झारखंड में 10 साल से पंचायती राज व्यवस्था चल रही है. सरकार ने मॉडल पंचायत का संकल्प जारी कर रखा है. पर अब भी कई पंचायतें आधारभूत संरचना की कमी से जूझ रहे हैं. कहीं बिजली और कंप्यूटर का अभाव है, तो कहीं पंचायत भवन ही नहीं है. राज्य के 24 में से 23 जिलों में पंचायत भवन में कर्मचारियों के बैठने के लिए रोस्टर तक लागू नहीं है. हालांकि, सरकार ने कर्मचारियों के लिए रोस्टर बना रखा है.
आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 4345 पंचायतें हैं. इनमें से 171 में पंचायत भवन नहीं है. सिर्फ तीन जिलों- हजारीबाग, जामताड़ा और गोड्डा की सभी पंचायतों में पंचायत भवन हैं. रांची जिले की दो पंचायतों में पंचायत भवन नहीं हैं. राज्य की 637 पंचायतों में अब तक बिजली की व्यवस्था नहीं हो सकी है. 1377 पंचायतों में जेनरेटर या इनवर्टर का इंतजाम नहीं है. इसी तरह 2017 पंचायत भवनों में सोलर पावर की व्यवस्था नहीं है. 824 पंचायत भवनों में कंप्यूटर की व्यवस्था नहीं है. 2185 पंचायत भवनों में प्रज्ञा केंद्र नहीं हैं. 3575 पंचायत भवनों तक एप्रोच रोड नहीं है.
सरकार ने पंचायत भवनों में बैठने के लिए कर्मचारियों का ड्यूटी रोस्टर बना रखा है. इसके तहत सोमवार को पंचायत सचिव, मंगलवार व शुक्रवार को हलका कर्मचारी, बुधवार को पंचायत सचिव, गुरुवार व शनिवार को रोजगार सेवक पंचायत भवन में सेवा देंगे. लेकिन धनबाद के 256 में से सिर्फ 165 पंचायत भवनों में ही रोस्टर लागू है. शेष किसी भी जिले में कर्मचारियों का ड्यूटी रोस्टर लागू नहीं है. ये सारी बदइंतजामी राज्य में 10 साल से लागू पंचायती राज व्यवस्था की वास्तविक स्थिति की हकीकत बयां करने को काफी है. राज्य में पहली बार वर्ष 2010, दूसरी बार 2015 और तीसरी बार 2022 में पंचायत चुनाव हुए हैं.