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मुरमुरे खाकर, चट्टानों से टपकते पानी को चाटकर गुजारे 16 दिन, वापसी के बाद झारखंड के मजदूरों ने बयां किया दर्द

अनिल बेदिया ने कहा कि हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को भी चाटा. हमें जीवित रहने की उम्मीद तब जागी जब अधिकारियों ने लगभग 70 घंटों के बाद हमसे संपर्क स्थापित किया.

रांची : उत्तराखंड के सुरंग में 16 दिनों तक फंसे 41 मजदूरों के दर्द की कहानी किसी से छिपी नहीं है. उन मजदूरों में झारखंड के अनिल बेदिया भी थे जो वहां पर जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे. सुरंग से सुरक्षित बाहर निकलने के बाद उन्होंने अपनी कहानी शेयर की. अनिल बेदिया ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा कि एक वक्त ऐसा भी था जब हमने सोचा कि हम सुरंग के अंदर ही दफन हो जाएंगे. हमने बचने की सारी उम्मीद खो दी थी. फिर भी धर्य रखकर इस दिन का इंतजार किया.

इस दौरान हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को भी चाटा. हमें जीवित रहने की उम्मीद तब जागी जब अधिकारियों ने लगभग 70 घंटों के बाद हमसे संपर्क स्थापित किया. हमारे पास सुरंग के अंदर खुद को हिम्मत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था. आखिरकार जब हमने बाहर से बात करने वालों की आवाजें सुनी तब हमारी आशा और बढ़ गयी. 10 दिनों तक हमारे पास मौजूद खाद्य सामाग्री जैसे- मुरमुरा, केले, सेब और संतरे को खाकर अपनी भूख मिटायी.

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अनिल ने कहा कि हमारे साथ साथ हमारे परिजन भी बेहद चिंतित थे. उन्होंने कहा “गांव के ही एक शख्स ने बताया कि मेरी मां ने दो हफ्ते से खाना नहीं नहीं बनाया था. जब पड़ोसियों को इस बात की जानकारी हुई तो तब वे उन्हें जाकर खाना खिलाते थे. हमारे साथ साथ हमारे परिवार की भी प्रार्थना रंग लायी जिस वजह से हम ये दिन दिख पाए.

अनिल बेदिया के साथ उनके गांव के अन्य 2 लोग भी फंसे थे सुरंग में

बता दें कि अनिल बेदिया के साथ उनके गांव के सुखराम बेदिया और राजेंद्र बेदिया भी उस सुरंग में फंसे थे. घटना के बाद से ही उनके गांव में मातम का माहौल था. लेकिन मंगलवार की सुबह जैसे ही उन्हें बाहर निकालने की प्रक्रिया की जानकारी मिली परिवार समेत गांव के लोग बहुत खुश हुए. सभी टीवी और मोबाइल पर राजेंद्र बेदिया, सुखराम बेदिया और अनिल बेदिया की एक झलक देखने के लिए नजरें गड़ाये हुए थे.

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