सूबेदार मेजर एमपी सिन्हा ने कारगिल युद्ध पर प्रभात खबर से यादें साझा की है. बताया कि 1999 में उनकी पोस्टिंग श्रीनगर में हुई. उनकी बटालियन के अधीन अनंतनाग, बड़गाम, कंगन, अवंतिपुरा आदि क्षेत्र थे. मई में ही कारगिल युद्ध के शुरुआती दौर में अवंतिपुरा में रात 2:45 बजे पाकिस्तान के तरफ से फायरिंग शुरू हो गयी. तब उनके साथ 45 जवान भी थे. हथियार व गोला-बारूद के अलावा 25 फौजी वाहन थे.
भारतीय सेना ने पहले से सुरक्षात्मक पहल कर ली थी. भारतीय जवानों को पहले फायर का आदेश नहीं थे. इसी समय उनलोगों को आदेश मिलता है कि सब कुछ समेट कर उपर आ जाओ यानि द्रास सेक्टर में. क्योंकि बाकी सभी पहले ही पहुंच चुके थे. यहां से उनकी बटालियन साजो-सामान के साथ द्रास सेक्टर के लिए रवाना हो गयी.
दिन में चलने का आदेश न होने के कारण रात में आगे बढ़ रहे थे. द्रास से 45 किलोमीटर पहले रात 11 बजे उनके कैंप पर पाकिस्तान की तरफ से गोले बरसने लगे. रात डेढ़ बजे जब फायरिंग बंद हुई तो सभी आगे बढ़े दो माह से अधिक युद्ध चला और अंतत: हमारी जीत हुई.
Also Read: जरा याद करो कुर्बानी! कारगिल के शहीदों को देश कर रहा शत् शत् नमन, PM Modi और रक्षा मंत्री ने दी श्रद्धांजलि
रांची/गुमला: कारगिल युद्ध में गुमला के तीन बेटे जॉन अगस्तुस एक्का, बिरसा उरांव व विश्राम मुंडा शहीद हुए थे. इन तीनों सपूतों को आज भी बड़े सम्मान से नाम लिया जाता है, लेकिन a महकमे में ये गुमनाम हो चुके हैं. कारगिल दिवस पर सेना के अधिकारी, जवान व रिटायर सैनिक इनकी जीवनी लोगों को बताते हैं. भूतपूर्व सैनिक कल्याण संगठन गुमला के ओझा उरांव ने कहा कि इन तीनों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.