Karam Puja: भादो (भादर) के महीने में जब करमा पर्व (karma puja kab hai) मनाया जाता है, उस वक्त प्रकृति में कुछ नयी चीजें दिखती हैं. झींगा फूल और कांसी के फूल खिलते हैं. कांसी के फूल के खिलने और उसके झरने को लड़कियों की आशा और निराशा से जोड़ा गया है. खोरठा लोक गायक प्रदीप कुमार ‘दीपक’ लिखते हैं कि भादो का महीना आ गया. करमा आ रहा है. दूर खेत की मेड़ पर कासी के फूल देख ब्याहता को ऐसा आभास होता है कि उसका भाई या पिता उसे मायके ले जाने आ रहा है. वह उसी की सफेद पगड़ी है.
ब्याहता के मन में होता है उत्साह का संचार
कांसी का फूल देख ब्याहता के मन में उत्साह का संचार होता है, तो कांसी के फूल का झरना उसके अंदर निराशा के भाव उत्पन्न करता है. कांसी के फूल झरने के बाद उसे इस बात का एहसास हो जाता है कि भादो खत्म हो गया. अब पिता या भाई के आने का समय भी बीत गया. बता दें कि झींगा फूल सूर्यास्त से पहले खिलता है. इस वक्त को झिंगफूलिया पहर कहा जाता है. वहीं, भादो में खेत और मेड़ में, नदी किनारे हर जगह कांसी के सफेद फूल दूर-दूर तक फैले दिखाई देते हैं.
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करम गीत गाते हैं, एक-दूसरे का नाम नहीं लेते
करम उत्सव या करमा पूजा के दौरान विशेष गीत गाये जाते हैं. इन्हें करम गीत कहते हैं. बारिश शुरू होने के साथ इस गीत को गाने की शुरुआत हो जाती है और तब तक लोग करम गीत गाते हैं, जब तक फसल नहीं कट जाती. यह उत्सव इस वर्ष सितंबर के महीने में मनाया जा रहा है.
गीत गाते समय बजाये जाते हैं मांदर और ढोल
कहते हैं कि करम गीत के समय लोग एक-दूसरे का नाम नहीं लेते. अलग-अलग संबोधन से उन्हें बुलाते हैं. प्यार से उनका अलग-अलग नामकरण किया जाता है. गीत गाते समय मांदर और ढोल बजाये जाते हैं. मांदर की आवाज सुनकर गांव के सभी लोग अखड़ा में पहुंच जाते हैं. नाचना शुरू कर देते हैं.
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करम उत्सव के दौरान बर्तनों में बालू भरते हैं. बर्तन को कलात्मक तरीके से सजाते हैं. उसमें जौ डाल देते हैं, जिसे जावा कहते हैं.
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व्रत रखने वाले लोग सगे-संबंधियों और पड़ोसियों को निमंत्रण देते हैं. शाम में करम वृक्ष की पूजा करते हैं. पूजा करने के बाद करम की डालियों को काट दिया जाता है. इस दौरान इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि करम की डालियां जमीन पर न गिरने पाये.
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व्रत करने वाले भाई-बहन करम की डाली को अपने आंगन में या खेतों में गाड़ देते हैं. इसे आराध्य देव मानकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है. रात भर लोग नृत्य करते हैं और सुबह सूर्योदय से पहले करम डाली को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर देते हैं.
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करमा से पहले लोग अपने घर-आंगन की सफाई करते हैं.
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बहुत ही विधि-विधान के साथ करम डाली को आंगन में गाड़ते हैं.
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आदिवासी संस्कृति में गोबर को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है. इसलिए जिस जगह करम डाली को गाड़ा जाता है, उसे गोबर से लीपते हैं.
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सजी हुई टोकरी और थाली लेकर बहनें पूजा करने के लिए आंगन में करम राजा (करम वृक्ष की डाली) के चारों ओर बैठ जाती हैं.
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करम राजा की पूजा करते हुए अपने भाईयों की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं.
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बड़े-बुजुर्ग करम पूजा करवाते हैं. पूजा की समाप्ति होने के बाद करम कथा सुनायी जाती है.