रांची, सुनील कुमार झा:
झारखंड गठन के बाद से ही झारखंड में अधिकतर नियुक्तियों के मामले विवादों में रहे हैं. एक नियुक्ति प्रक्रिया आठ से 10 वर्षों तक चली है. राज्य में लगभग हर नियुक्ति के बाद नियमावली बदल जाती है. नियमावली बनने के साथ अभ्यर्थियों की नियुक्ति होने तक मुकदमा चलता रहता है. इसका एक प्रमुख कारण नियमावली के प्रावधान हैं. ‘प्रभात खबर’ ने कुछ ऐसी ही नियमावलियों और उनके प्रावधानों को सामने लाने का प्रयास किया है, जो यह दर्शाते हैं कि अधिकारी किस प्रकार आंखें मूंद कर नियमावली बनाते हैं.
नियमावली बनाते वक्त अधिकारी यह जानकारी लेना उचित नहीं समझते कि राज्य में स्कूली स्तर पर किस विषय की पढ़ाई होती है और किस विषय की नहीं. जो विषय मैट्रिक में अनिवार्य नहीं है, उसे भी परीक्षा में अनिवार्य कर दिया जाता है. ऐसे में संबंधित नियमावली के आधार पर होनेवाली परीक्षा आयोजन से पहले ही न्यायालय पहुंच जाती है.
इसके बाद मामला वर्षों तक विवादों में फंसा रहता है. आलम यह है कि अभ्यर्थी के योगदान देने के बाद भी नियुक्ति रद्द हो जा रही हैं. राज्य की अधिकतर नियमावलियों को तैयार करने में अधिकारी अपनी जानकारी को अंतिम मान लेते हैं. न तो उसका ड्राफ्ट जारी करते हैं और न ही उस पर आपत्ति मांगते हैं. हां! दूसरे राज्यों की नियमावली जरूर देखते हैं. इसमें भी कई बार नियमावली बनाने में विसंगति रह जाती है.
राज्य में पिछले 12 वर्ष में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) की तीन नियमावली बनी हैं. हालांकि, छह वर्ष से एक परीक्षा नहीं हुई है. परीक्षा से पहले मामला हाइकोर्ट पहुंच गया है. नियमावली में कहा गया है कि राज्य में अंग्रेजी को कक्षा एक से पांच में अनिवार्य किया गया है.
इस आलोक में इंटर प्रशिक्षित श्रेणी (कक्षा एक से पांच के लिए होनेवाली टेट) के अभ्यर्थियों को मैट्रिक स्तर पर अंग्रेजी विषय में उत्तीर्ण होना अनिवार्य होगा. पर राज्य में मैट्रिक में अंग्रेजी अनिवार्य नहीं है. विद्यार्थियों के लिए दो भाषा की परीक्षा में शामिल होना अनिवार्य है.
इन दो भाषा में से एक हिंदी या अंग्रेजी होना अनिवार्य है. वहीं, तीसरी भाषा संस्कृत के अलावा मैट्रिक में होनेवाली कोई भी जनजातीय या क्षेत्रीय भाषा हो सकती है. ऐसे में अगर कोई विद्यार्थी हिंदी का चयन करता है एवं वह दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी को छोड़ किसी अन्य भाषा का चयन करके भी वह मैट्रिक परीक्षा में शामिल हो सकता है. इसके अलावा अगर कोई विद्यार्थी छठे विषय के रूप में अंग्रेजी रखता भी है और उसमें फेल हो जाता है, तो भी वह मैट्रिक पास है. ऐसे में अंग्रेजी को अनिवार्य कैसे किया जा सकता है?
वर्ष 2022 में राज्य में प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति के लिए नियमावली बनायी गयी. इसमें सीधी नियुक्ति की जगह परीक्षा का प्रावधान किया गया. परीक्षा में मातृभाषा में विद्यार्थियों 30 फीसदी अंक लाना अनिवार्य किया गया है. झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा ली जानेवाली मैट्रिक की परीक्षा में मातृभाषा के नाम से किसी विषय को चिह्नित नहीं किया गया है.
मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होनेवाले लगभग 90 फीसदी विद्यार्थी हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत विषय से परीक्षा में शामिल होते हैं. परीक्षा में मातृभाषा के अलावा जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की परीक्षा ली जायेगी. जब जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की परीक्षा ली जायेगी, तो फिर मातृभाषा कौन सी होगी? नियमावली में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है. नियुक्ति में इसको लेकर भी पेच फंस सकता है.
हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति नियमावली में भी पिछले वर्ष बदलाव किया गया है. वर्ष 2015 की नियमावली में संबंधित विषय में 45 फीसदी अंक के साथ बीएड पास होना अनिवार्य था. अब नये प्रावधान के अनुरूप नियुक्ति वाले विषय में स्नातक में तीन वर्ष की पढ़ाई अनिवार्य की गयी है. हाइस्कूल में इतिहास व नागरिक शस्त्र, रसायन व जीव विज्ञान की पढ़ाई तो अलग-अलग होती है, लेकिन पद केवल इतिहास व जीव विज्ञान का है.
ऐसे में राजनीति शास्त्र से स्नातक करनेवाले वैसे विद्यार्थी, जिनका सब्सिडियरी इतिहास था, उन्हें आवेदन करने का मौका दिया गया था. उल्लेखनीय है कि स्नातक में सब्सिडियरी की पढ़ाई दो वर्ष तक ही होती है. नयी नियमावली में संबंधित विषय में स्नातक में तीन वर्ष की पढ़ाई अनिवार्य कर दी गयी है.
ऐसे में अब राजनीति शास्त्र से स्नातक करनेवाले अभ्यर्थी नागरिक शास्त्र विषय के लिए आवेदन जमा नहीं कर पायेंगे. क्योंकि, उन्होंने तीन वर्ष तक स्नातक में इतिहास की पढ़ाई नहीं की है. इसी प्रकार की परेशानी रसायन शास्त्र के विद्यार्थियों को भी होगी.