Jharkhand news : क्या है टेलीमेडिसिन विंग का सेटेलाइट एंटिना, जिस पर सुखाये जा रहे कपड़े
टेलीमेडिसिन विंग
Ranchi news रांची : इसरो का सपना साकार होता, तो आज रिम्स व यहां के डॉक्टर टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में रोल मॉडल साबित होते. लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और अनदेखी के चलते 14 साल पहले देखा गया यह सपना टूट गया है और टेलीमेडिसिन यूनिट के लिए लगाये गये सेटेलाइट एंटिना पर अब कपड़े सुखाये जा रहे हैं.
दूसरे कई राज्यों में सफलता के साथ इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है और दूर-दराज के लोगों को भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की देख-रेख में इलाज का लाभ मिल रहा है. 23 मार्च 2006 को रिम्स में टेलीमेडिसिन यूनिट का शुभारंभ किया गया था. इसके लिए इसरो ने उपकरण और तकनीक उपलब्ध करायी थी, जबकि रिम्स ने यूनिट के लिए जगह और मैन पावर का इंतजाम किया था.
ये है टेलीमेडिसिन विंग…
इसरो की मंशा थी कि रिम्स को देश के बड़े चिकित्सा संस्थानों और अस्पतालों से जोड़ा जाये, ताकि यहां के डॉक्टर मेडिकल साइंस की नयी जानकारियां हासिल करें, सर्जरी की तकनीक सीख सकें और खुद को अपग्रेड कर विभिन्न जिलों व सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के डॉक्टरों को इलाज में सहयोग करें.
टेलीमेडिसिन यूनिट के संचालित नहीं होने के सवाल पर रिम्स के विशेषज्ञ डॉक्टर कहते हैं : कोरोना काल में यह यूनिट राज्य के लिए सौगात साबित हो सकती थी. विभिन्न जिलों के कोरोना संक्रमितों को रिम्स नहीं आना पड़ता, बल्कि रिम्स के विशेषज्ञ डॉक्टर यहीं से उन्हें परामर्श दे सकते थे.
जिला अस्पतालों में पांच बेड की आइसीयू होती, तो यहीं से होती मॉनिटरिंग
रिम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताया कि टेलीमेडिसिन यूनिट का संचालन होता, तो जिला अस्पताल में तीन से पांच बेड की क्षमतावाली आइसीयू भी तैयार की जा सकती थी. इसमें मुश्किल से पांच से 10 लाख का खर्च आता. आयुष्मान भारत योजना के फंड से यह सेटअप जिला अस्पताल में तैयार हो जाता. वहां के डॉक्टर सीधे रिम्स के टेलीमेडिसिन यूनिट से जुड़ जाते और परामर्श ले सकते थे. कोरोना के गंभीर मरीजों की यहीं से मॉनिटरिंग होती. हम कई मरीजों की जान बचा पाते.
दूसरे जिलों के 150 से ज्यादा कोरोना संक्रमितों का इलाज हुआ है रिम्स में
रिम्स के डिडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल सेंटर (डीसीएचसी) में रोजाना विभिन्न जिलाें से दो-तीन कोरोना संक्रमित इलाज कराने आते हैं. रिम्स में ऐसे 150 से ज्यादा कोरोना संक्रमितों का इलाज किया जा चुका है. वहीं, विभिन्न जिला अस्पतालों से रेफर किये गये 20 से 25 गंभीर कोरोना संक्रमित भी यहां आये, लेकिन उन्हें लाने में देर हुई, जिसकी वजह से उनकी जान चली गयी. अगर टेलीमेडिसिन यूनिट होती, तो उन मरीजों को यहां लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
posted by : sameer oraon