माध्यम से यहां पांच सौ लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. इससे पलायन पर अंकुश लगेगा. इससे तीन तरह से लोगों को फायदा होगा. पहला रोजगार उपलब्ध होगा, दूसरा स्थानीय बाजारों में मछली की उपलब्धता होगी और तीसरा मछली यानी प्रोटीन की वजह से कुपोषण की समस्या भी दूर होगी.

फिश को-ऑपरेटिव की सहायता से केज कल्चर के जरिये मछली पालन का दिया जा रहा प्रशिक्षण
क्या है केज कल्चर

केज मत्स्य पालन की एक नई तकनीक है. इसमें एक मच्छरदानी जैसी जाली को उल्टा कर जलाशय में लगाया जाता है. उसमें मछली का बीज डाला जाता है, जो जाल के घेरे में ही तेजी से बड़ा होता है. कोल फील्ड माइंस व स्टोन माइंस के जलाशयों में लोगों की सहभागिता से मछली पालन किया जा रहा है. इससे रोजगार उपलब्ध हो रहा है. यही वजह है कि भारत के साथ-साथ कई देशों में केज तकनीक का उपयोग कर लोगों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है.

बंद खदानों के जलस्रोत बने आजीविका के आधार

खलारी में मत्स्य पालन के लिए जलस्रोत है. यहां बंद खदान के जलस्रोत का पहले कोई उपयोग नहीं हुआ. अब यहां केज कल्चर के जरिए मछली पालन किया जा रहा है . केज कल्चर से उत्पादित मछलियां बाजारों में उपलब्ध करायी जा रही हैं. इसमें समिति को एक लाख 10 हजार रुपये की आमदनी हुई है. आनेवाले दस से पंद्रह साल तक बंद पड़ी खदानों के जलाशयों में मत्स्य उत्पादन की यह प्रक्रिया चलती रहेगी.

रामगढ़ की आराकेरम खदान में मछली पालन

मत्स्य निदेशक एचएन द्विवेदी ने बताया कि खलारी की तरह रामगढ़ के आरकेरम में भी बंद खदान में केज कल्चर से मत्स्य पालन किया गया है. जिससे लोगों की आजीविका चल रही है. वहीं कुछ अन्य बंद खदानों में मत्स्य पालन शुरू किया गया है. विभाग द्वारा ऐसी सभी बंद खदानों में मत्स्य पालन की योजना है, जहां जलाशय बन गया है. रांची के हटिया डैम, कांके डैम, गेतलसूद डैम, मांडर के बुचाऊ जलाशय और करौंजी जलाशय में भी केज कल्चर से मत्स्य पालन हो रहा है.

Posted By : Sameer Oraon

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