Jharkhand News: झारखंड के चक्रधरपुर के मझगांव के सुदूरवर्ती गांव की इंदिरावती तिरिया रेशम के धागों को बनाने के लिए कोकून की टेस्टिंग माइक्रोस्कोप से कर अपने जीवन में चमक बिखेर रही हैं. इंदिरावती कहती हैं कि उन्होंने कभी माइक्रोस्कोप का नाम भी नहीं सुना था, लेकिन आज उसका इस्तेमाल बखूबी टेस्टिंग में कर लेती हूं. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है. तसर खेती के अलावा उनके परिवार के पास कमाई का और कोई साधन नहीं है. रेशम की खेती पर ही पूरी तरह से उनका परिवार निर्भर है. उन्हें कभी लगा नहीं था कि तसर उनके लिए इतना फायदेमंद साबित होगा. सरकार द्वारा प्रशिक्षण मिला और आज सालाना 1, 69,000 रुपये तक कमा ले रही हैं. इंदिरावती जैसी करीब 18 हजार महिलाएं वैज्ञानिक तरीके से रेशम की खेती कर अपनी आजीविका को नया आयाम दे रही हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के निर्देश के बाद राज्य के वनोपजों से आजीविका सशक्तीकरण के जरिए ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है. इस ओर कदम बढ़ाते हुए प्राकृतिक रूप से तसर की खेती के लिए उपयुक्त झारखंड में सखी मंडल की दीदियों के जरिए रेशम की खेती को बड़े स्तर पर बढ़ावा देकर सुदूर ग्रामीण परिवारों की आजीविका को सशक्त किया जा रहा है. कभी रेशम की खेती में होने वाले घाटे से जो परिवार तसर की खेती करना छोड़ चुके थे, वे आज वैज्ञानिक तरीके से तसर की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं और दूसरों को भी इससे जोड़ रहे हैं.
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झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा क्रियान्वित रेशम परियोजना के जरिए बदलाव की यह कहानी लिखी जा रही है. वनों से भरपूर झारखंड के सुदूर जंगली इलाकों में वनोपजों को ग्रामीण परिवार की आजीविका से जोड़ने की मुख्यमंत्री की यह पहल सफल साबित हो रही है. इस पहल के जरिए राज्य की करीब 18 हजार ग्रामीण महिलाओं को तसर की वैज्ञानिक विधि से जोड़ कर उनकी आमदनी में इजाफा के लिए कार्य किया जा रहा है. प्रोजेक्ट रेशम के तहत उत्पादक समूह का गठन कर उसे तकनीकी मदद के साथ जरूरी यंत्र एवं उपकरण भी उत्पादक समूहों को उपलब्ध कराए जाते हैं. इस पहल के जरिए तसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए करीब 482 सखी मंडल की बहनों को ‘आजीविका रेशम मित्र और 602 महिलाओं को टेस्टर दीदी के रूप में मास्टर ट्रेनर बनाया गया है, जो अपनी सेवा गांव में किसानों को प्रशिक्षण एवं तकनीकी मदद के लिए दे रही हैं. गांव की ये 602 टेस्टर दीदियां आज कुकून की टेस्टिंग माइक्रोस्कोप के जरिए स्वयं करती हैं. रेशम मित्र तसर की वैज्ञानिक खेती से ग्रामीणों को जोड़ने एवं प्रशिक्षत करने का काम करती हैं.
रेशम परियोजना ने झारखंड में विलुप्त होती तसर खेती को पुनर्जीवित करने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में पलायन भी रोका है. तसर खेती कर खासकर ग्रामीण महिला किसान कम लागत में अच्छा कमा कर आमनिर्भर बन बदलते राज्य की नई तस्वीर पेश कर रही हैं. राज्य के 8 जिलों के 20 प्रखंडों में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा रेशम की वैज्ञानिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है. आने वाले दिनों में दीदियों को यार्न उत्पादन से लेकर रेशम के उत्पाद बनाने तक से जोड़ने की योजना है.
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जेएसएलपीएस की सीईओ नैंसी सहाय ने कहा कि राज्य की ग्रामीण महिलाओं को तसर की वैज्ञानिक खेती के जरिए सशक्त आजीविका से जोड़ा जा रहा है. करीब 18 हजार से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं आज तसर की खेती से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. ग्रामीण महिलाओं को कोकून के जरिए धागा उत्पादन से भी जोड़ा जा रहा है. वैल्यू चेन के तहत आगे रेशम के डिजाइनर कपड़ों के निर्माण में भी सखी मंडल की दीदियां अपना महत्वपूर्ण रोल निभायेंगी.
Posted By : Guru Swarup Mishra