झारखंड निर्माण के 23 वर्ष गुजरने के बाद भी पर्यटन विकास के लिहाज से सार्थक कदम नहीं उठाये जा सके हैं. इस कारण जल, जंगल, नदी-नाला, पहाड़ और झरनों वाला प्रदेश आज भी देश में कहीं स्थान नहीं रखता है. प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहां सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के भी कई स्थान हैं, जो खुद में काफी प्रसिद्ध हैं. लेकिन इन स्थलों को टूरिस्ट फ्रेंडली नहीं बनाया जा सका है.
इसी राज्य में बाबा की नगरी वैद्यनाथ धाम है, तो पारसनाथ का शिखर भी है. गुमला में अंजन धाम, तो सिमडेगा में रामरेखा धाम भी है. देश का सबसे पुराना टाइगर रिजर्व बेतला है, तो पहाड़ों पर बसा नेतरहाट भी है. हाथियों के विचरण के लिए प्रसिद्ध दलमा की पहाड़ी है, तो संताल में मलूटी का मंदिर भी है. जिस जिले में जाइये, वहां कोई ना कोई पर्यटन स्थल हैं. पेश है मनोज सिंह की रिपोर्ट.
मलूटी मंदिर दुमका के मलूटी गांव में स्थित है. यह पश्चिम बंगाल से सटा हुआ इलाका है. इस कारण यहां बंगाली समुदाय की काफी आबादी है. यहां टेराकोटा से बने दर्जनों मंदिर हैं. यहां की नक्काशी उच्च कोटि की है. इसमें कई बंगाली स्क्रिप्ट लिखे हुए हैं. यहां के मंदिर मां दुर्गा को समर्पित हैं. इसका इतिहास तारापीठ (बंगाल) से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया है. यह दुमका जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी की दूरी पर स्थित है. टूरिज्म सेक्टर के लिहाज से यहां पूर्ण विकास कार्य नहीं हो पाया है.
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कोडरमा जिले में तिलैया डैम स्थित है. रांची-पटना मार्ग में यह आकर्षण का केंद्र है. इसका निर्माण 1953 में हुआ था. डीवीसी ने इसका निर्माण कराया है. यह जलाशय 36 वर्ग किमी में फैला हुआ है. मॉनसून के दिनों में इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. इसके किनारे बैठने का अलग ही आनंद है. यहां मत्स्य पालन भी होता है. फिशिंग की दृष्टि से यह काफी महत्वपूर्ण है. यहां लोग बोटिंग का भी मजा ले सकते हैं. विशेष मौसम में विदेशी पक्षियों का प्रवास भी यहां होता है. तिलैया डैम में सुविधाओं की कमी रहती है.
क्या है कमी
देखरेख और प्रबंधन की झलकती है कमी
पर्यटकों के लिए जरूरी सुविधाओं की कमी
आसपास रहने की उचित व्यवस्था नहीं
बोटिंग या वाटर स्पोर्ट्स को लेकर प्रयास नहीं हुआ
द मिनी इंग्लैंड ऑफ झारखंड के नाम से प्रसिद्ध मैक्लुस्कीगंज कभी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र था. इसकी गरिमा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है. पर्यटकों की संख्या भी घटती जा रही है. जंगल-झाड़ी से घिरे इस इलाके में कभी बड़ी संख्या में अंग्रेज रहते थे. गर्मी के दिनों में भी यहां मौसम परेशान नहीं करती थी. यहां अंग्रेज 1933 से रहते आ रहे हैं. यह समुद्र से करीब 1500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. आज भी यह क्षेत्र पर्यटकों को आकर्षित करता है. यहां आवागमन की समस्या है.
क्या है कमी
कभी यह सुरक्षा कारणों से ठीक नहीं था
समय के हिसाब से इस क्षेत्र को पर्यटकों के अनुकूल नहीं बनाया गया
राज्य सरकार ने क्षेत्र के प्रचार-प्रसार का विशेष प्रयास नहीं किया
रांची जिले से करीब 120 किमी दूर पालकोट का किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकता है. गुमला जिले में पड़नेवाला यह किला नागवंशियों का था. नागवंशी कभी संयुक्त बिहार के छोटानागपुर वाले इलाके में राज करते थे. रातू किले के साथ पालकोट का जिक्र रामायण की कहानियों में भी है. कहा जाता है कि इसी इलाके का रामायण में पंपापुर के रूप में जिक्र है. यहीं आसपास में अंजन धाम है. कहा जाता है कि यहां राम और सीता ने वनवास के दौरान निवास किया था. पालकोट के पास रामरेखा धाम भी स्थित है. यह इलाका सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है. यहां का पेड़ा भी बहुत प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यह शुद्ध दूध से बना होता है.
