आदिवासी खानपान को ब्रांड बना रहे रांची के कपिल, दो करोड़ की नौकरी छोड़ मड़ुआ को बनाया ब्रांड
कोरोना काल से लोग पारंपरिक खान-पान को बेहतर स्वास्थ्य दृष्टिकोण से अपनाने लगे थे. ऐसे में रांची के रहने वाले विनोद टोप्पो ने स्टार्टअप ‘मंडीएडप्पा’ के जरिये झारखंड के पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दे रहे हैं. मंडीएडप्पा की पहचान रांची से बाहर देश के कई प्रांतों में भी बनने लगी है.
Jharkhand News: राजधानी के एसएन यादव रोड में रहने वाले कपिल विनोद टोप्पो अपने स्टार्टअप ‘मंडीएडप्पा’ के जरिये झारखंड के पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दे रहे हैं. वे झारखंडी साग-सब्जियों और अनाज खासकर मड़ुआ से युवाओं के पसंद के फास्ट फूड तैयार कर रहे हैं. खास बात यह है कि अपने इसी जुनून को पूरा करने के लिए कपिल ने साउथ कोरिया के सियोल स्थित कंपनी कुपंग कॉर्प की नौकरी छोड़ दी, जहां उन्हें दो करोड़ रुपये सालाना का पैकेज मिल रहा था.
कपिल ने बताया कि आदिवासी व्यंजनों को बड़ा प्लेटफॉर्म नहीं मिल रहा था. साथ ही फंडिंग की समस्या थी. फंड की व्यवस्था करने के लिए जून 2021 से फरवरी 2022 तक उन्होंने नौकरी भी की. जैसे ही फंड की व्यवस्था हुई, वे रांची लौटे और अपने स्टार्टअप पर फुल टाइम देने लगे. इससे बीते 10 महीने में मंडीएडप्पा की पहचान रांची से बाहर देश के अलग-अलग प्रांतों और अब विदेशों में भी बनने लगी है. लोग इसकी सराहना कर रहे हैं.
मंडीएडप्पा यानी घर का खाना
स्टार्टअप की प्लानिंग कपिल ने नौकरी से जुड़ने के बाद से ही शुरू कर दी थी. इस बीच विश्व आदिवासी दिवस पर वे घर लौटे. 2019 में शहर में अखड़ा कार्यक्रम हुआ था, जहां उनकी मुलाकात फैशन डिजाइनर सुमंगल नाग से हुई. उन्होंने कपिल को स्टार्टअप के जरिये झारखंड की पारंपरिक और जनजातीय वस्तुओं पर रचनात्मक काम कर देश-विदेश तक पहुंचाने की प्रेरणा दी.
दो करोड़ की नौकरी छोड़
इसके बाद दिसंबर 2019 से मंडीएडप्पा का काम शुरू हुआ. कपिल बताते हैं कि मंडीएडप्पा ‘मांडी’ (मुंडारी शब्द) यानी ‘खाना’ और ‘एडप्पा’ (कुड़ुख शब्द) यानी ‘घर’ का समावेश हैं. इसके तहत आदिवासी घरों में बननेवाले ऑर्गेनिक खान-पान को नये कलेवर में लोगों तक पहुंचाने का काम हो रहा है.
मड़ुआ से तैयार कर रहे दर्जनों व्यंजन
कपिल कहते हैं कि कोरोना काल से लोग पारंपरिक खान-पान को बेहतर स्वास्थ्य दृष्टिकोण से अपनाने लगे. ऐसे में मड़ुआ, ढेकी चावल और राज्य में पाये जानेवाले विभिन्न साग पर शोध शुरू किया. कुछ ही दिनों में मड़ुआ से चाउमिन, मोमो, कुकीज, पिज्जा और शेक तैयार करने लगे. वे डुंबू (पिट्ठा) की वेराइटी भी तैयार कर रहे हैं. इतना ही नहीं वे इंटरनेशनल कुजीन के तौर पर कोरियन डिशों को भी मुड़ुआ से ही बनाये जा रहे हैं. वहीं, झारखंडी साग- फुटकल, सरला, चाकोर या चक्रमर्द, सहजन, गंधारी, बेंग या ब्राह्मी साग के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं.
ब्राउन राइस और चाकोर के बीज से तैयार कर रहे चाय
मंडीएडप्पा खान-पान के नये ट्रेंड तैयार कर रही है. हाल ही में झारखंड में पाये जानेवाले लाल चावल (ब्राउन राइस) से चाय बनायी जा रही है. लाल चावल को गुड़, अदरक और तेजपत्ता के साथ उबाल कर चाय का रूप दिया गया है, जो पौष्टिक है. इसके अलावा चाकोर के बीज से पेय पदार्थ तैयार किया है, जिसे लोग ब्लैक कॉफी के विकल्प के रूप में अपना रहे हैं. कपिल कहते हैं कि सामान्य फास्ट फूड से जहां शरीर को नुकसान पहुंचता है, जबकि देशी तौर-तरीके से तैयार होने वाले फास्ट फूड 10 गुना ज्यादा पोषक तत्वों से भरा हुआ है.
कपिल की शिक्षा-दीक्षा
कपिल ने 10वीं तक की पढ़ाई डीएवी हेहल से की. वहीं, 12वीं की पढ़ाई संत जेवियर कॉलेज रांची से पूरी की. इसके बाद एनआइटी जमशेदपुर से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग की. फिर आइआइएम मुंबई से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग एंड सप्लाई चेन मैनेजमेंट की डिग्री ली. वर्ष 2010 में वे यूरोपियन कंपनी डेनसो से जुड़े. इसके अलावा वे फ्लिपकार्ट समेत कई अन्य मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम कर चुके हैं.
रिपोर्ट : अभिषेक रॉय, रांची