झामुमो रिश्वत कांड: 25 साल बाद सांसदों-विधायकों को मुकदमे से छूट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट करेगा पुनर्विचार
सीजेआइ जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ की अगुआईवाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह मामले पर नये सिरे से सुनवाई के लिए सात सदस्यीय पीठ गठित करेगी.
रांची : झामुमो रिश्वत कांड के करीब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट सांसदों और विधायकों को संसद या राज्य विधानसभाओं में भाषण या वोट देने के बदले में रिश्वत लेने के मामलों में मुकदमा चलाने से छूट देने के अपने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बुधवार को सहमत हो गया. कोर्ट ने कहा कि यह राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालनेवाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
सीजेआइ जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ की अगुआईवाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह मामले पर नये सिरे से सुनवाई के लिए सात सदस्यीय पीठ गठित करेगी. शीर्ष न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने पीवी नरसिंह राव बनाम सीबीआइ मामले में 1998 में दिये अपने फैसले में कहा था कि सांसदों को सदन के भीतर कोई भी भाषण तथा वोट देने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से संविधान में छूट मिली हुई है.
वर्ष 2019 में तत्कालीन सीजेआइ रंजन गोगोई की अगुआई वाली पीठ ने इस अहम प्रश्न को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजते हुए कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव हैं और यह सार्वजनिक महत्व का सवाल है. तीन सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि वह झारखंड में जामा निर्वाचन क्षेत्र से झामुमो की विधायक सीता सोरेन की अपील पर सनसनीखेज झामुमो रिश्वत मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी. सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को मत देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था. उन्होंने दलील दी थी कि सांसदों को अभियोजन से छूट देनेवाला संवैधानिक प्रावधान उन पर भी लागू किया जाना चाहिए.
मामले में शिबू सोरेन समेत पांच के नाम
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने तब कहा था कि वह झामुमो रिश्वतखोरी मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करेगी, जिसमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन तथा चार अन्य सांसद शामिल हैं, जिन्होंने 1993 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी.
सीबीआइ ने सोरेन और झामुमो के चार अन्य लोकसभा सांसदों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, पर न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-105(2) के तहत उन्हें अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह मामले को नये सिरे से देखने के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ गठित करेगी. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने हालांकि 1998 के फैसले पर पुनर्विचार किये जाने का विरोध किया.