क्या है कमी
यहां आसपास में रहने की उचित व्यवस्था नहीं है
इस इलाके का पर्यटन की दृष्टि से प्रचार-प्रसार नहीं किया गया है
आवागमन की भी उचित व्यवस्था नहीं है
सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है
बुद्ध सर्किट का एक हिस्सा ईटखोरी भी यहीं है. कई पर्यटन स्थल ऐसे हैं, जिन्हें अनदेखा कर दिया गया है. वहीं कई पर्यटन स्थलों की खोज जारी है. सरकार ने पतरातू घाटी और डैम को विकसित तो किया, लेकिन राजधानी का बड़ा तालाब आज भी विकास की बाट जोह रहा है. मैथन डैम, चांडिल डैम, रुक्का डैम और कांके डैम को पर्यटन के अनुकूल बनाने की कोशिश जारी है. प्रभात खबर ने झारखंड के कुछ ऐसे ही पर्यटन स्थलों से रूबरू कराने की कोशिश की है, जो अपने भीतर पर्यटन की असीम संभावनाएं समेटे हुए हैं. अगर इनका सही तरीके से विकास हो, तो ये सरकार के राजस्व संग्रह का बड़ा स्रोत बन जायेंगे.
पलामू टाइगर रिजर्व का एक हिस्सा बेतला है. यह देश के नौ टाइगर रिजर्व में से एक है. पलामू और लातेहार जिले में पड़नेवाले इस पर्यटन स्थल की स्थापना 1947 में हुई थी. यह जंगली जानवरों के टहलने और विचरने का स्थान है. एक समय यहां बाघों की काफी संख्या थी. पर्यटकों को बाघ भी दिखता था. अब यहां एक-दो बाघ होने की पुष्टि है. लेकिन, पर्यटकों को दिखता नहीं है. इसका प्रबंधन वन विभाग करता है. यहां आवागमन की परेशानी अब भी बनी हुई है.
क्या है कमी
यहां जानवरों की संख्या कम हो गयी है
टाइगर रिजर्व में टाइगर ही नहीं हैं
आसपास के क्षेत्र का विकास नहीं हुआ है
जंगल भी काफी घना नहीं है
यह क्षेत्र हाथियों का प्राकृतिक निवास स्थान माना जाता है. जमशेदपुर से सटा यह इलाका घने जंगलों वाला है. नेचुलर टूरिज्म के लिए यह बेहतर स्थान है. पहाड़ों के साथ बने इस जंगल की देखरेख वन विभाग कर रहा है. जमीन से करीब तीन हजार फीट की ऊंचाई पर एक मंदिर और रहने के लिए आउटहाउस का निर्माण भी किया गया है. रांची से करीब 100 किमी दूर इस पर्यटन स्थल में हाथियों की बहुत अधिक संख्या है. इसके साथ-साथ यहां स्लॉथ वियर, बार्किंग वियर, लैपर्ड होने के भी संकेत हैं.
क्या है कमी
आसपास में रहने की बहुत व्यवस्था नहीं
वन विभाग के गेस्ट हाउस और हट में काफी कम लोगों के रहने की व्यवस्था
जंगली जानवरों की कम संख्या
प्रचार-प्रसार की कमी
झारखंड की पहचान चाईबासा जिले के सारंडा के जंगल के लिए भी होती है. यह करीब 800 वर्ग किमी में फैला हुआ है. यह एशिया के सबसे अधिक घने जंगलों में एक है. यहां साल का पेड़ काफी घना है. कहते हैं कि यहां के घने जंगल में नीचे तक सूर्य की किरण भी नहीं पहुंच पाती हैं. प्रकृति प्रेमियों के लिए यह पर्यटन के लिहाज से काफी पसंदीदा है. इसके बीच से कारो और कोइना नदियां गुजरती हैं. सारंडा का मतलब पहाड़ों से घिरा स्थान होता है. यह पूरा इलाका पहाड़ों से घिरा हुआ है.
सुरक्षा के दृष्टिकोण से सही नहीं
ठहरने और खाने-पीने की उचित व्यवस्था नहीं है
पहुंचने का लिंकेज कमजोर
व्यापक प्रचार-प्रसार भी नहीं किया गया
पारसनाथ पहाड़ी जैनियों का प्रमुख धार्मिक स्थल है. पारसनाथ पहाड़ी पर जैन धर्मावलंबियों के शिखर जी मौजूद हैं. यह झारखंड का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है. सम्मेद शिखर के नाम से प्रसिद्ध इस धार्मिक स्थल पर हर साल कई धार्मिक आयोजन होते हैं. यह मेडिटेशन का बड़ा सेंटर है. यहां जाने का रास्ता मधुबन जंगल से होकर जाता है. इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था. मधुबन जंगल में भी एक जैन मंदिर है. यहां भी धर्मावलंबी आते रहते हैं.
क्या है कमी
सुरक्षा की दृष्टि से अभी बहुत समृद्ध नहीं है
आसपास में रहने के लिए कोई बढ़िया होटल नहीं है
क्षेत्र के विकास की योजनाओं पर अमल नहीं हो पाता है
कनेक्टिविटी की समस्या है