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झारखंड आदिवासी महोत्सव:कला-संस्कृति की बिखरी अद्भुत छटा, सीएम हेमंत सोरेन ने आदिवासियों को लेकर जतायी ये चिंता

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बन रहा था. महोत्सव में समृद्ध आदिवासी जीवन दर्शन की झलकियां दिख रही थीं. आज 10 अगस्त यानी समापन दिवस पर संस्कृति और इतिहास का अनूठा संगम स्थल बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान की शोभा देखते ही बन रही थी.

रांची: झारखंड आदिवासी महोत्सव के समापन अवसर पर गुरुवार को बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह संग्रहालय पहुंचे सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि देशभर में आदिवासियों को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है. मणिपुर इसका ताजा उदाहरण है. उन्होंने कहा कि देश की 42 फीसदी खनिज संपदा झारखंड में है. मुगल सोना-चांदी, तो अंग्रेज यहां से खनिज संपदा ले गए. दो दिवसीय (9 व 10 अगस्त) महोत्सव में लोककला-संस्कृति के जरिए समृद्ध आदिवासी जीवन दर्शन की झलक दिखी. झारखंड समेत देशभर के कलाकारों द्वारा एक से बढ़कर एक शानदार प्रस्तुति दी गयी. पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख ने जहां लोकगीत पेश कर दर्शकों को झुमाया, वहीं नंदलाल नायक ने अपनी प्रस्तुति से लोगों को मन मोह लिया. ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल में कई नामचीन फिल्मकारों की फिल्में भी प्रदर्शित की गयीं.

कला और संस्कृति की बिखरी छटा

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बन रहा था. महोत्सव में समृद्ध आदिवासी जीवन दर्शन की झलकियां दिख रही थीं. आज 10 अगस्त यानी समापन दिवस पर संस्कृति और इतिहास का अनूठा संगम स्थल बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान की शोभा देखते ही बन रही थी. भव्य समारोह में पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख की आकर्षक प्रस्तुति लोगों को लुभायीं. झारखंड की धरती को ऊपरवाले ने प्रकृति, कला और संस्कृति से बखूबी नवाजा है. झारखंड आदिवासी महोत्सव के मौके पर रंगारंग कार्यक्रम की शोभा देख ऐसा लग रहा है जैसे रांची में मिनी भारत जीवंत हो उठा. झारखंड समेत देश के कई राज्यों के कलाकारों ने अपनी नृत्य प्रतिभा से लोगों का मन मोहा.

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12 साल की उम्र में पहला गीत गानेवाले पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख

झारखंड आंदोलन के लिए कई नागपुरी गीत लिखने और गाने वाले पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख का जन्म 4 सितंबर 1948 को रांची के सिमिलिया में हुआ. 1960 में जब उनकी आयु 12 वर्ष थी, तब इन्होंने अपना पहला गीत गाया था. पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख के गायन और लेखन की प्रतिभा को देखकर इन्हें कई उपाधियों से नवाजा गया है. उनकी कई उत्कृष्ट रचनाओं की अनुपम श्रृंखला में नागपुर कर कोरा व गांव छोड़ब नहीं, जंगल छोड़ब नहीं उल्लेखनीय है.

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लोक नृत्य से कलाकारों ने बांधा समां

अदम्य साहस और वीरता का परिचायक लोक नृत्य पाइका से कलाकारों ने लोगों को मन मोह लिया. इस नृत्य ने आदिवासी सामर्थ्य और बलिदान की भावना से लोगों को लबरेज कर दिया. गुजरात से आए अफ्रीकी आदिवासी कलाकारों ने समां बांधा. झारखंड आदिवासी महोत्सव में सिद्धि धमाल लोक नृत्य की प्रस्तुति दी गयी. असम के हाजोंग आदिवासी समुदाय के कलाकारों ने लेवा टाना तन नृत्य की प्रस्तुति दी. अरुणाचल प्रदेश के निशि आदिवासी समुदाय ने नृत्य पेश किया. इसमें पांच जनजातीय समूह मिलकर अपने समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित कर रहे थे.

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एंजेल मेरीना तिर्की ने लोगों को किया संबोधित

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के समापन समारोह में झारखंड की बेटी एंजेल मेरीना तिर्की ने लोगों को संबोधित किया. उन्होंने क्वीन ऑफ इंटरनेशनल टूरिज्म एवं मिस यूनाइटेड नेशन अर्थ का खिताब जीत कर देश के साथ-साथ झारखंड का नाम रोशन किया है.

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राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार में साहित्यकारों ने रखे विचार

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में आयोजित झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के दूसरे दिन राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का आयोजन तीन सत्रों में किया गया. पहले सत्र में विभिन्न राज्यों से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों, साहित्यकारों, कथाकारों ने आदिवासी जीवन को उपन्यास में ढालने की प्रक्रिया, यथार्थ बनाम संवेदना, लोक कथाओं और लोकगीतों का लेखन में उपयोग विषय पर अपने विचार रखे.

