सुसाइड के मामले में झारखंड का देशभर में छठा स्थान, ज्यादातर युवा कर रहे आत्महत्या, जानें क्या कहते हैं डॉक्टर
जिंदगी से प्यार करो, छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर खुद पर दबाव नहीं डालें. राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के अनुसार आत्महत्या दर वृद्धिवाले राज्यों में झारखंड का छठा स्थान है. झारखंड में आत्महत्या करने वालों में युवा अधिक हैं. इन्हें रोकने के लिए डॉक्टर की राय है, पढ़िए.
Suicide Prevention Day: जिंदगी अनमोल है, लेकिन कई लोग बस छोटी-छोटी बात पर इसे दांव पर लगा देते हैं. छोटी सी विफलता या दबाव के आगे हिम्मत और हौसला खो देते हैं. वह यह नहीं समझ पाते हैं कि समस्याओं को अगर अलग नजरिये से देखा जाये, तो उसका समाधान संभव है. छोटी सी नामसझी और नादानी में खुद को मौत के हवाले करनेवाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत में आत्महत्या के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. दबाव झेलने की क्षमता कम हो रही है. ऐसे में अगर जरा सा भी निगेटिव सोच या ख्याल आये, तो मनोचिकित्सक या किसी एक्सपर्ट की सलाह जरूर लेनी चाहिए. मनोज सिंह की रिपोर्ट.
झारखंड में आत्महत्या करनेवालों में युवा अधिक
राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो का रिकॉर्ड बताता है कि एक हजार में 12 लोग आत्महत्या करते हैं. यह आंकड़ा अच्छा नहीं है. 2019 की तुलना में 2020 में आत्महत्या दर बढ़नेवाले राज्य में झारखंड में छठे स्थान पर है. यहां 2019 की तुलना में करीब 30% अधिक लोगों ने आत्महत्या की. इसमें भी आत्महत्या करनेवाले ज्यादातर युवा हैं, जिनकी उम्र 15 से 29 साल के बीच है. स्थिति चिंताजनक है.
एक साल में झारखंड में 2145 लोगों ने दी जान
एनसीआरबी का ताजा आंकड़ा बताता है कि देश में एक साल में 1.65 लाख लोगों ने आत्महत्या की. वहीं झारखंड में करीब 2145 लोगों ने आत्महत्या की. पिछले पांच वर्षों की तुलना में करीब एक फीसदी की वृद्धि है. बढ़ते हुए आंकड़े बताते हैं कि लोगों में तनाव बढ़ रहा है. 57 फीसदी लोग फांसी लगाकर आत्महत्या करते हैं. करीब 26 फीसदी लोग जहर खाकर आत्महत्या कर रहे हैं.
रोकथाम के लिए बनायी जा रही रणनीति
आत्महत्या की रोकथाम के लिए रणनीति भी बनायी जा रही है. इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं का प्रयास भी चल रहा है. इसके लिए व्यापक कार्ययोजना से ही उम्मीद है. वहीं डब्ल्यूएचओ का 2023 का वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे का थीम क्रिएटिंग होप थ्रू एक्शन है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एक कार्ययोजना से ही आत्महत्या जैसी सामाजिक समस्या से निपटा जा सकता है.
दैनिक मजदूरी करनेवाले भी ज्यादा दे रहे हैं जान
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि कामकाज के दृष्टिकोण से देखा जाये, तो सबसे अधिक आत्महत्या करने वाले दैनिक मजदूर थे. कुल संख्या के करीब 25 फीसदी दैनिक मजदूरों ने आत्महत्या की थी. इस अवधि के दौरान करीब 14 फीसदी घरेलू महिलाओं ने आत्महत्या की थी. 11 फीसदी स्वरोजगार करने वालों तथा 10 फीसदी बेरोजगारों ने भी आत्महत्या की थी.
मैट्रिक तक पढ़ाई करनेवाले ज्यादा दे रहे हैं जान
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि मैट्रिक तक पढ़ाई करनेवाले सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या करनेवालों में करीब 24 फीसदी इसी श्रेणी के होते हैं. यह समय पढ़ाई और काम के दबाव का होता है. लोगों में पढ़ाई और नौकरी मिलने का दबाव होता है. ऐसे में लोग गलत कदम उठा लेते हैं. आंकड़े बताते हैं कि करीब 80 फीसदी मौत इंटर तक पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं. उच्च शिक्षा वालों में आत्महत्या करने वालों की संख्या बहुत ही कम होती है.
