सतीश कुमार, रांची
झारखंड प्रदेश भाजपा का आंदोलन सोशल मीडिया तक सीमित रह गया है. ट्वीटर व फेसबुक समेत सोशल मीडिया के माध्यमों से प्रदेश भाजपा के नेता अपनी बात जनता तक पहुंचा रहे हैं. पिछले तीन साल में सिर्फ एक बार भाजपा का सड़क पर शक्ति प्रदर्शन देखने को मिला. विधानसभा में नमाज कक्ष खोलने के विरोध में प्रदेश भाजपा की ओर से विधानसभा का घेराव किया गया था.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश व भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर उतरे थे. इसमें पुलिस लाठीचार्ज हुआ, सांसद संजय सेठ, मेयर आशा लकड़ा समेत कई लोगों पर केस भी दर्ज हुआ था. इसके अलावा चार बार प्रदेश भाजपा के नेता सड़क पर उतरे, लेकिन कोई भी आंदोलन प्रभावशाली नहीं रहा.
कोरोना काल में प्रदेश भाजपा की ओर से तालाबों पर छठ नहीं करने के आदेश के खिलाफ, किसानों के समर्थन में खेत में प्रदर्शन, अंकिता मर्डर केस के विरोध में जिलों में सरकार का पुतला दहन कार्यक्रम आयोजित हुआ. योग दिवस पर पार्टी के नेताओं ने मैदान में उतर कर योग किया. वहीं दूसरी तरफ महानगर भाजपा, किसान मोर्चा, भाजयुमो, महिला मोर्चा की ओर से समय-समय पर अन्य मुद्दों के विरोध में सड़क पर उतर प्रतीकात्मक प्रदर्शन कर खानापूर्ति की गयी है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों चाईबासा में हेमंत सरकार के भ्रष्टाचार पर निशाना साधा. परंतु पिछले एक साल से प्रदेश भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर नहीं उतरी. हेमंत सोरेन को इडी ने समन किया. देश में पहली बार इडी ने किसी मुख्यमंत्री को समन किया. पूछताछ के लिए बुलाया.
इस मुद्दे पर भी पार्टी की ओर से प्रेस कांफ्रेस व बयान जारी कर रस्म अदायगी भर की गयी. अधिकतर बड़े-छोटे भाजपा नेता सिर्फ ट्विटर-फेसबुक पर ही सक्रिय रहे. यही नहीं, हेमंत सरकार के तीन वर्ष पूरा होने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने आरोप पत्र जारी किया, लेकिन इस कार्यक्रम में पार्टी का कोई अन्य सांसद, विधायक और प्रमुख नेता मौजूद नहीं रहा. पार्टी की ओर से प्रेस कांफ्रेंस कर ही सरकार पर निशाना साधा गया. सड़क पर कोई नहींं उतरा.
प्रदेश भाजपा में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. पार्टी ऊपर से तो एक दिखती है, लेकिन अलग-अलग खेमों में बंटी लग रही है. पार्टी के अंदर कई पावर सेंटर बन गये हैं. प्रदेश के आला नेता अलग-अलग रास्ता नाप रहे है़ं राज्य सरकार के खिलाफ सामूहिकता नहीं दिख रही है़ किसी घटना या दुर्घटना में नेता संबंधित पीड़ित के घर पहुंच रहे हैं, लेकिन सबका अलग-अलग दौरा है.
प्रदेश भाजपा में सात प्रवक्ता नियुक्त किये गये हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया टीम में भी पांच सदस्य हैं. परंतु प्रवक्ताओं को बोलने की आजादी नहीं है. इनके मुंह बंद हैं. यही वजह है कि पिछले एक साल के अंदर इनके इक्के-दुक्के बयान ही जारी हुए. प्रदेश अध्यक्ष ही मोर्चा संभाल रहे हैं. वह खुद ही दूसरे दलों के नेताओं को काउंटर कर रहे है़ंं
प्रवक्ताओं के लिए पहले तो दिन तय किये गये थे, किस दिन किसकी बारी, पर वह सब बंद है. यदा-कदा किसी चैनल पर पार्टी का कोई नेता बैठा मिल जाता है. इधर प्रदेश भाजपा की कमेटी के तीन साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन अब तक पार्टी की ओर से अधिकारिक तौर पर कार्यसमिति सदस्यों की सूची तक जारी नहीं की गयी है. कई बार आरोप भी लगे कि बैक डोर से नेताओं को कार्यसमिति में जगह दी जा रही है.