झारखंड में शिक्षकों के 90 हजार पद खाली, जो बचे उनके जिम्मे दर्जनों काम, जानें क्या पड़ रहा है इसका असर
जिन विद्यालयों में एक शिक्षक हैं, वहां उन्हें किसी गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने से पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है. ऐसे में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता कैसी होगी, सहज समझा जा सकता है
झारखंड में शिक्षकों के 90 हजार पद रिक्त हैं. राज्य में लगभग पांच हजार से अधिक विद्यालय एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. शिक्षकों की कमी की स्थिति यह है कि अधिकतर हाइस्कूलों में पांच मुख्य विषयों के शिक्षक भी नहीं हैं. इसके बावजूद शिक्षकों पर गैर शैक्षणिक कार्य करने का दबाव बना रहता है.
जिन विद्यालयों में एक शिक्षक हैं, वहां उन्हें किसी गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने से पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है. ऐसे में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता कैसी होगी, सहज समझा जा सकता है. शिक्षक भी काफी दिनों से गैर शैक्षणिक कार्यों से उन्हें मुक्त कराने की मांग कर रहे हैं.
राज्य में शिक्षकों को स्कूलों में पठन-पाठन के अलावा लगभग दो दर्जन ऐसे काम करने होते हैं, जिनसे उनका कोई लेना-देना नहीं. विद्यार्थियों का आधार कार्ड बनवाने, बैंक खाता खुलवाने से लेकर जाति प्रमाण पत्र बनाने तक का कार्य शिक्षकों के जिम्मे हैं.
विभाग स्तर से जो कार्य आवंटित हैं, उसके अलावा जिला स्तर पर भी शिक्षकों को अपने स्तर से अलग कार्य में लगाया जाता है. इसके लिए न तो शिक्षा विभाग से अनुमति ली जाती है और न ही इसकी कोई जानकारी दी जाती है. पिछले दिनों गोड्डा में एसडीओ ने शिक्षकों को अवैध बालू का उठाव रोकने के लिए चेकनाका पर प्रतिनियुक्त कर दिया था. सरायकेला-खरसावां में शिक्षकों को जन्म-मृत्यु पंजीकरण कार्य में लगाया गया था.
दूसरे विभाग के कार्य में भी लगाये जाते हैं शिक्षक :
राज्य में शिक्षक न केवल शिक्षा विभाग द्वारा दिये गये गैर शैक्षणिक कार्य करते हैं, बल्कि सरकार के दूसरे विभाग भी अपने स्तर से शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगा देते हैं. खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा शिक्षकों को राशन वितरण के कार्य में, तो कल्याण विभाग द्वारा ई-कल्याण पोर्टल पर बच्चों की जानकारी देने के लिए लगा दिया जाता है.
शिक्षकों से चुनाव, जनगणना व आपदा के समय दिये गये कार्य को करने का आदेश सरकार की ओर से जारी किया जाता है. राज्य के पूर्व मुख्य सचिव राजीव गौवा के कार्यकाल में इस आशय का पत्र जारी किया गया था, कि शिक्षकों से कोई गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराया जाये.
अब शुरू हुई है राहत देने की प्रक्रिया :
शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसके तहत सबसे पहले शिक्षकों को मध्याह्न भोजन के चावल उठाव के कार्य से मुक्त किया जायेगा. शिक्षा सचिव के रवि कुमार ने कहा है कि चरणबद्ध तरीके से सभी गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त कर दिया जायेगा.
पढ़ाने के अलावा ये कार्य शिक्षकों के जिम्मे
आधार कार्ड बनवाना, आधार अपडेट करवाना
आयरन की गोली वितरण की रिपोर्ट तैयार करना
बच्चों का बैंक खाता खुलवाना
जाति प्रमाण पत्र बनवाना
प्रखंड से पुस्तक का उठाव कर वितरित करना
बच्चों के पोशाक क्रय का विवरण तैयार करना
मध्याह्न भोजन योजना की मासिक रिपोर्ट देना
प्रतिदिन मध्याह्न भोजन का एसएमएस के माध्यम से जानकारी देना, एप में भी मध्याह्न भोजन की इंट्री
विद्यालय का रंग-रोंगन, सफाई व अन्य कार्य कराना
बच्चों की नेत्र जांच कराना
बायोमीट्रिक हाजिरी बनवाना.
हर तीन माह पर पीटीएम व उसकी जानकारी अपडेट करना
विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति वितरण की रिपोर्ट देना
स्कूलों की जानकारी के लिए यू डायस पर आंकड़ा भरना
मध्याह्न भोजन वितरण कराना
मध्याह्न भोजन के चावल का उठाव करना
प्रखंडस्तरीय मासिक गोष्ठी व अन्य बैठक में शामिल होना
शिशु पंजी अपडेट करने के लिए सर्वे
ई विद्यावाहिनी पोर्टल पर विद्यार्थियों की उपस्थिति देना
विद्यालय की भंडार पंजी व रोकड़ पंजी को अपडेट करना
देश क तुलना में झारखंड में 18 फीसदी अधिक बच्चे पढ़ते हैं ट्यूशन
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाये जाने का असर बच्चों की पढ़ाई पर हो रहा है. स्कूल में पढ़ाई प्रभावित होने से बच्चे प्राइवेट ट्यूशन लेने को बाध्य हैं. असर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 57.6 फीसदी बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर जहां वर्ष 2018 से 2021 के बीच ट्यूशन पढ़नेवाले बच्चे 28.6 फीसदी से बढ़कर 39.2 फीसदी हुए,
वहीं झारखंड में 44.1 से बढ़कर 57.6 फीसदी हो गये. राष्ट्रीय स्तर पर इस दौरान ट्यूशन पढ़नेवाले बच्चों की संख्या में 10.5% की वृद्धि हुई. इस दौरान झारखंड में ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में 13.5% की वृद्धि हुई.
गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त हों शिक्षक
अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महासचिव राममूर्ति ठाकुर और प्रवक्ता नसीम अहमद ने कहा है कि शिक्षकों को जब तक इन कार्यों से मुक्त नहीं किया जायेगा, तब तक गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात नहीं की जा सकती है. शिक्षकों को एक ओर पाठ्यक्रम के अनुरूप कक्षा संचालन का निर्देश दिया जाता है, तो दूसरी ओर उनसे कक्षा संचालन के अलावा दो दर्जन से अधिक गैर शैक्षणिक कार्य लिये जा रहे हैं. दोनों काम एक साथ कैसे हो सकते हैं.