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ट्राइबल लिटरेचर सेमिनार

इसी क्रम में पहले सत्र की शुरुआत तेलंगाना से आये सुरेश जगन्नाथम ने की. उन्होंने आदिवासी समाज के जीवन को समझने में उपन्यास की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि उपन्यास के माध्यम से हमें आदिवासियों की संस्कृति एवं जीवनी को समझने में मदद मिलती है. छत्तीसगढ़ से आयीं वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम माधुरी टोप्पो ने आदिवासी उपन्यास में भाषा की शैली की जानकारी दी. उन्होंने साहित्य में बिंब के स्वरूप की विस्तार से चर्चा की.

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उपन्यास के माध्यम से आदिवासियों की जीवनी समझने का प्रयास

केंद्रीय विश्वविद्यालय, तेज़पुर से आये साहित्यकार एवं आलोचक प्रो प्रमोद मेढ़ा ने आदिवासी उपन्यास के सृजन की दुश्वारियों के बारे में जानकारी दी. आदिवासियों उपन्यासों की लेखनी में आनेवाली चुनौतियों एवं उनके ख़तरों के बारे में विस्तार से बताया. आदिवासी उपन्यास को लिखने की कला एवं शैली के उपयोग के बारे में भी जानकारी दी. आदिवासियों के बारे में शोध करने वाले प्रो एडवर्ड और हिन्दी साहित्य के लेखक प्रो सानी के लेखन के माध्यम से आदिवासियों के जीवन के चित्रण को प्रस्तुत किया.

संथाली भाषा में कई रचनाएं लिखीं

पश्चिम बंगाल से आए कथाकार सुंदर मनोज हेम्ब्रम ने कहा कि उन्होंने संथाली भाषा में कई रचनाएं लिखी हैं. उन्होंने अपनी रचित रचनाओं के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी को प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि कहानियों में घटनाओं का समायोजन होता है जबकि कथाएं रोचक होती हैं. एस एस मेमोरियल कॉलेज की प्राध्यापक प्रो सावित्री बड़ाईक ने पहाड़गाथा एवं मताई उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी एवं संस्कृति को समझाने का प्रयास किया. नागालैंड विश्वविद्यालय से आए थूनबुइ ने जनजातियों के बारे में लिखे साहित्य के बारे में चर्चा की गई.

किन्नौर प्रजाति के बारे में बताया

दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रो स्नेहलता नेगी ने किन्नौर प्रजाति के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के जीवन जीने का तरीक़ा एवं उनकी संस्कृति लोकगीतों में देखने को मिलती है. त्रिपुरा विश्वविद्यालय से आयीं प्रो मिलान रानी जमातीया ने हाचुक खुरिको उपन्यास के माध्यम से आदिवासी के जीवन एवं संस्कृति को समझाया. इस अवसर पर सेवानिवृत्ति प्राध्यापक, छत्तीसगढ़ डॉ कोमल सेन सरवा और वरिष्ठ कथाकार छत्तीसगढ़ लोक बाबू ने भी अपने विचार रखे.

आदिवासियों की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में उनके विकास की संभावनाएं

दूसरे सत्र का विषय समाजशास्त्र, ऐतिहासिक एवं अन्य शोध परख लेखन था, जिसका आरंभ उड़ीसा से आये वरिष्ठ साहित्यकार हेमंत दलपती ने किया. उन्होंने फ़िल्म के माध्यम से आदिवासियों की जीवन की स्थिति के बारे में चर्चा की. फ़िल्म में आदिवासियों की उपेक्षा के बारे में बताया. कश्मीर से आए जान मोहम्मद हाकिम ने कश्मीर की गुर्जर जनजातियों के बारे में जानकारी साझा की. वाराणसी से आयीं प्रो वंदना चौबे ने आदिवासियों की वर्तमान स्थितियों एवं भविष्य में उनके विकास की संभावनाओं के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आदिवासी कि परंपरा बहुत ही सुदृढ़ है, आदिवासी हमेशा से ही तकनीक के मामले में काफ़ी आगे हैं वो सपना इलाज पुरानी पद्धति से करते हैं. प्रकृति का संरक्षण उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता. सुल्तानपुर से आयीं चर्चित कवयित्री एवं लेखिका रूपम मिश्र ने आदिवासी स्त्रियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

आदिवासियों के पास प्रकृति एवं समाज की व्यापक जानकारी

वरिष्ठ साहित्यकार अनिल यादव ने कहा कि आदिवासियों के पास प्रकृति एवं समाज की जो जानकारी है, वह बहुत व्यापक है. आदिवासियों की जो सबसे क़ीमती चीज़ है जिसे बचाने की ज़रूरत है वह है सामुदायिकता. उन्होंने कहा कि आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति पूजक रहे हैं और प्रकृति को क़रीब से जानते हैं. दिल्ली से आए लेखक एवं कवि अशोक कुमार पांडेय एवं डॉ शंभुनाथ, वरिष्ठ साहित्यकार (गुवाहाटी) दिनकर कुमार ने भी अपने विचार रखे. तीसरे सत्र में प्रो वंदना चौबे चर्चित कवयित्री एवं लेखिका रूपम मिश्र, प्रो पार्वती तिर्की एवं जसिंता केरकेट्टा ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता एवं उनकी संस्कृति के बारे में प्रकाश डाला. सत्र का संचालन सरोज झा ने किया.

झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 में दिखाई गई स्थानीय भाषाओं की फिल्में

झारखंड फिल्म फेस्टिवल को लेकर झारखंडवासियों ने खासा उत्साह दिखा. झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित स्थानीय भाषाओं की फिल्मकारों की फिल्में दिखाई गईं. आज महोत्सव में रंजीत उरांव की फिल्म पेनल्टी कॉर्नर, सेराल मुर्मू की फिल्म रवाह, दीपक बेसरा की फिल्म मोहोत, निरंजन कुजूर की फिल्म पहाड़ा, अनिल सिकदार की फिल्म झारखंड कर छैला, रामकृष्ण सोरेन की फिल्म एपिल, प्रबल महतो की संथाली फिल्म बारडू, रूपेश कुमार की ट्रैप रैट जैसी बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन किया गया.

सेराल मुर्मू की फिल्म रवाह का भी प्रदर्शन

प्रबल महतो की संथाली फिल्म बारडू झारखंड के परिपेक्ष्य में ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की कहानी है. रंजीत उरांव की फिल्म पेनल्टी कॉर्नर एक पिता के संघर्ष की कहानी है. एक पिता अपनी बेटी को हॉकी स्टिक दिलाने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करता है. सेराल मुर्मू की फिल्म रवाह प्रशासन और नक्सलवाद के बीच जूझ रहे ग्रामीणों की कहानी है, जो उनकी जिंदगी के बारे में बताता है कि कैसे उनकी जिंदगी में बदलाव आते हैं. निरंजन कुजूर की पहाड़ा फिल्म ग्रीन हंट के दौरान एक बच्चे की कहानी है जिसे 13 का पहाड़ा याद करने के कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. दीपक बेसरा की फिल्म मोहोत आज के परिपेक्ष्य में एक व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है कि कैसे एक रेडियो जीतने के लिए वो कठिन परिश्रम करता है और अपने पोते को परिश्रम का महत्व समझाता है. इसके अलावा एडपा काना, दहर, लाको बोहरा, मुंडारी सृष्टि कथा, बंधा खेत जैसी फिल्में भी दिखाई गईं.

नंदलाल नायक की शानदार प्रस्तुति

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के समापन समारोह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व अन्य अतिथियों की उपस्थिति में लोक कलाकार, संगीतकार और फिल्म निर्देशक नंदलाल नायक ने शानदार प्रस्तुति दी. महफिल में मांदर की थाप गूंजने लगी और सबके पांव थिरकने लगे.

2 दिनों में 1000 से अधिक लोगों ने करायी स्वास्थ्य जांच

दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 में कल्याण विभाग द्वारा स्वास्थ्य शिविर लगाया गया. बड़ी संख्या में लोगों ने अपने स्वास्थ्य की जांच शिविर में पहुंचकर करायी. पिछले 2 दिनों में 1000 से अधिक लोगों ने अपने स्वास्थ्य की जांच करायी. इस दौरान मरीजों के बीच जरूरी दवा का वितरण किया गया. दरअसल विश्व आदिवासी दिवस पर बिरसा मुण्डा स्मृति उद्यान, रांची में 9-10 अगस्त को भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जहां आदिवासी जीवन दर्शन की झलकियों को लोगों ने देखा. इस दौरान विभिन्न विभागों ने सरकार के कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी हेतु स्टॉल भी लगाए. साथ ही आदिवासी समाज के पारंपरिक व्यंजन से संबंधित स्टॉल भी लागये गए थे.

शिविर में 5 विभागों के डॉक्टर थे

इस दौरान 5 विभागों के डॉ स्त्री रोग विशेषज्ञ, आंख रोग विशेषज्ञ, बच्चा रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, जेनरल मेडिसिन एव आकस्मिक चिकित्सक उपलब्ध थे. दो दिनों के शिविरों का संचालन संस्था ट्राय के द्वारा किया गया. शिविर में डॉ एल एन पी बारा, डॉ वसुधा तिवारी, डॉ अधीश, डॉ अमरदीप एव‍ं डॉ अमृता कुंज मरीजों के स्वास्थ्य की जांच की गयी. इस दौरान ट्राय संस्था के परियोजना निदेशक अभिषेक बारा, गौरव कुमार, सौरव कुमार उपस्थित थे.

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