देवघर के रहनेवाले भूदेव प्रसाद पंडित को पढ़ना-पढ़ाना शुरू से ही अच्छा लगता था. शिक्षा के प्रति उनके इसी जुनून की वजह से वे शिक्षक बन पाये. हालांकि, इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कई संघर्षपूर्ण पड़ावों को पार करना पड़ा. मामा के सहयोग से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी की. लेकिन, आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें और भी कड़ी मेहनत करनी पड़ी. ‘शिक्षक, जो हैं मिसाल’ की इस कड़ी में प्रस्तुत है यूएमएस मिडिल स्कूल बेलूट बोकारो के सामाजिक विज्ञान शिक्षक भूदेव प्रसाद पंडित के संघर्ष की कहानी…
मामा के सहयोग से पूरी की इंटरमीडिएट की पढ़ाई : भूदेव बताते हैं : पिताजी ने देवघर के चित्रा कोलयरी में प्राइवेट काम करते हुए हमारी परवरिश की. आमदनी इतनी नहीं थी कि वह हमें अच्छी शिक्षा दे पायें. ऐसे में पढ़ने के लिए मामा के घर जामताड़ा चला गया. यहां से पांचवीं तक पढ़ाई पूरी की. सातवीं तक की पढ़ाई मामा घर से चार किमी दूर स्थित स्कूल से पूरी की.
आठवीं से 10वीं तक की पढ़ाई देवघर स्थित अपने गांव बंदरीशोल स्थित उच्च विद्यालय कुकराहा से की. इंटर की पढ़ाई के लिए वापस मैं जामताड़ा चला आया. मेरा कॉलेज मामा घर से दूर था, इसलिए अलग ही रहकर पढ़ने लगा. मामा ही राशन और पैसे पहुंचा देते थे. लेकिन, ग्रेजुएशन में नामांकन के बाद आर्थिक परेशानी बढ़ती गयी, तो मामा को बिना बताये बीच में पढ़ाई छोड़ कर गांव चला आया.
इलेक्ट्रॉनिक सामान की मरम्मत कर किताबें खरीदीं : गांव लौटकर इलेक्ट्रॉनिक समान मरम्मत करने लगा. रोजाना 50-100 रुपये मिल जाते. इन पैसे से किताबें खरीदता था. 2003 में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के तहत ‘शिक्षा दूत’ बनाया गया. गांव में पढ़ा-लिखा होने के कारण मुझे ही चुना गया. बरगद के पेड़ के नीचे बच्चों को घर से बुला-बुला कर पढ़ाना शुरू किया.
बारिश के दिनों में काफी दिक्कत हुई. जहां जगह मिलती, वहीं बच्चों को पढ़ाने लग जाता था. 30 से 60 बच्चे पढ़ने आने लगे. इस बीच शिक्षा बंधु और पारा शिक्षक बन कर गांव में शिक्षा की अलख जगाने लगे. बच्चों के लिए स्कूल खोलन के उद्देश्य से गांव में ही जमीन की तलाश करने लगा. कहीं जमीन नहीं मिली, तो वर्ष 2010 में अपनी ही जमीन पर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय बंदरीशोल का निर्माण कराया.
बच्चों को पढ़ाने के साथ भूदेव ने इग्नू से ग्रेजुएशन, एमए और बीएड भी कर लिया. साथ ही सरकारी सुविधा पर डिप्लोमा इन प्राइमरी एजुकेशन की डिग्री हासिल की. 2015 में टीचर नियुक्ति निकली, तो परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया. आरक्षण का लाभ न लेते हुए ओपेन सीट पर क्वालिफाई किया. लेकिन शिक्षा विभाग ने यह कहकर मुझे नियुक्ति नहीं दी कि पारा शिक्षक के रहते हुए गैर पारा शिक्षक नहीं बन सकता.
2016 में हाइकोर्ट का दरवाजा खटखाया. 2019 तक लड़ाई चलती रही और जीत हासिल किया. हालांकि, इस बीच माता-पिता का हो गया. घर का बड़ा बेटा होने के कारण किसी तरह घर की जिम्मेदारी संभाली. 2019 में शिक्षक बनने का सपना पूरा हुआ और देवघर से रिजाइन कर बोकारो आ गया.