झारखंड के लोक उपक्रमों में भारी गड़बड़ी की आशंका, 10 सालों से नहीं हुआ है आॉडिट, महालेखाकार ने दी जानकारी
समिति ने एजी से कहा कि उसकी रिपोर्ट में इस बात का पूरा ब्योरा हो कि इनका वित्तीय लेखा-जोखा कब से लंबित है. राज्य में सरकारी उपक्रमों की कार्यसंस्कृति कैसे बदली जाये
आनंद मोहन, रांची :
झारखंड के लोक उपक्रमों में भारी वित्तीय गड़बड़ी का अंदेशा है. राज्य में 30 लोक उपक्रम हैं, जिसमें 26 कार्यशील हैं. इन 26 लोक उपक्रमों का वित्तीय लेखा-जोखा 10 वर्षों से लंबित है. लोक उपक्रमों द्वारा वित्तीय लेखा-जोखा तैयार नहीं किये जाने के कारण इनका ऑडिट नहीं हो पा रहा है. झारखंड के महालेखाकार अनूप फ्रांसिस डुंगडुंग ने विधानसभा की कमेटी को बताया है कि समय पर एकाउंटिंग नहीं मिल पाने के कारण इन उपक्रमों का ऑडिट संभव नहीं हो पा रहा है. यह संबंधित उपक्रमों की जवाबदेही है कि वे वित्तीय लेखा-जोखा का हिसाब दें, जिससे अंकेक्षण समय पर हो. विधायक सरयू राय की सभापतित्व वाली लोक उपक्रम समिति की सोमवार को हुई बैठक में एजी को निर्देशित किया गया कि वह एक रिपोर्ट तैयार करे और ऐसे उपक्रमों की सूची दे. बैठक में महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह भी मौजूद थीं.
समिति ने एजी से कहा कि उसकी रिपोर्ट में इस बात का पूरा ब्योरा हो कि इनका वित्तीय लेखा-जोखा कब से लंबित है. राज्य में सरकारी उपक्रमों की कार्यसंस्कृति कैसे बदली जाये, इसे लेकर भी सुझाव दें. सरकार ने कार्यों को सुचारू बनाने के लिए निगम (कॉरपोरेशन) बनाये हैं. इनको बाहर जाकर कर भी कार्यादेश लाना चाहिए. श्री राय ने कहा कि ये कॉरपोरेशन सरकार को मुखौटा भर बनकर रह गये हैं. इस पर एजी श्री डुंगडुंग ने कर्नाटक में अपनी पोस्टिंग के अनुभव बताये. उन्होंने बताया कि कर्नाटक में 130 कॉरपोरेशन हैं. इनका लेखा-जोखा समय पर मिल जाता था. इससे ऑडिट भी समय पर हो जाता था. झारखंड में अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है.
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कॉरपोरेशन को सरकार काम देती, लेकिन आउट सोर्सिंग हो रहा है :
लोकउपक्रम समिति के सभापति सरयू राय ने बैठक में कहा कि पुलिस भवन निर्माण निगम, भवन निर्माण लिमिटेड जैसे संस्थानों को सरकार नॉमिनेशन के आधार पर काम देती है. सरकार से मिलनेवाले काम को ये आउट सोर्सिंग करते हैं. दूसरी एजेंसी से काम कराते हैं. अगर कॉरपोरेशन काम नहीं करा पा रहे, तो सरकार सीधे टेंडर क्यों नहीं कर दे. कॉरपोरेशन सरकार से मिलनेवाले राशि में 10-9 प्रतिशत रख लेती है. शेष राशि पर टेंडर निकालती है. निगम द्वारा सरकार को कोई लाभांश नहीं दिया जाता है. इस पर रोक लगनी चाहिए.
समिति को गंभीरता से नहीं लेते सचिव आधी-अधूरी आती है रिपोर्ट : सरयू राय
सरयू राय ने परिवहन विभाग के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में कहा कि विभागीय सचिव विधानसभा समिति को गंभीरता से नहीं लेते हैं. विभागीय सचिव को बुलाया जाता है, लेकिन कनीय अधिकारियों को भेजा जाता है. विभाग द्वारा आधी-अधूरी रिपोर्ट दी जाती है. वहीं बुलाने पर अवर और उप सचिव को भेज दिया जाता है. बार-बार रिपोर्ट मांगने के बाद भी विभाग समिति को उपलब्ध नहीं कराता है.