झारखंड की धरती को ऊपरवाले ने प्रकृति, कला और संस्कृति से बखूबी नवाजा है. झारखंड आदिवासी महोत्सव के मौके पर रंगारंग कार्यक्रम की शोभा देख ऐसा लग रहा है जैसे रांची में मिनी भारत जीवंत हो उठा है. झारखंड समेत देश के कई राज्यों के कलाकार अपनी नृत्य प्रतिभा से लोगों का मन मोह रहे हैं.
झारखंड आंदोलन के लिए कई नागपुरी गीत लिखने और गाने वाले पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख का जन्म 4 सितंबर 1948 को रांची के सिमिलिया में हुआ. 1960 में जब उनकी आयु 12 वर्ष थी, तब इन्होंने अपना पहला गीत गाया था. पद्म श्री मधु मंसूरी हंसमुख के गायन और लेखन की प्रतिभा को देखकर इन्हें कई उपाधियों से नवाजा गया है. उनकी कई उत्कृष्ट रचनाओं की अनुपम श्रृंखला में नागपुर कर कोरा व गांव छोड़ब नहीं, जंगल छोड़ब नहीं उल्लेखनीय है.
अदम्य साहस और वीरता का परिचायक लोक नृत्य पाइका से कलाकारों ने लोगों को मन मोह लिया. इस नृत्य ने आदिवासी सामर्थ्य और बलिदान की भावना से लोगों को लबरेज कर दिया. गुजरात से आए अफ्रीकी आदिवासी कलाकारों ने समां बांधा.
झारखंड आदिवासी महोत्सव में सिद्धि धमाल लोक नृत्य की प्रस्तुति दी गयी. असम के हाजोंग आदिवासी समुदाय के कलाकारों ने लेवा टाना तन नृत्य की प्रस्तुति दी.
अरुणाचल प्रदेश के निशि आदिवासी समुदाय ने नृत्य पेश किया. इसमें पांच जनजातीय समूह मिलकर अपने समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित कर रहे थे.