रांची: झारखंड की राजधानी रांची का चुटिया का इलाका. ये क्षेत्र आजादी के वक्त सब्जियों की बंपर खेती के लिए मशहूर था. कोलकाता समेत अन्य जगहों पर यहां की सब्जियां भेजी जाती थीं. भक्तिभाव का हमेशा माहौल रहता था. 16वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं के काल में यहां इक्कीसो महादेव थे. इन पर जलार्पण के बाद राजा अपनी दिनचर्या की शुरुआत किया करते थे. आजादी से पहले अंग्रेज चुटिया को शिव की नगरी मानकर यहां अपराधियों की हथकड़ी खोल दिया करते थे. उन्हें भरोसा था कि इस इलाके से अपराधी कहीं भाग नहीं सकता है. यहां के लोग घरों में ताले भी नहीं लगाते थे. पढ़िए गुरुस्वरूप मिश्रा की ये खास स्टोरी.
सब्जियों की खेती के लिए फेमस था चुटिया
चुटिया के बुजुर्ग दिवंगत शिवशंकर सिंह मिडिल स्कूल, तिगोई अंबा टोली, मांडर से प्रधानाध्यापक के पद से वर्ष 1999 में सेवानिवृत हुए थे. वह बताया करते थे कि 1950 में चुटिया उन्नत गांव था. सब्जी की खेती के लिए दूर-दूर तक लोग इसे जानते थे. यहां की सब्जी कोलकाता भेजी जाती थी. यहां हर तरह की सब्जी (पत्तागोभी. बंदगोभी, बैंगन, टमाटर) की खेती होती थी. किसान आस-पास के बाजारों में भी सब्जियां बेचते थे. उस दौरान दीनानाथ सिंह, रघुनाथ साहू और गणेश महतो प्रमुख किसान हुआ करते थे.
Also Read: Jharkhand Village Story: झारखंड का एक ऐसा गांव, जिसका नाम बताने में ग्रामीणों को आती थी काफी शर्म
आजादी के वक्त चुटिया में होता था बिजली का उत्पादन
शिवशंकर सिंह कहते थे कि आजादी के वक्त चुटिया गांव की आबादी करीब दस हजार थी. एक हजार घर थे. हर घर में कुआं था. लट्ठा-कुंडी से सिंचाई की जाती थी. संपन्न किसान पंप से सिंचाई किया करते थे. 1945 में गांव में बिजली आई थी. राधा बुधिया की रांची इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी से बिजली आपूर्ति की जाती थी. इसका पावर स्टेशन चुटिया में ही था. यहां बिजली का उत्पादन होता था, जिससे पूरे इलाके में बिजली आपूर्ति की जाती थी.
आजादी के वक्त थे चार स्कूल
उस दौर में गांव में चार स्कूल थे. एसपीजी मिशन मिडिल स्कूल, चुटिया मध्य विद्यालय, मिसविफम मिशन मिडिल गर्ल्स स्कूल, चुटिया एवं अपर प्राइमरी स्कूल, चुटिया था. जूठन साहू चुटिया के पहले अधिवक्ता (वकील) थे. वह बताते थे कि हर घर में साइकिल थी, लेकिन मोटर साइकिल सिर्फ चार घरों में ही थी. उस दौरान पूरे चुटिया में सोमर साव और काशी महतो का ही पक्का मकान था. शेष लोगों के मकान खपरैल मिट्टी के थे. गांव में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं था. चर्च रोड स्थित संत बर्नावास हॉस्पिटल तीन किलोमीटर दूर था, जहां लोग इलाज कराया करते थे. इलाज के लिए सदर अस्पताल जाना पड़ता था.
