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झारखंड नियोजन नियमावली: हाईकोर्ट की टिप्पणी- बिना किसी अध्ययन के बना दी भेदभावपूर्ण, असंवैधानिक नीति

झारखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान नियमावली से संबंधित मूल संचिका मंगायी थी. उसका अवलोकन करने पर पाया गया कि नियमावली बनाते समय जो शर्तें लागू की जा रही थी, उसके पीछे के आशय व उद्देश्यों का अध्ययन नहीं कराया गया

झारखंड हाइकोर्ट ने जेएसएससी स्नातक स्तर परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021 को सुनवाई के बाद 15 दिसंबर गुरुवार को निरस्त कर दिया था. इससे संबंधी अपने 111 पेज के आदेश में फैसले की विस्तृत चर्चा की है. इसमें हाइकोर्ट ने कहा है कि बिना विस्तृत अध्ययन कराये तथा बिना किसी स्पष्ट आंकड़े के ही राज्य सरकार ने भेदभावपूर्ण व असंवैधानिक नीति बना दी है.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नियमावली से संबंधित मूल संचिका मंगायी थी. उसका अवलोकन करने पर पाया गया कि नियमावली बनाते समय जो शर्तें लागू की जा रही थी, उसके पीछे के आशय व उद्देश्यों का अध्ययन नहीं कराया गया. मोटे ताैर पर बिना किसी स्पष्ट आधार के ही नियमावली बना दी गयी. राज्य के वैसे अभ्यर्थी, जो राज्य के स्थायी निवासी हैं और अनारक्षित श्रेणी के हैं, उन्हें सिर्फ इसलिए चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया कि उन्होंने मैट्रिक व इंटर की शिक्षा राज्य के बाहर के संस्थानों से प्राप्त की है. यह स्पष्ट तौर पर संविधान में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन है. नियमावली भेदभावपूर्ण है. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है.

सभी पक्षों को सुनने तथा सुप्रीम कोर्ट व अन्य हाइकोर्ट के विभिन्न न्यायादेशों का संदर्भ देते हुए चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी संशोधित नियमावली को निरस्त कर दिया. कोर्ट ने अंतरिम आदेश के आलोक में चल रही नियुक्ति प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया. साथ ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग को नये सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने 15 दिसंबर को दिये अपने फैसले में भाषा के पत्र से हिंदी व अंग्रेजी को हटाये जाने के संबंध में भी उपबंधित शर्तों की विस्तृत चर्चा की है. कोर्ट ने कहा कि क्षेत्रीय व जनजातीय भाषाओं को प्राथमिकता देने से राज्य के सुदुरवर्ती क्षेत्रों में कर्मियों को काम करने में सुविधा होगी अथवा प्रतिफल लाभकारी होगा, यह कहना उचित नहीं है. भाषाओं के संबंध में भी विभिन्न भाषाओं का प्रयोग करनेवाली जनसंख्या तथा संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव आदि के संबंध में राज्य सरकार की ओर से कोई विस्तृत अध्ययन नहीं करवाया गया है.

कोर्ट ने सरकार की दलील को किया खारिज

कोर्ट ने प्रार्थी के वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार की दलील को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार के वरीय अधिवक्ताओं ने अपनी बहस में कहा था कि हिंदी-अंग्रेजी का पेपर अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किये जाने के कारण पेपर-2 से हटाया गया है. अजीत कुमार ने कोर्ट को बताया था कि पेपर-2 में प्राप्त अंकों को अंतिम चयन के लिए मेरिट अंक के रूप में शामिल किये जाने के कारण राज्य में वर्तमान परिस्थिति के आधार पर हिंदी-अंग्रेजी को विषयों की सूची से बाहर करना गलत है.

यह भेदभाव पैदा करनेवाली सरकार की नीति है, जिसे निरस्त किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी रमेश हांसदा, कुशल कुमार, विकास कुमार चाैबे, अभिषेक कुमार दुबे, रश्मि कुमारी, भवानी सिंह, त्रिभुवन व अन्य की ओर से अलग-अलग रिट याचिका दायर कर जेएसएससी संशोधन-2021 नियमावली को चुनाैती दी गयी थी.

कोर्ट ने यह भी कहा

कोर्ट राज्य सरकार की इस तर्क से सहमत नहीं है, कि पात्रता का अर्थ किसी वर्ग के उम्मीदवार को चयन की प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित करना नहीं है, बल्कि पात्रता का मतलब एक नीति के माध्यम से एक या दूसरे उम्मीदवारों की पात्रता तय करना है. निश्चित रूप से किसी विशेष राज्य/क्षेत्र से शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने के आधार पर छात्रों के एक वर्ग को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है अन्यथा यह क्षेत्रवाद को जन्म देगा, जो भारत के संविधान की भावना के खिलाफ होगा. संविधान जो केवल एक भारतीय नागरिकता को मान्यता देता है और जब एक नागरिकता है, तो केवल शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने के आधार पर एक ही वर्ग के खिलाफ श्रेणी क्यों होगी.

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