संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि सरकार पिछली सरकार में अलग-अलग किये गये स्कूलों को मर्ज करेगी. इसके लिए उपायुक्तों से रिपोर्ट मांगी गयी है. सरकार ड्राप आउट रोकने के लेकर भी गंभीर है. कैसे बच्चे उच्च शिक्षा तक पढ़ाई करे, इसको लेकर रणनीति तैयार कर रही है. गुणवत्तायुक्त शिक्षा भी सरकार की प्राथमिकता में है. गर्मी के कारण स्कूलों के तय किये गये समय की भी सरकार समीक्षा करेगी. बच्चों को परेशानी नहीं होगी. राज्य की साक्षरता दर सुधारने को लेकर भी सरकार गंभीर है. इसको 90 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है.
मंत्री शुक्रवार को स्कूली शिक्षा सारक्षरता, उच्च शिक्षा और आइटी विभाग के बजट पर चर्चा के बाद सरकार का जवाब दे रहे थे. सरकार के जवाब का विपक्ष ने विरोध करते हुए बहिष्कार कर दिया. इसके बाद ध्वनिमत से स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग का 724 लाख रुपये का अनुदान मांग ध्वनिमत से पारित हो गया.
कटौती प्रस्ताव पेश करते हुए अनंत कुमार ओझा ने कहा कि सरकार ने शिक्षा विभाग का बजट घटा दिया है. 2022-23 में कुल बजट का 13.54 फीसदी शिक्षा विभाग को मिला था. इस बार 12.80 फीसदी ही मिला है. रघुवर दास की सरकार में तीन मेडिकल कॉलेज था. आज 983 स्कूलों में छात्राओं का टॉयलेट नहीं है. सरकार का निजी विद्यालयों पर नियंत्रण नहीं है.
कटौती प्रस्ताव का समर्थन करते हुए नीरा यादव ने कहा कि तीन सालों में सरकार ने अभी रेंगना ही सीखा है. रघुवर दास की सरकार ने पांच साल में पांच लाख लोगों को नौकरी दी थी. इस सरकार ने शिक्षकों का वेतन कम कर दिया है. जिनका 4200 रुपये ग्रेड पे था, उसका 2400 कर दिया है. इसको सरकार को वापस लेना चाहिए.
लंबोदर महतो ने कहा कि बिनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय ने कई स्थानीय भाषाओं की पढ़ाई बंद कर दी है. उसके स्थान पर उड़िया की पढ़ाई शुरू कर दी है. असल में वहां के कुलपति ओड़िशा के हैं. कई शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण हो गया है, लेकिन वह चालू नहीं हो पाया है. उसको चालू करने का प्रयास करना चाहिए. इधर, सरफराज अहमद ने कहा कि तीन साल पूरा हो गया है. अब घोषणाओं को पूरा करने का समय है. मथुरा महतो ने कहा कि पूर्व की सरकार ने जिन स्कूलों को बंद किया है. वह त्रुटिपूर्ण है. शिक्षा में बदलाव के सरकार के निर्णय का अच्छा असर दिखेगा.
प्रदीप यादव ने कहा कि राज्य में गुणवत्ता पूर्व शिक्षा आज भी चुनौती है. इसके लिए प्रभावी कदम उठाये जाने की जरूरत है. साक्षरता दर आज भी 73 फीसदी के आसपास ही है. सचिवालयों में कई ऐसे पदों पर आइएएस को पदस्थापित कर दिया गया है. वहां शिक्षा विभाग के विशेषज्ञ होने चाहिए. गृह जिलों में शिक्षकों के स्थानांतरण में कई शर्तें रख दी गयी है. इसको सरल करना चाहिए.