झारखंड महिला आयोग में न अध्यक्ष है और न सदस्य, लगातार बढ़ रहे हैं लंबित मामले
झारखंड महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्य नहीं होने के कारण यहां पूर्व में काम करनेवाले 14 कर्मचारियों का साल भर का वेतन अब भी बाकी है.
रांची : पीड़ित-प्रताड़ित महिलाओं को न्याय दिलानेवाला ‘राज्य महिला आयोग’ चार साल से ठप है. अध्यक्ष और सदस्य विहीन हुए इस आयोग को आज (छह जून को) चार साल पूरे हो जायेंगे. तब से लेकर आज तक यहां लंबित मामलों की संख्या बढ़ कर 5000 से ज्यादा हो चुकी है. इनमें पहले से लंबित मामले भी शामिल हैं. छह जून 2020 को पूर्व अध्यक्ष कल्याणी शरण का कार्यकाल पूरा होने के समय यहां 2374 मामले लंबित रह गये थे.
इधर, महिलाएं अपने साथ हुई हिंसा के मामले में न्याय की आस में आज भी आयोग में गुहार लगाती हैं, लेकिन यहां उनकी सुननेवाला कोई नहीं. लोगों को पता है कि आयोग में अध्यक्ष और सचिव नहीं हैं. संभवत: इसीलिए यहां फरियादी कम पहुंचते हैं. हालांकि, डाक के जरिये शिकायतें और फरियाद लगातार पहुंच रहे हैं. इनमें ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना और मानव व्यापार से जुड़े होते हैं, लेकिन इन मामलों के आवेदन पर मुहर लगा कर रिसीव करने के बाद उन्हें अलमारियों में रख दिया जा रहा है. आयोग का कार्यालय फिलहाल तीन कर्मचारियों-एक कंप्यूटर ऑपरेटर, एक सुरक्षा गार्ड, एक सफाई कर्मी और एक अवर सचिव के जिम्मे है, लेकिन अध्यक्ष के बिना यहां का कोई कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है.
14 कर्मचारियों का वेतन अब भी बाकी, एक का निधन :
झारखंड महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्य नहीं होने के कारण यहां पूर्व में काम करनेवाले 14 कर्मचारियों का साल भर का वेतन अब भी बाकी है. अध्यक्ष की स्वीकृति के बिना इन्हें वेतन देने का प्रावधान नहीं है. इनकी उपादेयता नहीं होने की बात कह कर इन्हें वहां से हटा भी दिया गया है. ये कर्मचारी आज भी वेतन मिलने की आस में हैं. आलम यह है कि वेतन की आस में यहां के एक सफाई कर्मचारी केशिया देवी का निधन भी हो गया है.
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5000 से ज्यादा मामले लंबित, न्याय की आस में आज भी कार्यालय का चक्कर लगा रही महिलाएं
रांची निवासी महिला कर्मचारी ने कार्यालय में अपने साथ हुए शारीरिक शोषण को लेकर वर्ष 2020 में महिला आयोग में आवेदन दिया था. पर इस मामले पर अब तक कोई सुनवाई नहींं हुई है. सुनवाई के अभाव में पीड़िता को उसके कार्यालय से निकाल दिया गया. बेरोजगार हो चुकी महिला अब भी न्याय की आस में भटक रही है.
केस -2
वर्ष 2021 में हजारीबाग की 60 वर्षीय महिला ने अपनी बहू के खिलाफ आवेदन दिया. महिला की बहू अपने सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहती थी, जबकि बेटा मां-बाप के साथ ही रहना चाहता था, जिसे लेकर पारिवारिक कलह अब भी जारी है. सुनवाई के इंतजार में वृद्ध महिला आज भी आयोग के कार्यालय के चक्कर काट रही है.