आज रे करम गोसाईं घरे दुआरे रे…इन गीतों से गूंज रहा झारखंड, खोरठा के ये गीत काफी प्रचलित, जानें इसके अर्थ
करम पर्व में युवतियां अपने भाई के साथ पिता की भी लंबी उम्र और घर की सुख शांति की कामना करती हैं. जो झारखंड के लोकगीत में भी दिखता है. इन लोकगीतों में अलग-अलग संदर्भ होता है, जिसमें झारखंड की संस्कृति की झलक होती है. करमा पूजा में खोरठा के ये गीत काफी प्रचलित हैं और इनके अर्थ भी दिल छू लेने वाले हैं-
Karma Puja: करम पर्व झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा प्रकृति पर्व है. करम पर्व (करमा पूजा) भाद्र मास के एकादशी तिथि को मनाया जाता है. लोक परंपरा के अनुसार भादो माह जब प्रवेश करता है तो करमा पर्व का माहौल बन जाता है. कुंवारी लड़कियां तो घर पर रहकर करमा का पर्व बड़े आनंद के साथ मनाती हैं, लेकिन इस बीच नवविवाहिताओं को विशेष तौर पर अपने नैहर की याद आने लगती है. इसर दौरान उन्हें आस होती है कि अब उनके भाई या पिता लेने के लिए अवश्य आयेंगे. इसे लेकर कई लोकगीत झारखंड में प्रचलित हैं, जिसमें अलग-अलग संदर्भ देखने को मिलते हैं. इन लोकगीतों में झारखंड की संस्कृति की झलक होती है. करमा गीत अलग-अलग भाषाओं में गाए जाते हैं. जैसे खोरठा, नागपुरी, छत्तीसगढ़ी, आदि. अलग-अलग इलाके में अलग-अलग भाषाओं में गीत गाये जाते हैं, गीत के बोल में भी थोड़े बहुत अंतर होते हैं. करमा गीत हर पहर में गाए जाते हैं. सुबह-सुबह गाए जाने वाले गीत अलग होते हैं. वहीं शाम के पहर में गाए जाने वाले गीत अलग होते हैं. सभी को अलग-अलग राग में गाए जाते हैं. जब युवतियां इन गीतों को गाते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं तो वह लोगों के आकर्षण का केंद्र होता है.
खोरठा के कुछ करमा गीत, जिसमें झलकती है झारखंड की संस्कृति
ऐसे तो ‘करम त्यौहार‘ प्रकृति की पूजा है, लेकिन इसे भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. करम पर्व में युवतियां अपने भाई के साथ पिता की भी लंबी उम्र और घर की सुख शांति की कामना करती हैं. जो झारखंड के लोकगीत में भी दिखता है. करमा पूजा में खोरठा का यह गीत काफी प्रचलित है-
आज रे करम गोसाईं घरे दुआरे रे, काल रे करम गोसाईं कांस नदी पारे रे
जाहो जाहो करम गोसाईं जाहो ससुराल हो, आवते भादर मास आनबो घुराय
दिहो दिहो करम गोसाईं दिहो आशीष हो, भइया बप्पा जिये हमर लाखों बरीस हो
दिहो दिहो करम गोसाईं दिहो आशीष हो, भइया बप्पा जिये सबके लाखों बरीस हो.
जैसा कि करमा की धूम 7 या 9 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है. युवतियां अपने-अपने घर के आंगन में जावा या करम डाली को करम देवता के रूप में पूजती हैं और अंत में जावा डाली को विसर्जन करती हैं. तो इस करमा गीत में युवतियां एक सप्ताह तक चलने वाले उल्लास का जिक्र करती हैं. कहती हैं कि आज घर-घर में करम देव हैं, विसर्जन के बाद वह नदी के पार होंगे. विसर्जन करने के समय करम देवता को विदा करते हुए युवतियां उनसे अपने भाई और पिता की लंबी उम्र की कामना करती हैं. साथ ही उनसे यह भी कहती हैं कि अगले साल वे फिर से करम देव को वापस लेकर आयेंगी यानि फिर उनकी पूजा करेंगीं.
जैसा कि हमने पहले भी जिक्र किया कि करमा पूजा में नवविवाहिताओं को विशेष तौर पर अपने नैहर की याद आने लगती है, उन्हें आस होती है कि अब उनके भाई या पिता लेने के लिए अवश्य आयेंगे. इसे करमा की लोकगीत में बखूबी दिखाया गया है.
कोन परबे भइआ आनबे लेगबे हो
कोन परबे भइआ करबे बिदाइ
करमा परबे बहिन आनबो लेगबो
जितिया परबे बहिन करबो बिदाइ
किआ खिअइबे भइआ किआ पिंधइबे
किआ दइए भइआ करबे बिदाइ
दूध-भात खअइबो बहिन लुगवा पिंधाइ
धेन्हु गइआ दइए बहिन करबो बिदाइ
आगू-आगू जितो बहिन धेन्हु गइआ
पाछु-पाछु जितो भगिनवा.
इस गीत में बहनें अपने भाई से पूठती हैं कि कौन से पर्व में आप हमें लेने आएंगे और कौन से पर्व में विदा करेंगे. तो भाई जवाब देता है कि करमा पर्व में वह उन्हें लेकर आएंगे और जीति पर्व में विदा करेंगे. इसके आगे बहन पूछती हैं कि आप मुझे क्या खिलाएंगे और क्या पहनने को देंगे. इसमें भाई जवाब देता है कि वह उन्हें दूध भात खिलाएंगे और नई साड़ी देकर विदा करेंगे. इस गीत में भाई बहन के बीच का मार्मिक प्यार बखूबी झलकता है.
