SC ST Reservation In Jharkhand रांची : एकीकृत बिहार के एससी, एसटी और ओबीसी कैटेगरी के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) पर सुनवाई की गयी. खंडपीठ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से उनका पक्ष जानना चाहा. केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल ने बताया कि पुनर्गठन के बाद बने राज्यों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण एक समान ही रहेगा, क्योंकि पिछड़ेपन की स्थितियां, जिसने उस खास जाति के लोगों को प्रभावित किया है, वे तत्कालीन एकीकृत राज्य के निवासियों से काफी कुछ समान होंगी.
वहीं, झारखंड सरकार के अपर महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने बताया कि राज्य सरकार हाइकोर्ट के बहुमत के फैसले का समर्थन कर रहा है और उसका विचार है कि प्रार्थी को बिहार व झारखंड, दोनों में आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. झारखंड राज्य के जो निवासी हैं, उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलेगा. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने कहा कि एक ही राज्य में आरक्षण का लाभ मिल सकता है. मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी. अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी. सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने सवाल रखा कि क्या आरक्षण का लाभ पा रहा अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति राज्य पुनर्गठन के बाद बने राज्य में भी वही सुविधाएं पाने का हकदार है अथवा नहीं.
खंडपीठ ने कहा कि चूंकि प्रार्थी पंकज कुमार की जाति को बिहार और झारखंड, दोनों राज्यों में अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी गयी है, तो दोनों राज्यों के लोगों को इसका लाभ क्यों नहीं दिया जा सकता. क्योंकि हो सकता है कि वे एक ही बिरादरी से हो.
खंडपीठ ने प्रार्थी से जानना चाहा कि यदि हम मान लें कि आप झारखंड में नौकरी करते हैं, तो आरक्षण का लाभ मिलेगा. 20 साल के बाद जब बिहार जायेंगे, तो आरक्षण का क्लेम कर सकते हैं या नहीं. इस बिंदु पर जवाब दें. दो पेज में लिखित जवाब भी पेश करें. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उदय यू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने सुनवाई की.
खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि उसके समक्ष ऐसा प्रश्न पहली बार आया है और जहां तक इस मामले का संबंध है, तो इस तरह का कोई फैसला उपलब्ध नहीं है. इसलिए वह इसकी जांच करना चाहेगा, क्योंकि यह मुद्दा कहीं भी हो सकता है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी पंकज कुमार ने एसएलपी दायर कर झारखंड हाइकोर्ट की लार्जर बेंच के 24 फरवरी 2020 के आदेश को चुनौती दी है.
हाइकोर्ट ने 2:1 के बहुमत से दिये गये अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता बिहार व झारखंड दोनों में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता और इस प्रकार से वह राज्य सिविल सेवा परीक्षा के लिए आरक्षण का दावा नहीं कर सकता. प्रार्थी का जन्म 1974 में हजारीबाग जिले में हुआ था. 15 वर्ष की आयु में वर्ष 1989 में वह रांची चले गये थे. 1994 में रांची की मतदाता सूची में भी नाम था. 1999 में एससी कैटेगरी में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए. सर्विस बुक में बिहार लिख दिया गया. बिहार बंटवारे के बाद उनका कैडर झारखंड हो गया. जेपीएससी में एससी कैटेगरी में आवेदन किया, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं देकर सामान्य कैटेगरी में रख दिया गया.
सिपाही पद से हटाये गये प्रार्थियों व राज्य सरकार की अोर से दायर अलग-अलग अपील याचिकाअों पर जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ में सुनवाई के दाैरान दो अन्य खंडपीठों के अलग-अलग फैसले की बात सामने आयी थी. इसके बाद जस्टिस मिश्र की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने नाै अगस्त 2018 को मामले को लार्जर बेंच में ट्रांसफर कर दिया.
वर्ष 2006 में कविता कुमारी कांधव व अन्य बनाम झारखंड सरकार के मामले में जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. वहीं वर्ष 2011 में तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने मधु बनाम झारखंड सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा.
झारखंड हाइकोर्ट में राज्य सरकार ने अपील दायर की थी. कहा था कि बिहार के स्थायी निवासी को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है. तीन न्यायाधीशों की लार्जर बेंच ने 2:1 के बहुमत से 24 फरवरी 2020 को फैसला सुनाया. लार्जर बेंच में जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति शामिल थे. हालांकि लार्जर बेंच में शामिल जस्टिस एचसी मिश्र ने जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति के उलट विचार दिया था.
जस्टिस मिश्र ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया. कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से झारखंड में ही रह रहे हैं. वे आरक्षण के हकदार हैं. इन्हें तुरंत सेवा में लिया जाये. जितने दिन आउट अॉफ सर्विस में रहे हैं, उसका वेतन का भुगतान नहीं किया जायेगा. हालांकि जस्टिस मिश्र के फैसले के ऊपर बहुमत से दिया गया (2:1) फैसला ही मान्य है, जिसमें कहा गया कि बिहार या दूसरे राज्यों में रहनेवाले आदिवासियों, पिछड़ों व अनुसूचित जाति के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.
Posted By : Sameer Oraon