न्यायाधीश केवल मध्यस्थ नहीं, न्याय के प्रशासक भी हैं, उन्हें सामाजिक वास्तविकताओं से अवगत होना जरूरी

सफल लोकतंत्र के लिए मजबूत न्यायपालिका जरूरी है. मजबूत न्यायपालिका कानून व लोकतंत्र के शासन की अंतिम गारंटी है. इसलिए हमारा सामूहिक प्रयास न्यायपालिका को मजबूत करने का होना चाहिए. न्यायाधीश केवल मध्यस्थ नहीं, बल्कि न्याय के प्रशासक भी हैं, उन्हें सामाजिक वास्तविकताओं से अवगत होना चाहिए.

By Prabhat Khabar News Desk | July 24, 2022 10:01 AM

Ranchi News: सफल लोकतंत्र के लिए मजबूत न्यायपालिका जरूरी है. मजबूत न्यायपालिका कानून व लोकतंत्र के शासन की अंतिम गारंटी है. इसलिए हमारा सामूहिक प्रयास न्यायपालिका को मजबूत करने का होना चाहिए. न्यायाधीश केवल मध्यस्थ नहीं, बल्कि न्याय के प्रशासक भी हैं, उन्हें सामाजिक वास्तविकताओं से अवगत होना चाहिए. उक्त बातें भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कही. वे बतौर मुख्य अतिथि झारखंड ज्यूडिशियल एकेडमी के डॉ एपीजे अब्दुल कलाम सभागार में आयोजित पटना हाइकोर्ट की रांची सर्किट बेंच के गोल्डेन जुबली समारोह व जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे.

न्यायपालिका जीवन के हर मोड़ पर करे मार्गदर्शन

उन्होंने कहा कि लोगों को अदालत से ही न्याय की उम्मीद रहती है. लोग चाहते हैं कि न्यायपालिका उनके जीवन के हर मोड़ पर उनका मार्गदर्शन करे. अदालतों में बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं. लोग समझते हैं कि अदालतों में जो मामले लंबित हैं, उसके लिए न्यायपालिका ही जिम्मेदार है, लेकिन यह सच नहीं है. अदालतों में यदि न्यायाधीशों के खाली पदों को भरा जाये व आधारभूत संरचना उपलब्ध करायी जाये, तो यह समस्या दूर हो सकती है. कार्यक्रम का आयोजन झारखंड हाइकोर्ट, झालसा, ज्यूडिशियल एकेडमी व नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी कांके की ओर से किया गया था.

सामाजिक वास्तविकता और कानून के बीच की खाई को पाटता है न्यायाधीश

चीफ जस्टिस रमन्ना ने कहा कि लोगों को ऐसा लगाता है कि न्यायाधीशों की जिंदगी काफी आरामदायक होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. न्यायाधीशों को दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. कानून का अध्ययन करना पड़ता है, तब जाकर वह लोगों को न्याय दे पाते हैं. एक न्यायाधीश सामाजिक वास्तविकता और कानून के बीच की खाई को पाटता है, साथ ही संविधान की भावना व मूल्यों की रक्षा करता है. जज बनने का सफर आकांक्षाओं से भरा होता है. न्यायाधीश का जीवन अलगाव व सामाजिक अलगाव में व्यतीत होता है. अधिकांश दिनों में मध्यरात्रि के बाद भी काम जारी रहता है. भारतीय न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है, ताकि न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके. वर्तमान को देखते हुए ऐसा लगता है कि हम भविष्य में बढ़ती चुनौतियों से निबटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं.

न्यायपालिका वह अंग जो संविधान में फूंकता है जान

भारत जैसे सामाजिक रूप से विविधतावाले देश में कानून बनाते समय बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण होना चाहिए. न्यायपालिका वह अंग है, जो संविधान में जान फूंक देता है. न्यायपालिका ने लोगों के विश्वास को कायम रखा है तथा गणतंत्र व लोकतंत्र को मजबूत किया है. झारखंड हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन ने कहा कि छह मार्च 1972 को पटना हाइकोर्ट की रांची सर्किट बेंच की स्थापना हुई थी. आज हम गोल्डेन जुबली समारोह मना रहे हैं. यह झारखंड के लिए गाैरव की बात है. चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना का परंपरागत आदिवासी तरीके से स्वागत किया गया. इस मौके पर अतिथियों ने पुस्तक का भी विमोचन किया. धन्यवाद ज्ञापन नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति ने किया.

जस्टिस एसबी सिन्हा भारत के महान न्यायविदों में से एक

चीफ जस्टिस रमन्ना ने कहा कि जस्टिस एसबी सिन्हा भारतीय न्यायपालिका के सबसे महान न्यायविदों में से एक थे. उनके जीवन से सीखने की जरूरत है. जस्टिस सिन्हा ने कभी कोर्ट से छुट्टी नहीं ली. वह समर्पण, कड़ी मेहनत, धैर्य और स्वतंत्रता के लिए जाने जाते थे.

कोरोना से अनाथ होनेवाले 180 बच्चों को मिली छात्रवृत्ति

सीजेआइ ने झालसा के शिशु प्रोजेक्ट के तहत 180 बच्चों को स्कॉलरशिप व गिफ्ट प्रदान किया. इन बच्चों ने कोरोना में अपने माता-पिता को खो दिया. सीसीएल कोविड क्राइसिस स्कॉलरशिप योजना के तहत चयनित लाभार्थियों को चेक दिया गया. सीसीएल सीएसआर पहल के तहत रांची, रामगढ़, हजारीबाग, गिरिडीह, चतरा, लातेहार, पलामू व बोकारो के लाभार्थियों को 95.50 लाख भुगतान करेगा. कक्षा एक से स्नातक तक का अध्ययन कर रहे छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रतिवर्ष प्रति छात्र 20000 से लेकर 50000 रुपये तक दिये जायेंगे.

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