झारखंड: गरीबी को मात देकर कैसे लखपति किसान बन गयीं नारो देवी? ड्राइवर पति के साथ जी रहीं खुशहाल जिंदगी
झारखंड के गिरिडीह जिले के गांडेय प्रखंड स्थित एक छोटे से गांव मोहनडीह की रहने वाली नारो देवी कभी अपने बड़े परिवार की छोटी-छोटी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ थीं. वह अपने परिवार के साथ मिलकर खेती-बाड़ी किया करती थीं और किसी तरह अपना घर चला रही थीं. आज सफल महिला किसान हैं.
रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा: नारो देवी कभी बेहतर जिंदगी के लिए तरस रही थीं. आर्थिक तंगी के कारण परिवार का किसी तरह गुजारा हो रहा था. ड्राइवर पति को भी कभी काम मिलता था, तो कभी नहीं. लिहाजा खेती-बाड़ी के जरिए जीवन कट रहा था. ऐसे में अच्छी जिंदगी के सपने व बच्चों के भविष्य कि चिंता इन्हें खाए जा रही थी. अच्छी आय के लिए कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था. इसी दौरान झारखंड की जोहार परियोजना के बारे में इन्हें महिला समूह से जानकारी मिली. इन्होंने भी बिना देर किए इससे जुड़कर ट्रेनिंग ली और नयी जिंदगी की शुरुआत की. कड़ी मेहनत से आज गिरिडीह की नारो देवी लखपति महिला किसान हैं. मिट्टी की जगह पक्का मकान है. बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं. सालाना लगभग 3 से 4 लाख रुपये की आमदनी हो रही है. इनकी जिंदगी में खुशहाली आ गयी है.
जोहार परियोजना से जुड़कर कीं नयी शुरुआत
झारखंड के गिरिडीह जिले के गांडेय प्रखंड स्थित एक छोटे से गांव मोहनडीह की रहने वाली नारो देवी कभी अपने बड़े परिवार की छोटी-छोटी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ थीं. वह अपने परिवार के साथ मिलकर खेती-बाड़ी किया करती थीं और किसी तरह अपना घर चला रही थीं. पति ड्राइवर का काम करते थे, लेकिन उन्हें भी कभी काम मिलता था, तो कभी नहीं. इन सब से वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान रहती थीं. किसी तरह परिवार चल रहा था, लेकिन बेहतर आय के लिए उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. इसी बीच उन्हें गंगा स्वयं सहायता समूह के माध्यम से जोहार परियोजना के बारे में जानकारी मिली.
आजीविका उत्पादक समूह का हुआ गठन
अपनी आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए नारो देवी बिना देर किए जोहार परियोजना से जुड़ गयीं. नारो बताती हैं कि इस परियोजना से जुड़ने के बाद मोहनडीह आजीविका उत्पादक समूह का गठन हुआ. इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग देकर बीज को उन्नत विधि से लगाने, सही दवाई, खाद आदि उपयोग की जानकारी दी गयी. इतना ही नहीं, पशुपालन से भी जुड़ी अनेक तरह की जानकारी उन्हें दी गयी.
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ट्रेनिंग के बाद तैयार कीं पौधों की नर्सरी
नारो देवी कहती हैं कि ट्रेनिंग के बाद जब उन्होंने काम करना शुरू किया को डर था क्योंकि उन्होंने हमेशा पारंपरिक तरीके से खेती सीधे खेत में ही किया था, लेकिन हिम्मत कर काम शुरू कर सफलता हासिल की. पौधों की नर्सरी तैयार की, जिससे उनकी फसल बिना ख़राब हुए अच्छी हुई.
उन्नत खेती व पशुपालन से बदली जिंदगी
नारो देवी न सिर्फ जोहार परियोजना के जरिये उन्नत खेती कर रही हैं, बल्कि परियोजाना के अन्य घटक जैसे पशुपालन और बाज़ार व्यवस्था से भी उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में काफी बदलाव लाया है. आज नारो न सिर्फ अपने द्वारा उपजाई सब्जियों एवं धान आदि फसलों को पीजी (उत्पादक समूह) द्वारा बेचती हैं बल्कि वह खुद भी गांव-गांव स्कूटी से घूम कर और हाट-बाज़ार में भी इनकी बिक्री करती हैं.
सालाना 3-4 लाख कमाती हैं नारो देवी
नारो देवी अपनी दोनों आजीविकाओं को प्रशिक्षण अनुरूप कर एक सफल किसान बन चुकी हैं. वह सालाना लगभग 3 से 4 लाख रुपये की आमदनी कर रही हैं. इसके अलावा मुर्गीपालन से भी अच्छा मुनाफा कमा लेती हैं.
पक्का मकान और बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रही हैं
नारो देवी आज अपनी कड़ी मेहनत और उससे अर्जित आमदनी से अपने पुराने मिट्टी के घर की जगह पक्का मकान बना ली हैं. इतना ही नहीं, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रही हैं.
जोहार परियोजना से दोगुना मुनाफा कमा रहे किसान
जोहार परियोजना के जरिये अन्य किसान भी कम समय में एक से अधिक गतिविधियों को अपनी आजीविका का साधन बना रहे हैं. जिससे न सिर्फ वह उत्पादक समूह से जुड़कर कृषि, पशुपालन, मछली पालन, लघु वनोपज आदि के गुर सीख रहे हैं, बल्कि अच्छी आमदनी कर जोहार परियोजना के उद्देश्य “दोगुना मुनाफा” के लक्ष्य को भी पूरा कर रहे हैं.
परियोजना के जरिये ऐसे होता है काम
जोहार परियोजना में सबसे पहले महिला समूह की महिलाओं को मिला कर उत्पादक समूह का गठन किया जाता है. महिला समूह की सदस्य उत्पादक समूह की सदस्य बनती हैं. उत्पादक समूह का कार्य उत्पादन करना होता है. उत्पाद को बेचने के लिए उत्पादक कंपनी का गठन किया जाता है. उत्पादक समूह की महिलाएं ही उत्पादक कंपनी की सदस्य बनती हैं. उसके लिए महिलाओं से सदस्यता शुल्क के रूप में 1100 रुपये लिये जाते हैं, जो कंपनी के खाते में जमा रहता है. महिला सदस्यों के बीच से ही कंपनी के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का चयन किया जाता है, जो कंपनी को संचालित करती हैं. उत्पादक कंपनी उत्पादक समूह से कृषि उत्पाद खरीद कर बेचती है. इससे किसानों को उत्पादों का अच्छा दाम मिलता है.