मंहगाई का रोना कब नहीं रहा है? करमा के लोकगीत में भी इसे देखा जा सकता है-
भइया रे बइसलें नगरियांइ
दिहें भइया डलवा संदेस,
बहिन गे सभे रे संलसता भेल
एगे बहिन डलवा महंगा भेल,
भइया रे हवे दे महंगीया,
तावो हामे पूजब करम गोसाईं
बहिन गे जाये दे महलंदा देस
भेजी देबो डलवे संदेस
इस लोक गीत में बहन अपने भाई से करमा पूजा करने के लिए डाली की मांग करती है और भाई बोलता है कि महंगाई बहुत है. बहन कहती है कि कितनी भी महंगाई हो जाए मैं करमा पूजा करूंगी. इस लोकगीत में भाई कमाने के लिये महलंदा देश जाने की बात करता है और कहता है कि वह कमाने के बाद डाली भेज देगा. उस वक्त भी कमाई के लिये परदेस जाने का रिवाज होगा.
अक्सर देखा जाता है कि ससुराल में सभी लड़कियां सुखी नहीं रहती हैं, और नैहर में भी ननद-भाभी की खटपट किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में एक दुखियारी करमयतीन गीत के माध्यम से अपने पिता या भाई को अपना दुख का बखान करती है-
बाबा मोरे बीहा देलइ नदी के पार
बलि ओगो नदी नाला बोहइ बारऽमास
बाबा मोरे रहतलइ आना लेगा करतलइ
बलि ओगो पइतो परबे परेक अधिन
सास देहइ ओलना ननद देहइ ठोलना
बलि ओगो कहां जाये रहबइ डांढ़ाइ
उंचा-उंचा मंदिरवा पूरबे दुवाइर
बलि ओगो हुवां जाये रहबइ डांड़ाइ
माय मोरे मोसी जिये बहिन ससुराइर
बलि ओगो भोजी मोरा लेलइ लुलुवाइ
खाय जे देलइ माय अरवा के भात
बलि ओगो आरो देलइ पालवाक झोर
इस गीत में युवती अपने पिता को कहती है कि मुझे इतनी दूर नदी के पार शादी ब्याह दिया है. मुझे इतनी दूर लाने ले जाने कैसे आएंगे. इसके अलावा वह मां के प्यार और भाभी के व्यवहार का भी जिक्र करती है.
जब लड़की की शादी दूर देश में कर दी जाती है तो वह पिता को उलाहना देती है कि इतनी दूर मेरी शादी इसलिए कर दी कि आप कभी लेने नहीं आये. इसमें पिता का जवाब आता है कि तुम्हें लेने के लिये नाई, ब्राम्हण के साथ छोटे भाई को भेजुंगा. वह पूछती है कि किसका स्वागत मैं कैसे करूं? तो देखिये पिता और बेटी में कैसे बातचीत होती है-
दूरी देसे करलें बाबा जोर नारवा हो,
कबहूं न अइलें लेनिहार.
आगु पठइबो बेटी नउवा बाभनवां गे
तबे पठइबो छोटो भाइ!
कहां हामे राखबइ नउवा बाभनवां गो.
कहां राखब छोट भाइ?
गोहला हीं राखबें नउवा बाभनवां गे
भितरा महलें छोटो भाइ.
किया खियइबइ बाबा नउवा बाभनवां गो
किया खियइबइ छोटा भाइ ?
घीया मूंगा दलिया बेटी नउवा बाभनवां गे,
दही दूध खियइहें छोटो भाइ.
कहां पइबइ बाबा घीया मंगा दलिया हो,
कहां पइबइ दही दूध ?
लादी पठइबो बेटी घीया मंगा दलिया गे,
खेदी पठइबो धेनु गाय.
किया दये बोधबइ नउवा बाभनवां गो
किया दये बोधबइ छोटो भाय?
चार-दाइल धोती दये नउवा बाभनवां गे
छोटकी ननदी छोटो भाइ.
करमा में अक्सर लड़की के भाई उन्हें लेने ससुराल जाते हैं. एक लोकगीत है , जिसमें बहन अपने छोटे भाई को ही बुलाती है. बड़े और मंझले भाई को आने से मना करती हैं. इस गीत में इसका कारण स्पष्ट है-
बड़का हो भइया मति लेगे अइहा,
कहां पाइब पाकल पान हो.
मंइझला हो भइया मति लेगे अइहा,
कहां पाइब बांधल खसिया.
छोटका हो भइया तोहीं चली अइहा,
कांदी-कांदी मांगभे बिदाइ हो
दीदी के कइर दे बिदाइ हो
इसी तरह से करमा के लोकगीतों में अलग-अलग प्रसंग देखने को मिलते हैं. खोरठा लोक गायक प्रदीप कुमार’दीपक’ ने बड़ा ही आकर्षक वर्णन में एक जगह लिखा कि, ’भादर का महिना आ गया करमा नजदीक आ रहा है, दूर खेत की आरी पर कासी के फूल देख ब्याहता को ऐसा आभास होता है, जैसे उसका भाई या पिता उसे लेने आ रहे हो. वह उसी की सफेद पगड़ी है. जहां कांसी का फूल देखना लड़की के मन में उत्साह का संचार होता है, वहीं दूसरी ओर कांसी के फूल का झरना उनके अंदर निराशा भी भर देता है. वह जान जाती है कि कांसी का फूल झड़ गया है, अर्थात भादर खत्म हो गया है और अब पिता या भाई के आने का समय बित चुका है.
Also Read: करमा पूजा में जावा उठाने की परंपरा बेहद खास, लोकगीत की गूंज के साथ 7 दिनों तक धूमधाम से मनेगा प्रकृति पर्व