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Jharkhand News : झारखंड की राजनीति में इस साल छाया रहा सरना कोड से लेकर ये मुद्दा, दिल्ली तक भी पहुंची आवाज

झारखंड के राजनीति में इस साल सरना कोड समेत ओबीसी समेत कई मुद्दे सदन पर छाये रहे, इसमें सबसे प्रमुख सरना कोड का मुद्दा रहा. जिसकी आवाज दिल्ली तक पहुंची. तो वहीं विपक्ष में बैठे बीजेपी के नेता आदिवासियों के बीच अपनी पकड़ बनाने में रहे

By Prabhat Khabar News Desk | December 27, 2021 12:57 PM

रांची : इस वर्ष झारखंड की राजनीति बहुत उठापटक से दूर रही. सत्ता संघर्ष से दूर रही है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार चल रही है, वहीं भाजपा विपक्ष की भूमिका में अपने तेवर में है. पिछले वर्ष झारखंड की राजनीति में कुछ मुद्दे जरूर छाये रहे. कुछ मुद्दों पर झारखंड की राजनीति गरम जरूर रही. झारखंड की राजनीति इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घुमती रही. राजनीतिक दल इनसे ही जमीन तलाशते रहे.

झारखंड की राजनीति में इस वर्ष धरना धर्म कोड का मामला छाया रहा. आदिवासियों की वर्षों पुरानी मांग को लेकर सत्ताधारी दलों ने मोर्चा खोला. जनगणना में सरना धर्म कॉलम जोड़ने को लेकर 20 वर्षों में पहली बार विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया.

इससे पहले विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति बनायी गयी. इसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर जनगणना में सरना धर्म का कॉलम जोड़ने की मांग रखी. इस मांग को लेकर आदिवासी संगठनों ने आंदोलन कर केंद्र पर दबाव बढ़ाया.

दिल्ली में आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने जुट कर अपनी आवाज को बुलंद करने का काम किया है. ओबीसी के आरक्षण का मुद्दा भी सदन से सड़क तक छाया रहा है. सभी राजनीतिक दल इसको लेकर मुखर रहे. झामुमो ने अधिवेशन कर आरक्षण की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया है. वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर सड़क पर भी उतरी. विपक्ष में आजसू इस मुद्दे पर सक्रिय है और लगातार गोलबंदी में जुटी है. भाजपा भी आवाज उठा रही है.

आदिवासियों में पकड़ बनाने को लेकर जुटे भाजपा के दिग्गज :

इस वर्ष देशभर के भाजपा के दर्जनों नेता झारखंड में जुटे. रणनीति के तहत झारखंड में भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक झारखंड में हुई. पिछली विधानसभा में आदिवासी सीटों पर पिछड़ने के बाद रणनीति के तहत आदिवासियों को साधने की नीति बनायी गयी. जानकारों का कहना है कि झारखंड में उसी दल की सरकार बनती है, जिसका आदिवासी सीटों पर कब्जा होता है.

झारखंड की राजनीति में रहा यूपीए का दबदबा

इधर, झारखंड की राजनीति में यूपीए का दबदबा रहा है. पिछले सभी उपचुनाव को जीत कर झामुमो ने ताकत बढ़ायी है. . पिछले वर्षों में तीन उपचुनाव हुए. इसमें दुमका-मधुपुर दोनों जीते. अपनी संख्या बल को बरकरार रखने में कामयाबी पायी है. वहीं एक सीट बेरमो पर कांग्रेस जीती. आने वाले राज्यसभा चुनाव में इसका असर दिख सकता है.

38 वर्ष बाद सत्ता में रहते हुआ झामुमो का महाधिवेशन

झामुमो का 12वां महाधिवेशन 18 दिसंबर का हुआ. 38 वर्षों बाद सत्ता में रहते हुए पहली बार झामुमो का महाधिवेशन हुआ है. महाधिवेशन में शिबू सोरेन लगातार 10वीं बार अध्यक्ष बने. कार्यकारी अध्यक्ष की कमान एक बार फिर हेमंत सोरेन को मिली. संविधान में संशोधन करते हुए पार्टी ने उपाध्यक्ष, महासचिव व सचिव के साथ-साथ कार्यसमिति के सदस्यों की संख्या घटायी.

कांग्रेस में बदलाव, राजेश ठाकुर को मिली कमान

कांग्रेस में इस वर्ष बड़ा बदलाव हुआ. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक व्यक्ति, एक पद की नीति का अनुसरण करते हुए वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव की जगह राजेश ठाकुर को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी. वहीं चार नये कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाये गये. इसमें सांसद गीता कोड़ा, विधायक बंधु तिर्की, पूर्व विधायक जलेश्वर महतो व शहजादा अनवर शामिल हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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