विवेक चंद्र, रांची :
झारखंड सरकार आदिवासियों को लोन मुहैया कराने के लिए नीति तैयार कर रही है. भू-राजस्व विभाग नीति का ड्राफ्ट बना रहा है. नीति निर्माण को लेकर राज्य सरकार के उच्चाधिकारियों ने स्टेट लेबल बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) के साथ बैठक भी की है. होम, एडुकेशन, एग्रीकल्चर या इंडस्ट्रियल समेत अन्य लोन सीएनटी व एसपीटी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए ऋण के सभी प्रकार श्रेणीवार मंथन कर नीति का प्रारूप बनाया जा रहा है. लोन उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार द्वारा गारंटर बनने व सरकार द्वारा स्वयं लीज पर लेकर लोन उपलब्ध कराने के विकल्प पर भी विचार किया जा रहा है.
सीएनटी एक्ट की धारा 46 में एससी, एसटी जमीन के बंधक रखने पर मनाही नहीं है. जमीन बंधक रखने के लिए एसटी को डीसी से परमिशन लेने की भी जरूरत नहीं है. एससी, एसटी अपनी जमीन बंधक रख कर एजुकेशन या हाउसिंग लोन ले सकते हैं. परंतु, बैंकों द्वारा सीएनटी, एसपीटी क्षेत्र में एससी,एसटी की जमीन बंधक रख कर होम और एजुकेशन लोन तक नहीं दी जाती है. बैंकों का तर्क है कि जमीन बंधक रखने पर भी ऋण की अदायगी नहीं होने पर उसे बेच कर पैसा वसूलने का अधिकार सीएनटी एक्ट नहीं देता है. एक्ट के मुताबिक एसटी, एससी जमीन बेचने की इजाजत नहीं है. इस वजह से एसटी व एससी के पास सैकड़ों एकड़ जमीन होने के बावजूद उनको लोन नहीं मिल पाता है.
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सीएनटी, एसपीटी एक्ट की वजह से राज्य के आदिवासी समुदाय को पर्याप्त जमीन रहते हुए भी उसे बंधक रख कर बैंक लोन नहीं देते हैं. पूर्व में राज्य सरकार ने कई बार बैंकों से आदिवासी समुदाय के लोगों को लोन उपलब्ध कराने में सहयोग की अपील की है. बावजूद इसके बैंकों द्वारा लोन देने में कंजूसी बरती जाती है. लोन नहीं मिलने के कारण पूरा समुदाय उद्योग, शिक्षा, कृषि या आवास लोन की सुविधा से वंचित रह जाता है. इससे सीधे तौर पर पूरे समुदाय का विकास प्रभावित हो रहा है.