बिमल कच्छप
न्यायमूर्ति एलपीएन शाहदेव मानते थे कि झारखंड सिर्फ विकास की नहीं बल्कि सत्ता की भी लड़ाई है. उनका स्पष्ट मानना था कि झारखंड के आदिवासी-मूलवासी वर्ग को बिहार के नेताओं ने सत्ता से दूर कर रखा है, जिसके कारण झारखंड का विकास नहीं हो पा रहा था. वह हमेशा कहते थे कि झारखंड का विकास तभी संभव है, जब सत्ता यहां के आदिवासी मूलवासी के हाथ में होगी.
न्यायमूर्ति शाहदेव एकीकृत बिहार में झारखंड क्षेत्र के आदिवासी मूलवासी समुदाय के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ. उस समय भी बिहार की लॉबी ने इनके न्यायाधीश बनने में रोड़ा लगाया था, लेकिन इनके बेदाग कैरियर ने इन्हें अपने जीवन के शिखर तक पहुंचाया. आज झारखंड में सभी दल आदिवासी-मूलवासी को सत्ता में भागीदारी देने की घोषणा कर रहे हैं.
यही सपना कभी न्यायमूर्ति शाहदेव ने भी देखा था. झारखंड आंदोलन में जस्टिस एलपीएन शाहदेव की प्रखर भूमिका रही. जस्टिस शाहदेव ने इस आंदोलन को बौद्धिक खुराक दी. झारखंड आंदोलन जब अपने अंतिम दौर में था और अलग राज्य लेने के लिए एक सामूहिक व संगठित प्रहार की जरूरत थी, तब जस्टिस शाहदेव ने बौद्धिक नेतृत्व किया. पूरे एक दशक तक सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति ने सड़कों पर उतर कर आंदोलन किया.
उनके अंदर झारखंड अलग राज्य के लिए एक छटपटाहट थी. एक समय झारखंड आंदोलन पूरी तेवर और आक्रमकता के साथ चल रहा था. तब जस्टिस शाहदेव ने कहा था कि कोई आंदोलन अहिंसक और लोकतांत्रिक रहे, इसके लिए हमेशा अनुशासन में बंध कर संगठित रूप से काम करना होगा. वे यह भी बोलने में नहीं हिचकते थे कि कोई आंदोलन तब तक अहिंसक और लोकतांत्रिक रहता है, जब तक कि सत्ता में बैठे लोग उनकी आवाज सुने. हमलोगों ने जस्टिस शाहदेव के साथ काम करते हुए कई जिलों का दौरा किया.
(लेखक आजसू के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं)