Just Transition : कोयला चुनने के काम में जुटी हैं सैकड़ों महिलाएं, ऐसे अनस्किल्ड लोग बनेंगे चुनौती

झारखंड के बंद पड़े खदानों में अवैध खनन की बातें आम हैं और इससे यहां सैंकड़ों परिवारों का जीवन चलता है. इस काम में खतरा बहुत है, बावजूद इसके ना सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाएं और बच्चे भी इस काम में जुटे हैं.

By Rajneesh Anand | January 1, 2022 12:36 AM

कोयला खदान बंद हो जायेगा तो हम भूखे मर जायेंगे, हमारी रोजी-रोटी इस निर्भर है. हमारा पूरा परिवार ही कोयला चुनकर बेचता है और उसी से हम जीते हैं. पिताजी साइकिल पर कोयला ढोकर रांची लेकर जाते हैं और हम दो बहनें और एक भाई मां के साथ यहीं पर कोयला बेचते हैं. हम कोयले के टुकड़े बेचते हैं, जिससे यहां गुल (एक तरह का जलावन) तैयार होता है. यह कहना है पिंकी महतो का, जो हमें रामगढ़ जिले के भुरकुंडा में मिली. सिर पर कोयला लेकर यह कुछ लड़कियाँ जा रही थीं. काफी मान-मनौव्वल के बाद बातचीत के लिए तैयार हुईं. पिंकी 18-20 साल की लड़की है, जो पांच साल से कोयला चुनने के काम में जुटी हैं.

दरअसल झारखंड के बंद पड़े खदानों में अवैध खनन की बातें आम हैं और इससे यहां सैंकड़ों परिवारों का जीवन चलता है. इस काम में खतरा बहुत है, बावजूद इसके ना सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाएं और बच्चे भी इस काम में जुटे हैं. चूंकि ये लोग अवैध खनन में जुटे हैं इसलिए अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते. इन्हें पुलिस का भी डर है यही वजह है कि ये रात से ही काम में जुटते हैं और अहले सुबह वहां से कोयला निकालकर निकल जाते हैं. ये सारे मजदूर अनस्किल्ड हैं.

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मैंने जब इनसे यह पूछा कि इस काम में कितना खतरा है पता है तुम्हें? तो पिंकी ने कहा कि हां पता है हमको, लेकिन दीदी पेट की खातिर सब करना पड़ता है. हम उतना पढ़े-लिखे भी नहीं और मां-बाप गरीब हैं, तो क्या करेंगे. रोज खतरा नहीं होता है, कभी-कभी काल सवार हो जाता है, तो फिर उस दिन कहानी खत्म.

महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जब मैंने उनसे बात की तो उसका सिर्फ इतना ही कहना था कि जब कोयला चुनने हैं तो खांसी होती है, कभार बहुत ज्यादा होती है, इससे ज्यादा तो अगर कुछ होता है तो वो हमें समझ नहीं आता है.

यह कहानी सिर्फ पिंकी महतो की नहीं है, ऐसी हजारों लड़कियां हैं जो कोयला खदान क्षेत्र में रहतीं हैं और इनकी जिंदगी कोयले से जुड़ी है. खदानों में पेरोल और काॅन्टैक्ट पर भी कई महिला मजदूर काम करती हैं, जो खदानों के बंद होने से प्रभावित होंगी. कोयला खदानों में कोयले की लदाई और ढुलाई के काम में महिलाएं हजारों की संख्या में काम करती हैं, जिनका सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

जस्ट ट्रांजिशन पर काम शुरू करते ऐसे मजदूरों को का क्या होगा और उन्हें किस तरह का काम दिया जा सकता है, यह बड़ी समस्या और चुनौती दोनों है. हाल ही आयोजित एक वेबिनार में जस्ट ट्रांजिशन की एक्सपर्ट श्रेष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि जस्ट ट्रांजिशन को सही और न्यायसंगत तरीके से लागू करने के लिए झारखंड सरकार को दृढ़ निश्चय के साथ काम करना होगा, क्योंकि यह विषय सिर्फ कुछ लोगों का नहीं पूरे राज्य का है. अगर इसे सही तरीके से कार्यान्वित नहीं किया गया तो ऐसे मजदूरों की तबाही होगी. कोल इंडिया में काम करने वाली महिला

पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए 2070 तक शून्य उत्सर्जन की बात तो उचित है, लेकिन उसके लिए हमें इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि वैसे मजदूरों के साथ अन्याय ना हो जो कोयले से जीते और खाते हैं.

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