तनाव के कारण शादीशुदा पुरुष ज्यादा करते हैं आत्महत्या
आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक आत्महत्या करनेवाले शादीशुदा लोग ही हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार में करीब 73 हजार शादीशुदा पुरुषों ने आत्महत्या की थी. वहीं शादीशुदा महिलाओं की संख्या करीब 29 हजार के आसपास ही थी. 25 हजार अविवाहित पुरुष और 12 हजार अविवाहित महिलाओं ने आत्महत्या की थी. पारिवारिक संबंध खराब होने पर (सेपरेशन) पर करीब एक हजार लोगों ने जान दी थी. करीब आठ सौ विधवाओं ने भी इस दौरान आत्महत्या की थी.
आत्महत्या की दर बढ़ी 2019 की तुलना में
राज्य — बढ़ोत्तरी (%)
उतराखंड — 82.8
मिजोरम — 54.3
हिमाचल प्रदेश — 46.7
अरुणाचल प्रदेश — 42.9
असम — 36.8
झारखंड — 30.5
देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या
वर्ष — संख्या
2016 — 131008
2017 — 129887
2018 — 134516
2019 — 139123
2020 — 153052
सपोर्ट सिस्टम को दुरुस्त किया जाये
रिनपास के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह का कहना है कि ज्यादातर आत्महत्या का कारण डिप्रेशन होता है. लोग अपनी जिंदगी से उम्मीद छोड़ने लगते हैं. यह सही नहीं है. कोई भी परेशानी कुछ समय या कुछ दिनों के लिए आती है. उसका रास्ता निकल जाता है. वह रास्ता अच्छा ही होता है. कभी अचानक घटी कुछ घटना से लोग परेशान हो जाते हैं. इस समय सपोर्ट सिस्टम की जरूरत होती है. यह परिवार या निकटतम लोगों से मिल सकती है. अगर कोई बार-बार नकारात्मक बात करे, तो उनको समझने की कोशिश करिये. उससे बात करिये. वह अपनी समस्या बतायेगा. उसका रास्ता निकलेगा. जरूरत पड़े तो चिकित्सकीय सलाह भी लें. कोशिश करें कि उसके एकाकी जीवन में सहयोग करें. छोटी पारिवारिक व्यवस्था में लोगों में समस्या झेलने की ताकत कम हो जाती है. परिवार का महत्व भी बताने की जरूरत होती है.
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परिवार का महत्व भी बताने की जरूरत होती है, निदान के लिए हो पहल
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अगर निगेटिव ख्याल आये, तो तत्काल मनोचिकित्सक की लें सलाह
14 दिनों तक निगेटिव ख्याल आये, तो मनोचिकित्सक से मिलें
आत्महत्या का प्रयास गलत कदम है. इसे रोकने के लिए मनुष्य के अंदर इन लक्षणों को पहचान कर उसे डॉक्टर के संपर्क में लाना आवश्यक है. अगर 14 दिनों तक दिमाग में लगातार निगेटिव ख्याल आये, तो मनोचिकित्सक से जरूर मिलें. इससे समय पर इलाज हो सकता है. यदि 14 दिन से अधिक समय तक निगेटिव ख्याल आता रहे, तो यह अवसाद का लक्षण हो सकता है. इसे छिपाएं नहीं, बल्कि शेयर करें. – डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक, रिनपास
अवसाद की सही समय पर पहचान कर इलाज कराना जरूरी
आत्महत्या के विचार लंबे समय तक अवसाद में रहने के कारण आते हैं. सही समय पर पहचान कर उपचार से इस प्रवृत्ति को दूर किया जा सकता है. काम में मन नहीं लगना, लगातार तनाव रहना और अकेले रहना, ये सब मानसिक रोग के लक्षण हैं. उचित परामर्श और चिकित्सा पद्धति से इसका उपचार किया जा सकता है. – डॉ केशव जी, मनोचिकित्सक
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