झारखंड: दवा के नाम पर मरीजों से मोटी रकम लेते हैं निजी व कॉरपोरेट अस्पताल, जानें कंपनियां कैसे करती है चालाकी

सूत्रों के अनुसार, किसी निजी या कॉरपोरेट अस्पताल की सीसीयू या आइसीयू में भर्ती मरीजों के इलाज में ‘मेरोपेनम’ और ‘फेरोपेनम’ के इंजेक्शन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. इसके हर दवा कंपनी ‘हाई एमआरपी’ और ‘लो एमआरपी’ की दवा बनाती है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 7, 2023 7:15 AM

राजीव पांडेय, रांची : ‘सुपरस्पेशियलिटी’ का टैग लगानेवाले निजी और कॉरपोरेट अस्पताल दवा के नाम पर सबसे ज्यादा पैसा बनाते हैं. इलाज पूरा होने पर जब ‘कुल खर्च’ में से ‘फार्मेसी के खर्च’ को अलग किया जाता है, तब मरीज को पता चलता है कि उसके इलाज में 60 से 70 फीसदी रकम सिर्फ दवाओं पर खर्च हुई है. इस खेल में निजी अस्पताल प्रबंधन, उनके डॉक्टर और दवा कंपनियां सीधे तौर पर शामिल होते हैं. वहीं, पैकेजिंग में उपलब्ध करायी गयी दवाओं ज्यादातर इंजेक्शन होता, जिस पर अस्पताल प्रबंधन को 60 से 70 फीसदी का मार्जिन मिलता है.

सूत्रों के अनुसार, किसी निजी या कॉरपोरेट अस्पताल की सीसीयू या आइसीयू में भर्ती मरीजों के इलाज में ‘मेरोपेनम’ और ‘फेरोपेनम’ के इंजेक्शन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. इसके हर दवा कंपनी ‘हाई एमआरपी’ और ‘लो एमआरपी’ की दवा बनाती है. मेरोपेनम (एक ग्राम) की दवा 781.50 रुपये, 950 रुपये, 1067 रुपये, 2200 रुपये और 3200 रुपये में उपलब्ध है. इस इंजेक्शन का उपयोग सुबह और शाम दोनों वक्त (बीमारी की गंभीरता के अनुसार) किया जाता है. इसका डोज एक सप्ताह का होता है. यानी हफ्ते भर में एक मरीज को इस दवा के लिए 15,400 से 22,400 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं.

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दवा कंपनियां ऐसे करती हैं चालाकी :

दवा कंपनियां ‘ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट’ के कानून से बचते हुए एंटीबायोटिक दवा (इंजेक्शन) की अधिक कीमत वसूलने के लिए इनकी पैकेजिंग में बदलाव कर देती हैं. मसलन- किसी इंजेक्शन की पैकेजिंग में सिरिंज को शामिल कर दिया जाता है या कुछ मॉलिक्यूल जोड़ दिये जाते हैं. इससे दवा कंपनियों को दवा की कीमत बढ़ाने की छूट मिल जाती है. इसके बाद जिस इंजेक्शन की कीमत 800 से 1,089 होनी चाहिए, उसे बढ़ा कर 3,618 रुपये तक कर दिया जाता है. इससे निजी अस्पतालों को हाई एमआरपी वाले इंजेक्शन का इस्तेमाल करना आसान हो जाता है.

निजी और कॉरपोरेट अस्पतालों में मरीज के इलाज पर सबसे ज्यादा (60 से 70%) खर्च दवाओं पर होता है. इस स्तर पर मुनाफा कमाने के लिए अस्पताल प्रबंधन सीधे दवा कंपनियों से डील करते हैं. दवा कंपनियां भी डिमांड के अनुसार एक ही मॉलिक्यूल और कंपोजिशन की दवाओं को अलग-अलग पैकेजिंग में अस्पतालों को उपलब्ध करा देती हैं. इनमें एक पैकेजिंग ‘हाई एमआरपी’ वाली और दूसरी पैकेजिंग ‘लो एमआरपी’ वाली होती हैं. इन दवाओं का इस्तेमाल मरीज की आर्थिक स्थिति का आकलन करने के बाद किया जाता है.

सामान्य बुखार के इंजेक्शन का दाम भी 600 रुपये

अस्पताल में भर्ती मरीज को बुखार के लिए भी हाई एमआरपी की दवाएं दी जाती हैं. सूत्रों के अनुसार, पैरासिटामोल इंजेक्शन का जो इंजेक्शन 150 से 200 में मिलता है. कंपनियां इसी इंजेक्शन पर 600 रुपये एमआरपी अंकित कर अस्पतालों को उपलब्ध कराती हैं. कॉरपोरेट अस्पताल भी हाई एमआरपी वाले पैरासिटामोल वाले इंजेक्शन का ही इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा अधिकांश मरीजों के इलाज में हाई प्राइस वाले पेंटोप्राजोल इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है.

दवाओं की हाई और लो एमआरपी

दवा हाई एमआरपी लो एमआरपी

मेरोपेनम 2,200-3,200 600-800

फेरोपेनम 2,300-3,200 600-800

सिफेक्सीम 300-400 100-150

पेंटोप्राजोल 80-120 35-50

पैरासिटामोल 600 150-200

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