डॉ राजा राम महतो
विश्व के विभिन्न जगहों पर उसकी भौगोलिक स्थिति के आधार और विज्ञान के अनुसार उसके विभिन्न रूप और सांस्कृतिक नियम देखे जाते हैं. हमारे झारखंड इलाके के भी लोग सहज और सरल भाव से नियम व अनुष्ठान करते हैं. अपने ऐश्वर्यपूर्ण सांस्कृतिक त्योहारों में विचित्र आकर्षणों के साथ लोग तन-मन-धन से लीन हो जाते हैं. ज्ञान-विज्ञान के साथ लेकर सही ढंग से यदि हम विश्लेषण करे तो झारखंड की संस्कृति के महत्व को समझ पायेंगे. विश्वव्यापी कल्याण की कामना करने वाली संस्कृति है झारखंड इलाके की. ऐसा ही पर्व है ‘करमा पर्व‘ जो कि झारखंड का प्रमुख पर्व है.
करमा पर्व के आदि से अंत तक के नियम की ओर यदि हम गौर करें तो ये नियम सर्वशक्तिमान भगवान की ही याद दिलाते हैं. कर्म-ज्ञान को मानव-समाज में युग-युगांतर तक अटूट रखने का भी स्मरण यह पर्व करता है. इसके उदाहरण हमें लोकोक्तियों एवं पर्व के रीति-रिवाजों में मिलते हैं. इस पर्व में प्रतीक स्वरूप एक करमडाला होता है, जिस पर निर्धारित पर्व, तिथि के दिन उपासकों द्वारा उस ‘डाला’ पर पवित्रता के साथ नौ प्रकार के अनाजों के बीजों का मिट्टी-बालू देकर बो दिया जाता है. उन बीजों को सूर्य देव को अर्पित कर देने का नियम है. सूर्य के साथ पवन-आकाश, पानी और मिट्टी पंचभूत के रूप में अर्पित करने का नियम प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति रूपी ईश्वर की याद दिलाता है. इस प्रकृति-रूपी ईश्वर को जानने के लिए तस्वीर, प्रतिमा, नाम, मंदिर, मस्जिद एवं गिरिजाघरों की जरूरत नहीं पड़ती. इस सांस्कृतिक नियम के द्वारा यही समझा जाता है कि सीधा प्रकृति का जो रूप हमें देखने को मिलता है वहीं ईश्वर का सही रूप है. इस पर्व में उसी रूप में ईश्वर को मानने का नियम है. साथ ही साथ झारखंड इलाके का यह आदिपर्व है. यह महान सांस्कृतिक पर्व हम सबों को याद दिलाता है कि पूरा विश्व ईश्वर का रूप है. इस पर्व के नियमों की महानता यह है कि सारे विश्व के मानव को साथ बांध कर रखा जा सकता है.
इस पर्व को भाई-बहन का पर्व भी कहा जाता है. निष्काम कर्मों का ख्याल रखने हेतु भाई अपनी बहनों को इस पर्व में हर संभव सहयोग दिया करते हैं. तथा बहन भी निष्ठा भाव के साथ अपन भाइयों के लिए भक्ति भाव से मौलिक प्राकृतिक महाशक्ति से प्रार्थना करती है कि मेरा भाई संपूर्ण शक्तियों एवं गुणों से विभूषित होकर दीर्घायु बने तथा करम पर श्रद्धा रखकर समाज का उत्थान करें. समाज में सभी संबंधों से भाई-बहनों का संबंध मधुर होता है. इस संबंध में विकास एवं दुनिया में आखिरी काल तक इसको बरकरार रखने का इस पर्व के द्वारा हर साल संकल्प लिया जाता है.
इस पर्व के अवसर पर एक प्रचलित लोककथा सुनाई जाती है, जिसे करम-धरम की कहानी कही जाती है. इस कथन को गौर से विश्लेषण करने से एक उन्नत आध्यात्मिक तत्व निखरते हैं. करम और धरम दो भाई को स्वरूप अर्थात् कर्म और धर्म को ही जाना जाता है. इस दोनों का अपना-अपना किसी प्रकार का आकार नहीं है. इन्हीं के रूप आकार का प्रकाश समाज में देखने को मिलता है. लेकिन करम-धरम को नहीं छोड़ सकता है और धरम भी करम छोड़कर नहीं जी सकता है. अर्थात् करम विहीन धर्म नहीं और धरम विहीन करम भी नहीं होता.
करमा पर्व प्रकृति की रक्षा और संरक्षण का पर्व है. यह पर्व गीतों से शुरू होता है और गीतों के एक सुंदर सिलसिले के साथ खत्म होता है, जिनके बोल प्रकृति की सृजनशीलता, उसका सौंदर्य, उसका धर्म और क्रोध तक को विवेचित करता है. ये गीत पहाड़ों और जंगलों की शाश्वत आवाज है, हमारी परंपरा और पहचान है.
कुरमाली लोक गीतों में जितने प्रकार के नेग (विधि) पाये जाते हैं उतने प्रकार के गीत भी पाये जाते हैं. कुरमियों के करम गीतों में साधारणत: कई प्रकार के पाये जाते हैं: जावा उठाने के गीत, जावा जगाने का गीत, करम काटने के गीत, करम गाड़ने के गीत, फूल तोड़ने के गीत, विदाई के गीत और विसर्जन गीत.
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जवा गीत
इति, इति जाउआ, किआ
किआ जउआ.
जाउआ जाइगल- माय दान रे बउआ.
से, हरे दाना……
…छाड़, छाड़ गहमन
एह दाढ़ी धार
जवा जगाने का गीत
बांका रे बांके कुरथि, भुंजे बसल
छटकी ननद,
भुजईते, भुजईते ननद पड़ी गेल
जले हुआ गेला ससुलाल
लेहू ननद तेल बाटि
पसना जाहु जमुना सिनाय
अ-ए-हे ननद…एतिखन
नाहीं लर…………एतिखन
आहूरे…………गहड़ाई
एहगुन…..घुराए
करम काटने के गीत
कांहांहि कांदसे लर-लर बांस
दइया अहरे, कंहारे कांदे, कांहा कांदने पिठेकर बहिन
किआए…, करि आन लर…
…दधरे भाते, इध भाते
बंध रे बहिन
करम गाड़ने का गीत
डिंबु ने डिंबु तरे लेखेट बका
डाइरे छाड़ी अगे फेड़े परे झांपा-
डाईरे छाड़ी.
फूल-लोढ़ने का गीत
धान से भजरऐ- डाला के समान
जेे बु प्रभु राम भइआ बड़े सैया के समान
विदाई गीत
कनअ बने भाई रे चिमटी बल
पिंपड़ी अहरे
सेह रे बने, सेह बने भइआ चलि जाय
विसर्जन गीत
जाहू-जाहू करम राजा/एहो छहो
मास, आओतो भरद मास आना
रे घुराबो.