13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

करमा विसर्जन के बाद आदिवासी समाज क्यों मनाते हैं इंज मेला, सरना धर्म गुरू बंधन तिग्गा ने बताया

इंज का मतलब होता है स्वीकार करना. विर्सजन के दूसरे दिन ही इस मेला का आयोजन होता है. ये एक तरह का मिलन समारोह होता है

रांची : भाई बहन का त्योहार कहे जाना वाला करम पूजा आज पूरे झारखंड में धूमधाम से मनाया जाएगा. हालांकि, इस पर्व की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है. लेकिन बहुतों को ये नहीं पता होता है कि करम को विर्सिजत करने के बाद इंज मेले का आयोजन होता है. इंज मेले की शुरुआत कब और कैसे हुई थी. इन सारी चीजों की जानकारी लेने के लिए प्रभात खबर डॉट के प्रतिनिधि समीर उरांव ने सरना समाज के धर्मगुरू बंधन तिग्गा से खास बातचीत की.

क्या होता है इंज मेला और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

इंज का मतलब होता है स्वीकार करना. विर्सजन के दूसरे दिन ही इस मेला का आयोजन होता है. ये एक तरह का मिलन समारोह होता है. जिन गांवों में जावा नहीं उठाया जाता है उन्हें संगी गांव के लोग जावा फूल से उनलोगों का स्वागत करते हैं. चूंकि जावा फूल को हम आदिवासी सृष्टि का प्रतीक मानते हैं. स्वागत के बाद जावा फूल के पुरूष वर्ग के लोग अपने कान में और स्त्रियां अपने कानों में लगाती हैं.

Also Read: गिरिडीह: करमा पूजा के लिए फूल लाने गए युवक की डूबने से मौत, मातम में बदली खुशियां

बहुत सारे लोग इसे इंद और इंज में फर्क नहीं समझ पाते हैं. लेकिन दोनों एक दूसरे से अलग है. सभी आदिवासी गावों में लोग संगी जोड़ते हैं. संगी का मतलब साथी या मित्र. मेले का आयोजन अपने अपने पड़हा की आपसी सहमति से होता है. जिस तरह मुड़मा मेले का इतिहास पुराना है उसी तरह इंज मेले का इतिहास भी बहुत पुराना है. कहा जाता है कि आज से हजार वर्ष पहले जब यहां पर उरांव लोग आए उसके बाद ही इसका आयोजन लगातार हो रहा है. मेले में एक जगह जमा होने के बाद लोग एक साथ पूजा अर्चना करते हैं और नाचते गाते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें