सफाई का कड़ाई से पालन होता है करम परब में

विशेषकर कुड़मी बहुल गांवों में गांव की माहताइन व अन्य करम जाउआ सेउरन की विधि-विधान के विशेषज्ञ महिलाएं कुंआरी लड़कियों के साथ-साथ रहकर जाउआ अनुष्ठित करातीं हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2024 11:43 AM

मीना महतो

अविवाहित एवं मासिक धर्म से अछूत बालिकाएं ही करम जाउआ उठाने में मुख्य भूमिका अदा करतीं हैं. ये बालिकाएं बाली उठाकर जाउआ डाली का प्रति शाम अराधना कर करम जाउआ को सुरक्षित करने का काम करतीं हैं. जाउआ को समय-समय पर धूम भी दिखाने का तथा आवश्यकता के अनुसार पानी डालकर सिंचाई भी करने का भी कार्य करतीं हैं ताकि जाउआ का अंकुर सुरक्षित एवं स्वास्थ्य रहे.

विशेषकर कुड़मी बहुल गांवों में गांव की माहताइन व अन्य करम जाउआ सेउरन की विधि-विधान के विशेषज्ञ महिलाएं कुंआरी लड़कियों के साथ-साथ रहकर जाउआ अनुष्ठित करातीं हैं. भादो एकादशी के तीन से नौ दिन पूर्व स्थानीय नदी, तालाब,जुड़िआ आदि जलाशय से नया डाली में बाली उठाकर धान, चना, मूंग, कुरथी आदि कृषि उत्पादित बीजों को बोकर जाउआ उठाती है, जिसे ‘बाली उठा’ कहा जाता है. जाउआ उठाकर घर के अंदर साफ व स्वच्छ जगह पर अनुष्ठित करने वाली बालाओं को जाउआ की स्वच्छता के लिए कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है. स्वयं के खान-पान, रहन-सहन पर विशेष ध्यान रखतीं हैं. सदैव इन युवतियों को स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना पड़ता है. जाउआ डाली पर बोये गये बीजों को अंकुरित करने के लिए प्रकृति की शुद्ध वातावरण के साथ आवश्यकता के अनुरूप धूप दिखाना, पानी पटवाना आदि इन्हीं युवतियों के जिम्मे होती है. अन्य युवतियां जो जाउआ उठान में सम्मिलित नहीं रहती है, उसे जाउआ छूना सख्त मनाही रहता है. कुड़माली नेगाचारी के अनुसार करम जाउआ उपासियों को करमअतिआ कहा जाता है.

लक्ष्मी कांत मुतरूआर व्दारा लिखित पुस्तक ‘जनजाति परिचिति’ तुलनामुलक अध्ययन के अनुसार इन करमअतियों को अपने हाथों से दातवान तोड़ना मनाही रहता है, दातवान तोड़ने पर जाउआ टूट जाता है. बाली उठाने वाली बालाएं खोंपा नहीं बांधती है, खोंपा बांधने से जोट लग जाता है. अपने हाथों से नमक नहीं खाती, नमक खाने से जाउआ गल जाता है. गुड़,चीनी आदि मीठा चीज नहीं खाती है, मीठा खाने से चींटी लगते है. दही नहीं खाती, दही खाने से फुफुन्दी लगती है । डुबकी लगाकर स्नान करना इन्हें वर्जित रहता है, डुबकी लगाकर स्नान करने से जाउआ ढह जाता है. कुड़माली संस्कृति के अनुसार ऐसा विश्वास है. इस तरह तीन से नौ दिनिआ जाउआ उठाकर सुबह-शाम जाउआ बेएड़ा नृत्य-गीत गा कर जाउआ की निगरानी करतीं हैं. भादो दशमी को संजोत कर दूसरे दिन एकादशी को निर्जला व्रत करके पूजा-अर्चना कर दूसरे दिन जाउआ का भासान करती है. भासान के पश्चात पारना कर अन्न ग्रहण करती है.

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