Also Read: Jharkhand Village Story: झारखंड का एक गांव, जहां भीषण गर्मी में भी होता है ठंड का अहसास
सात आम के बगीचे, 12 तालाब
हर घर में पेड़-पौधे थे. सात आम के बगीचे थे. आम, अमरूद और कटहल के पेड़ बड़ी संख्या में थे. गांव के लोग इसकी बिक्री नहीं करते थे, बल्कि बांट देते थे. हर घर में कुआं था. पीने के पानी का वही जरिया था. उस दौर में 12 तालाब थे. नया तालाब या छठ तालाब(अब बिल्डिंग है), हटिया तालाब(अब मकान या झुग्गी झोपड़ी है. बीच में कुछ पानी है), गोसाईं तालाब (चारों ओर बिल्डिंग है, बीच में तालाब शेष है), पूरन तालाब (बिल्डिंग बन गयी है, तालाब के निशान भर हैं), घासी (अब नायक) तालाब, बनस तालाब, चहबच्चा पोखर, खपड़ा तालाब, चंगबोथा तालाब और बिजली तालाब था. इनमें अधिकतर पर अतिक्रमण कर लिया गया है. तालाब को भरकर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं.
Also Read: Jharkhand Village Story: झारखंड का एक गांव है बटकुरी, जहां नक्सली कभी नहीं दे सके दस्तक
गांव में थे 10 मंदिर
चुटिया का माहौल बिल्कुल आध्यात्मिक था. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस वक्त गांव में 10 मंदिर थे. प्राचीन राम मंदिर, शिव मंदिर, महावीर मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर समेत अन्य थे. इस इलाके में मस्जिद, गिरजाघर या गुरुद्वारे नहीं थे.
कोर्ट-कचहरी की बजाय पंच करते थे फैसला
कोर्ट-कचहरी में मामले नहीं जाते थे. अधिकतर मामले पंचों द्वारा ही सुलझा लिये जाते थे. 1960 तक दहेज का चलन नहीं था. बाहरी नौकरी-पेशा करने यहां पहुंचे लोगों के जरिये ही दहेज का चलन देखा-देखी शुरू होने लगा.
खेतों की जगह खड़ी हो गयी है बिल्डिंग
चुटिया में बदलाव की बात पर शिवशंकर सिंह कहा करते थे कि विकास यही हुआ है कि जहां पहले सब्जियों की खेती लहलहाती थी, आज वहां बिल्डिंग खड़ी है. भूमिधर या खेतिहर खेत बेच-बेचकर मकान खड़ा कर भूमिहीन हो गए हैं. भवन के अलावा उनके पास खेती की जमीन नहीं बची है. आज पांच प्रतिशत लोग खेती कर रहे हैं.
Also Read: Explainer: झारखंड की 30 हजार से अधिक महिलाओं की कैसे बदल गयी जिंदगी? अब नहीं बेचतीं हड़िया-शराब
चुटिया के गांव से शहर बनने का साक्षी है यह मकान
तीन कट्ठे में बने 150 साल पुराने इस मिट्टी के मकान से उन्हें बेहद लगाव था. वक्त के साथ आस-पास के घर मिट्टी से पक्के हो गए. यह मकान आज भी उनकी विरासत के रूप में थी. इस मकान से इतना लगाव की वजह पूछने पर शिवशंकर सिंह कहते थे कि 1932 में इस मकान में योगदा मठ के संस्थापक परमहंस योगानंदजी महाराज पधारे थे. उनके पिता स्व. दीनानाथ सिंह उनके शिष्य थे. महाराज की प्रेरणा से ही उनके पिता चार स्कूलों का संचालन करते थे. उनके प्रति अगाध स्नेह की वजह से ही इस मकान से कुछ ज्यादा ही लगाव रहा है. इस मकान को उनके दादा स्व. चिंतामणि सिंह ने बनवाया था.
Also Read: Explainer: फूलो झानो आशीर्वाद अभियान से कैसे बदल गयी हड़िया-शराब बेचने वाली महिलाओं की जिंदगी?
चुटिया में खोल दी जाती थी अपराधियों की हथकड़ी
आजादी से पहले यहां नागवंशी राजाओं का शासन था. चुटिया छोटानागपुर की राजधानी हुआ करती थी. वह बताते थे कि यहां 16वीं शताब्दी में नागवंशी राजा ने इक्कीसो महादेव का निर्माण कराया था. जिन पर जलार्पण के बाद उनके दिन की शुरुआत होती थी. आज 13 महादेव ही शेष रह गये हैं. आध्यात्मिकता का इस कदर असर था आजादी से पहले अंग्रेज भी चुटिया को शिव की नगरी के रूप में मानते थे और चुटिया से गुजरते वक्त अपराधियों के हाथों की हथकड़ी खोल दिया करते थे. उन्हें भरोसा था कि इस इलाके से अपराधी कहीं भाग नहीं सकता है. बुंडू-तमाड़ से जब भी कोई अपराधी को कोतवाली ले जाना होता था, तो चुटिया से होकर ही वे गुजरते थे. इस इलाके की ईमानदारी की भी मिसाल दी जाती थी. चुटिया के लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे.
