मेसरा मौजा में भूदान में मिली सात आदिवासी परिवारों की छह एकड़ 58 डिसमिल जमीन पर 38 साल बाद कांके अंचलाधिकारी दिवाकर सी द्विवेदी ने गुरुवार को कब्जा दिलाया. उक्त जमीन वर्ष 1985 में तत्कालीन बिहार सरकार ने आदिवासियों को जीवन यापन के लिए दी थी. प्रभात खबर ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया था. इसके बाद आला अधिकारियों के निर्देश पर सीओ दिवाकर अपने अधीनस्थ सीआइ, हल्का कर्मचारी व कर्मचारियों के साथ जमीन पर पहुंचे और आदिवासियों की जमीन से संबंधित मूल कागजात देखे.
यहां आदिवासियों ने वर्ष 2023 तक की कटी हुई रसीद भी दिखायी. कागजात देखने के बाद सीओ ने सभी रैयतों को जमीन पर जोत-कोड़ करने व अन्य निर्माण कार्य का आदेश दे दिया. साथ ही रैयतों को आश्वासन दिया कि सरकार उनके साथ है. यदि किसी ने जमीन पर अड़चन डालने का प्रयास किया, तो वैसे लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करायी जायेगी. उन्होंने जमीन पर कब्जा के उद्देश्य से खड़ा किये गये कंटेनर को भी हटाने का आदेश दिया.
रैयत कमल मुंडा ने सीओ से कहा कि सरकार गरीबों को खेती-बारी के लिए जमीन दी है, लेकिन देवेंद्र कुमार बुधिया (पिता आत्मा राम बुधिया) ने उन पर ही केस कर दिया है. उन्हें परेशान किया जा रहा है. हम मजदूरी करने जायें या केस लड़ें? रैयतों का कहना था कि जमीन पर टाइटल सूट का कोई मतलब नहीं बनता है.