करम पर्व. ऊर्जा, बौद्धिकता, शांति, नकारात्मक शक्तियों को दूर कर सुख-समृद्धि लानेवाला और शुद्धता का प्रतीक. प्रकृति-संस्कृति का जीवन दर्शन है. करम पर्व (Karma Parv) ‘करमा’ शब्द कर्म (परिश्रम) और करम (भाग्य) को इंगित करता है. ‘मनुष्य नियमित रूप से अच्छे कर्म करे और भाग्य भी उसका साथ दे, इसी कामना के साथ करम देवता की पूजा की जाती है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. करम देवता की पूजा-अर्चना और प्रसाद ग्रहण के बाद रात भर करम देवता के चारों ओर घूम-घूम कर करमा नृत्य किया जाता है. महिलाएं गोल घेरे में शृंखला बनाकर नृत्य करती हैं और उनके मध्य में पुरुष गायक, वादक और नर्तक होते हैं.
करमदेव की प्रतीक हैं करम की डालियां
सखुआ और करम दोनों ही आदिवासी समुदाय के लिए आराध्य वृक्ष हैं. सरहुल में शाल (सखुए) के वृक्ष की पूजा होती है, वहीं करम के अवसर पर करम डाल की पूजा की जाती है. आदिवासी समुदाय अपने आराध्यों को प्रकृति में ही देखता है. करम वृक्ष की पूजा के संबंध में डॉ हरि उरांव कहते हैं आदिवासी समुदाय मूलत प्रकृति पूजक है. उसके देवी-देवता प्रकृति में ही निहित हैं. करम डाल की पूजा भी इसलिए की जाती है कि करम डाल ईश्वर (प्रकृति) का प्रतीक रूप है. पूजा के दौरान करम कथा के दौरान करम वृक्ष का आह्वान किया जाता है.
पीपल की तरह दिन और रात ऑक्सीजन देता है करम डाल
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के सहायक प्राध्यापक डॉ अभय सागर मिंज ने कहा कि करम का वृक्ष हमारे लिए काफी महत्व रखता है. माना जाता है कि यह भी पीपल की तरह ही दिन और रात दोनों ही समय ऑक्सीजन देता है. ऑक्सीजन प्राणवायु है और यह भी एक कारण है कि करम वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा की विधियों को देखें, तो उससे भी करम डाल की महिमा का पता चलता है. पूजा के दिन करम वृक्ष लाने के लिए पूरी श्रद्धा से युवा जाते हैं. करम की उस डाल पर जिसे पूजा के लिए लाना होता है, चावल की घुंडी से चिन्हित करते हैं. उसपर सिंदूर के तीन टीके लगाये जाते हैं. नये धागे को लपेटा जाता है. शाम में मांदर, ढोल के साथ युवा उस वृक्ष के पास गीत गाते जाते हैं.
करम डाल को काटने पहले क्यों किया जाता है प्रणाम
करम की डालियों को काटने से पहले उसे प्रणाम करते हैं. और फिर डाली को काटकर उसे सम्मान के साथ पूजा स्थल पर लाया जाता है. पूजा स्थल पर परिक्रमा के बाद डाल को जमीन पर स्थापित किया जाता है. पाहन या कथावाचक पूजा सामग्रियों के साथ पानी, कच्चा धागा, सिंदूर, धुवन और आग की जांच करते हैं और फिर पूजा शुरू होती है. पूजा समाप्त होने के बाद करम राजा को सम्मान के साथ विसर्जित कर दिया जाता है.
अखड़ा संस्कृति को बचाने के लिए जरूरी है करम पर्व
करम का पर्व आ गया है. यह पर्व न सिर्फ भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है बल्कि यह भी सिखाता है कि कर्म के साथ धर्म भी जरूरी है. जीवन में दोनों ही चीजों का संतुलन बनाये रखना चाहिए. रांची विश्वविद्यालय और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने कहा कि अपनी संस्कृति को बचाये रखने और अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने में भी करम पर्व प्रासंगिक है.
अब कई देशों में मन रहा है करम पर्व
करम पर्व अब नेपाल और बांग्लादेश में भी मनाया जा रहा है. यह हमें बताता कि अपनी धरती को हरा-भरा बनाये रखना है, ताकि हमारा समाज स्वस्थ, खुशहाल बना रहे. करम प्रकृति से जुड़ा पर्व है. इसमें बहनें अपने भाई की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं.
-नमिता पूनम, स्कालर, टीआरएल संकाय, रांची विवि
भाई-बहन का स्नेह का प्रतीक है यह त्योहार
करम पर्व का अपना ही महत्व है. यह पर्व भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है. साथ ही यह प्रकृति के साथ संबंध पर भी केंद्रित है. भाई की सुख-समृद्धि के लिए बहनें पूजा करती हैं. करम के अवसर पर भादो माह की प्राकृतिक छटा को भी देखते ही बनता है.
-श्वेता कुमारी, छात्रा, टीआरएल संकाय, रांची विवि
श्रद्धा से मनाते हैं करम पर्व
करम पर्व के आते ही एक उल्लास सा छा जाता है. हमलोग श्रद्धा से करम पर्व मनाते हैं. अभी आंगन में भादो का कादो भर गया है. और कहा जाता है कि यह कादो तभी जमेगा जब आंगन में करम के सामने झूमर खेला जायेगा.
दुलारी कुमारी, छात्रा, टीआरएल संकाय, रांची विवि
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