चैतन्य महाप्रभु ने चुटिया में किया था रात्रिविश्राम
70 वर्षीय गिरिधारी महतो कहते हैं कि वर्द्धमान से पुरी जाने के क्रम में चैतन्य महाप्रभु चुटिया में रुके थे. उन्होंने यहां रात्रिविश्राम किया था. उस दौरान उनके साथ उनके भाई गौरांग महाप्रभु भी थे. उसी स्थान पर बाद में राम मंदिर का निर्माण कराया गया था. 1960 में हनुमान दल द्वारा प्रवचन समेत अन्य कार्य किये जाते थे. पहले यह राधा माधव मंदिर के नाम से जाना जाता था. गांव का प्राचीन राम मंदिर साढ़े तीन सौ साल पुराना है.
बहुबाजार में महिलाओं के लिए लगता था स्पेशल बाजार
गिरिधारी महतो कहते हैं कि बहुबाजार में महिलाओं का स्पेशल बाजार लगता था, जहां महिलाएं खरीदारी करती थीं. वहां दो बरगद के पेड़ थे. इसलिए इसे बरडेला भी कहते थे. 1957 में चुटिया में हाईटेंशन इंसुलेटर फैक्ट्री खुली थी (अब बंद है). इसमें लोगों को रोजगार मिला था. 1965 में लोटा फैक्ट्री खुली थी, जो अब भी है. उद्योग-धंधे लगने से लोगों को काम मिलने लगा था. गांव में बड़े पैमाने पर खेती होती थी, लेकिन विशेष फायदा नहीं हो रहा था. इस कारण लोग नौकरी की तरफ भी ध्यान देने लगे थे. 1965 में चुटिया में सिर्फ सोमर साव का ही पक्का मकान था. अन्य लोगों के घर मिट्टी के थे. 1980 में चुटिया में ग्रामीण बैंक खुला. धीरे-धीरे अन्य बैंकों की शाखाएं भी खुलने लगीं. मैरेज हॉल, धर्मशाला खुलने लगे. 80 के दशक में ही टीवी आ गया. इस गांव में कई टोले थे. गोसाईं टोली, नायक टोली, तेली टोली समेत अन्य कई टोले थे.
डेढ़ दशक में गांव से शहर बन गया
प्राचीन राम मंदिर के उपमहंत गोकुल दास पिछले तैंतीस साल से इस मंदिर में हैं. वह बताते हैं कि 1985 में जब वह रांची के चुटिया मंदिर में आए, तो उस वक्त बिल्कुल गांव सा माहौल था. आज की तरह न तो चमक-दमक थी, न ही इतने सटे-सटे घर थे. उस दौरान पेड़-पौधे काफी थे. दूर-दूर मिट्टी के घर थे. राजधानी बनने के बाद चुटिया में काफी बदलाव आया. सब्जी की खेती के लिए मशहूर चुटिया में अब सिर्फ पांच फीसदी लोग सब्जी की खेती कर रहे हैं. पहले अधिकतर लोग किसान थे और सब्जी की खेती किया करते थे. घाटे का सौदा होने के कारण धीरे-धीरे लोग इससे दूर होने लगे और जमीन बेचकर मकान बनाना शुरू करने लगे. रांची के राजधानी बनते ही इसमें काफी तेजी आ गयी. जहां खेत थे. सब्जी लहलहाती थी. आज की तारीख में वहां कंक्रीट के जंगल हैं. दुकानें सजी हैं. कारोबार हो रहा है. अब न तो आम के बगीचे हैं, न उतनी संख्या में तालाब रह गये हैं. अधिकतर पर बिल्डिंग खड़ी हो गयी है. चुटिया गांव कुछ ही वर्षों में देखते ही देखते शहर बन गया.