Exclusive: क्या झारखंड में भी आ सकती है जोशीमठ जैसी स्थिति, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट
भूविज्ञानी नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि झारखंड में भी ऐसी स्थिति आ सकती है. झरिया और धनबाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. भूस्खलन की वजह से लोगों को वहां से पलायन करना पड़ा.
उत्तराखंड का जोशीमठ संकट में है. कई इलाकों से जमीन धंसने की खबरें लगातार देखने और सुनने को मिल रही है. कई लोगों के घरों में गहरी दरारें आ गयी है. वहां पर रह रहे लोग डर की साये में जी रहे हैं. इस हादसे की पीछे सभी लोग अपनी अपनी राय दे रहे हैं. कोई बेतरतीब निर्माण को इसके लिए जिम्मेदार बता रहा है तो कोई किसी और चीज को. प्रभात खबर डॉट कॉम ने भी इस हादसे के पीछे की वजह जानने के लिए पर्यावरणविदों से बात कर इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की. साथ ही यह भी पता लगाया, क्या जोशीमठ जैसी स्थिति झारखंड में भी आ सकती है?
इस बारे में भूविज्ञानी नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि झारखंड में भी ऐसी स्थिति आ सकती है. झरिया और धनबाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. भूस्खलन की वजह से लोगों को वहां पलायन करना पड़ा. कई मंदिरों और मकानों में भी दरार आ गयी. रामगढ़ में आयी दरार इसका जीता जागता उदाहरण है. जहां पर मांइनिंग हो रही है वो इलाका तो सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. झारखंड में तो इसकी संभावना सबसे अधिक है. कई कोयलरी तो गायब हो गये.
रांची में इस तरह की संभावना तो कम है लेकिन रांची पहाड़ी में हमलोग जिस तरह से वहां पर निर्माण कार्य कर रहे हैं. अगर वहां पर भी दरारें आयी तो काफी तेज भूस्खलन हो सकता है. पहले भी ऐसा दो बार हो चुका है. रांची के आसपास भी कई ऐसे पहाड़ हैं जो बिल्कुल अपर्दादित हो चुके हैं. आज करीब 6 से 7 साल पहले इसी तरह अनगड़ा का एक पहाड़ अपने आप गिर गया.
इसी तरह हर पहाड़ का सीमांकन होना चाहिए कि कौन सा पहाड़ कितना खतरनाक है. भले ही जमीन न फटे लेकिन पहाड़ों का भूस्खलन हो सकता है. हालांकि यहां पर कभी घने अबादी के बीच ऐसा नहीं हुआ है लेकिन कभी ऐसा हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो रामगढ़ धनबाद, बोकारो सहित आसपास के कई इलाके प्रभावित होंगे. इससे बचने के लिए सबसे पहले हमें इस तरह के पहाड़ों का चिन्हीकरण करना चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए. जो पहाड़ भूस्खलन की स्थिति में आ गये हैं उस इलाके में रहने वाले लोगों को अलर्ट करना चाहिए. क्यों कि झारखंड के अधिकतर पहाड़ अपर्दादित हो चुके हैं.
वहीं पर्यावरणविद अनूप नौटियाल जोशिमठ में आयी संकट के बारे में बताते हैं कि ये एक मलबे के ऊपर बसा हुआ शहर है, इस वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई. दूसरी जो चीज है वो नदी का कटाव है. वहां से एक अलखनंदा नदी बहती है और नदी जब अपना वेग रूप लेती है तब वो भूमि का कटाव करती है. इसके अलावा एक और बड़ा कारण देखने को मिल रहा वो है बेतरतीब निर्माण. चाहे वो पावर प्लांट के माध्यम से हो, सड़क या शहर के अंदर जो लोगों ने भवनें बना दी हो. इसके अतिरिक्त एक और बात सामने निकल कर आ रही है कि वहां पर कोई ड्रेनेज सिस्टम नहीं है.
पर्यावरणविद अनिल जोशी कहते हैं कि पूरा पहाड़ और हिमालय एक मलबे पर बसा है और साथ ही साथ ये बहुत उंचाई पर बसा है, और विकास होने के साथ साथ लोग बेतरतीब ढंग से बसते चले गये. जिसका नतीजा ये हुआ कि उनकी केयरिंग कैपिसिटी कम हो गयी. विकास तो हुआ, लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि इसमें क्या सुधार होना चाहिए, न ही इसकी प्लानिंग पर ध्यान दिया गया. इसके अलावा एक और बड़ी वजह है कि किसी भी मलबे के नीचे एक नदी बहती है.
और जितना भार बढ़ता जाएगा मिट्टी का कटाव उतनी तेजी से होगा. इससे एक चीज सीख लेनी चाहिए कि कभी भी शहर का विकास प्राकृति को देखते हुए करना चाहिए. दूसरी बात ये है कि उसकी एक सीमा होती है जिसका उल्लंघन नहीं करना चाहिए. तीसरी चीज ये है कि प्राकृति अगर दंश देती है तो दवा भी देती है, अगर आज हम वहां पर हो रही गतिविधि पर रोक लगा देते हैं तो जोशीमठ फिर से पहले वाली स्थिति में आ जाएगा.
नींद से जागी उत्तराखंड सरकार
आपको बता दें कि पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने इससे सबक लेते हुए बड़ा फैसला लिया है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसी भी शहर को बसाने से पहले उनकी क्षमता का आकलन किया जाएगा. इसके साथ ही साथ सरकार प्रभावित परिवारों को 6 महीने तक किराया भी देगी. ये सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रदान की जाएगी. ये सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी.