रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान के अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो गलत बयानी कर रहे हैं. उनका कहना है कि बिना किसी पत्र या गजट के कुर्मी को क्यों 1931 में एसटी सूची से बाहर किया गया? यदि कुर्मी एसटी नहीं हैं, तो उनकी जमीन सीएनटी में कैसे है? श्री मुर्मू ने कहा कि मंत्री जगरनाथ महतो को ज्ञात होना चाहिए कि सीएनटी कानून की धारा 46 (बी) के तहत एससी और ओबीसी की भी जमीन की रक्षा के लिए सीएनटी में प्रावधान है.
जगरनाथ महतो का दावा है कि हम 1950 के पहले तक एसटी में शामिल थे, यह दावा दमदार नहीं है. 1931 की जनगणना में भी अंग्रेजों द्वारा जारी सेंसस ऑफ इंडिया- 1931 वॉल्यूम-7, बिहार एंड ओडिशा, पार्ट वन रिपोर्ट द्वारा डब्ल्यू जी लेसी में इंपीरियल टेबल 18 और 17 में इनका नाम नहीं है. उन्होंने कहा कि डब्ल्यू जी लेसी, आइसीएस द्वारा सेंसस ऑफ इंडिया-1931 के अपेंडिक्स-5 में वर्णित “छोटानागपुर के कुर्मी” के पेज 293 और पेज 294 में लिखा है कि ऑल इंडिया कुर्मी क्षत्रिय कान्फ्रेंस, मुजफ्फरपुर (बिहार) में 1929 को हुआ था.
इसमें मानभूम के कुर्मी महतो भी शामिल हुए थे. वहां पर फैसला लिया गया था कि छोटानागपुर के कुर्मी, बिहार के कुर्मी के बीच में कोई भी अंतर नहीं है. उसी प्रकार वर्ष 1929 में एक विशाल जनसभा मानभूम जिले के घगोरजुड़ी में हुई थी. इसमें छोटानागपुर, उत्तर प्रदेश और बिहार के कुर्मी बड़ी संख्या में जुटे और उसी फैसले को दोहराया कि हम सब एक हैं और हमारे बीच में रोटी-बेटी का संबंध बना रहेगा. 1931 में भी ऑल इंडिया कुर्मी क्षत्रिय महासभा की बैठक बंगाल के मानभूम जिले में हुई.
वहां भी इसी बात को दोहराया गया. वहां अनेक कुर्मी प्रतिनिधियों ने जनेऊ या पोइता भी धारण किया. हिंदू धर्म को अपनाने का फैसला लिया और अपने आप को ऊंची जाति होने का दंभ भी भरा. इस कारण मंत्री जगरनाथ महतो का दावा तथ्यों से प्रमाणित नहीं होता है.
दूसरी बात 1950 में संविधान लागू होने के बाद ही एसटी, एससी आदि की सूची बनी है. उसके पहले ऐसी कोई सूची नहीं थी. अतः कुरमी जाति को 1931 की सूची से हटाना जैसी बात भ्रामक है, इसमें कोई तथ्य नहीं है. श्री मुर्मू ने कहा कि आदिवासी सेंगेल अभियान ऐसे नेताओं को बेनकाब करेगा. हमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा है.